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________________ ६७४ कामरसिक कामरसिक वि० कामी [पृ०६०२ कामरूपाः पुं० ब०व० जुओ कामरूप', कामा स्त्री० कामना; इच्छा कामाख्या स्त्री० जुओ पृ० ६०२ कामाश्रम पुं० कामदेवनो आश्रम कामेश पुं० बधा धननो मालिक; सर्वधनसंपन्न (२) कुबेर काम्यक पुं० एक वन के सरोवरनुं नाम; जुओ पृ० ६०२ काम्यगिर वि० मधुर अवाजवाळं कायक्लेश पुं० शरीरनी तकलीफ; शरीरने पीडा कारणता स्त्री० कारण होवू ते कारणबलवत् वि० हेतुने कारणे दृढ एवं कारणात् अ० -ने कारणे कारणिक वि० न्यायाधीश; परीक्षक(२) कारणरूप; कारणभूत (३) उपदेशक; शीखवनाएं [कराववानुं कारयितव्य वि० कराववानु; अमल कारावर पुं० चामडियो; मोची(निषाद बाप अने वैदेही स्त्रीथी जन्मेलो मिश्र जातिनो मनुष्य) कारीर वि. वांस के बरुना फणगावाळू कारक पुं० कारीगर (सुतार-वणकर हजाम-धोबी-मोची) कारूष न० क्षुधा; भूख (२) पुं० व्रात्यवैश्य पिता अने वैश्य मातानो वचली वर्णनो माणस कार्तयुग वि० कृतयुग - सत्ययुग संबंधी कार्तवीर्य पुं० जुओ पृ० ६०३ कातिकेय पुं० जुओ पृ० ६०३ कार्पटिक पुं० विश्वासु अनुचर (२) यात्राळ (३) पवित्र नदीओन पाणी वहन करीने निर्वाह करनारो माणस (४) यात्रीओनो संघ (५) अनुभवी माणस (६) चालाक के कपटी माणस कार्मणत्व न० वशीकरण कार्यापेक्षिन् वि० कोई कार्य सिद्ध कालिंग करवाना ध्येयवाळं उष्ण कार्शानव वि० अग्नि संबंधी (२)अति काल न० लोखंड (२) एक सुगंध कालकटंकट पुं० शंकर कालकवन न० जुओ पृ० ६०३ : कालकेय पुं० जुओ पृ० ६०३ . । कार्यक्षम वि० विलंब सहन करी शके तेवू [करवो ते कालक्षेप पुं० विलंब (२) समय पसार कालखंड न० काळजूं . कालज्येष्ठ वि० उमरमां मोटें कालत्रय न० त्रण काळ (भूत, वर्तमान, अने भविष्य) कालदष्ट वि० मृत्युग्रस्त; मरवानी तैयारीमां होय तेवू [चक्र कालपर्यायः पुं० काळनी गति; काळनं कालबंधन वि० काळने अधीन । कालमुख पुं० वांदरानी एक जात कालयवन पुं० जुओ पृ० ६०३३ कालयोगतः अ० काळनी गति के मर्यादा अनुसार साप कालसर्प पृ० काळो अने भयंकर झेरी कालसंकर्षिन् वि० काळ - समयने ट्रंकुं करनाएं (जम के तेवो मंत्र के विद्या) कालसंग पुं० विलंब कालसार वि० काळी कीकीवाळू कालंजर पुं० बुंदेलखंडनो एक पवित्र पर्वत (तपस्या माटे जाणीतो) कालापक न० 'कातंत्र' व्याकरण कालाघ्र पुं० एक जातनी केरी . कालांग वि० काळा-भूरा रंगनुं (जेम के तरवार) कालांजन न० एक जातनुं काजळ कालिदास पुं० जुओ पृ० ६०३ कालिय पुं० यमुनानो एक मोटो नाग (श्रीकृष्णे तेने नाथ्यो हतो) कालिंग पुं० कलिंग देशनो राजा (२) ते देशनो एक साप (३) हाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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