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________________ अद्रव्य ६४२ अनवकाशिका अद्रव्य न० नकामी के तुच्छ वस्तु अध्वर वि० अकुटिल ; शास्त्रोक्त (२) (२) अपात्र शिष्य भंग के उल्लंघन न थयेलं; अखंड अद्विकुक्षि पुं० पर्वतनी गुफा के खीण (३) ईजा के हिंसा न करतुं; अहिंस्र अद्रिसार वि० पर्वत जेवू कठण (२) (४) पुं० यज्ञ पुं० लोढुं [अति कठण अध्वान वि० चूप; मूंगु अद्रिसारमय वि० लोखंडन बनावेलु (२) अन् २ ५० श्वास लेवो (२) जीवq; अद्वंद्व वि० भेदबुद्धि के वेर विनानुं हाल-चालवू अधिकरणभोजक पुं० अदालतनो अधि- अनक्षरम् अ० एके शब्द बोल्या विना; कारी; न्यायाधीश मूंगा मूंगा [नथी तेवं अधिकरणमंडप पुं० अदालतनो ओरडो अनन्यगुरु वि० जेनाथी मोटुं बीजं कांई अधिकरणिक पुं० न्यायाधीश (२) अनन्यज, अनन्यजन्मन् पुं० कामदेव सरकारी कर्मचारी ते अनन्यदृष्टि वि० स्थिरताथी-एकाग्रपणे अधिज्यता स्त्री० पणछ चडावेली होवी जोतुं अधित्वत् अ० तारा उपर अनन्यपरता स्त्री० एकांतिक भक्ति के अधिदीधिति वि० अति तेजस्वी आसक्ति [आसक्त नहिं तेवू अधिमर्म अ० मर्मस्थाने अनन्यपरायण वि० अन्य (स्त्री) मां अधिया २ प० भागवू; नासी छूट अनन्यशासन वि० (पोता सिवाय) बीजो कोई जेनो राजा नथी तेवू अधियोध पुं० उत्तम योद्धो के वीर अनन्यसदृश वि० अनुपम ; जेनी समान अधिरुह वि० (समासने अंते) -नी बीजं कोई नथी तेवू अनन्यसाधारण, अनन्यसामान्य वि० अधिरूषित वि० चंदन वगेरेनो लेप असाधारण; बीजा कोईने लागु न करेलं [करनारो पडतुं होय तेवू (२) एकनिष्ठ अधिरोह पुं० हाथी उपर सवारी अनपत्यता स्त्री० निःसंतानपणु अधिवास् १० पुं० सुवासित करवू अनपार्थ वि० सकारण एवं अधिधि १ उ० व्यापq; पथरावू (२) अनप्सरस्, अनप्सरा स्त्री० अप्सरा जेवू चडवू (३) उपर मूकवू नहीं ते; अप्सराने उचित नहि ते अधिश्री वि० ऐश्वर्यवान; श्रेष्ठ अनभिवादक वि० विरोधी ; असंमत अध्यग्नि अ० अग्निनी साक्षीए; अग्नि अनभ्यंतर वि. अणजाण; अज्ञ समक्ष अनभ्यावृत्ति स्त्री० पुनरावर्तन न कर, अध्यर्ध वि० अर्धं वधारे होय तेवू; दोढुं ते; फरीथी न करवू ते अध्यवसित वि० निर्णय करेलु अनभ्र वि० वादळ विनानुं अध्यवसिन् वि० व्रतधारी अनम्र वि० उद्धत; गर्विष्ठ अध्यंच् वि० श्रेष्ठ ; उत्तम अनराल वि० वांकु नहि तेवू; सीधुं अध्यारोपण न० ऊंचं करवू ते; ऊभुं अनयेय वि० अमल्य करवू ते (२)चडावq के आरोपवू ते अनर्थसंशय पुं० जोखमभरेलु काम; अध्याशय पुं० बीजकोश; कर्णिका महान अनिष्ट (२) पैसानुं जोखम अध्वनीन,अध्वन्य वि० मुसाफरी करवाने न होवू ते [रहेवानुं तप शक्तिमान; वेगे मजल कापतुं अनवकाशिका स्त्री० एक पगे ऊभा उपर ऊगतुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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