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________________ अबक्लप मलोक अलोक वि० अदृश्य (२) निर्जन (३) मरण पछी (सुकृत्यना अभावे) जेने कोई पण लोकनी प्राप्ति थती नथी तेवू (४)अवकाशनी पारनु (५) पुं०, न० लोकनो अंत -विनाश (६) पाताल (७)अभौतिक - आध्यात्मिक जगत अलोकसामान्य वि० असामान्य अलोक्य वि० परलोक-स्वर्ग न प्राप्त करावनालं अलोमक, अलोमिक वि० वाळ वगरनुं अलोल वि० शांत; अक्षुब्ध (२) स्थिर; दृढ; चंचळ नहि तेवू (३)तृष्णा वगरनुं अलोलुत्व,अलोलुप्त्व न० लोलुपतानो अभाव; विषयो प्रत्ये निरपेक्षता अलौकिक वि० असामान्य; विलक्षण (२) दिव्य ; अद्भुत (३) दुर्लभ अल्प वि० नजीवु:क्षुल्लक(२) थोडु नानुं अल्पक वि० सूक्ष्म ; नानुं (२) नीचुं; हलकुं; तुच्छ अल्पज्ञ वि० थोडं जाणनाएं अल्पधी वि० आछी बुद्धिवाळू; मूर्ख अल्पप्राण पुं० उच्चार करतां ओछो प्रयत्न करवो पडे तेवो वर्ण (व्या०) अल्पभाषिन् वि० थोडं बोलनारुं; मितभाषी अल्पमेधस् वि० ढूंकी बुद्धि के समजवाळु अल्पसत्त्व वि० अल्प वळ के हिंमतवाळू अल्पसार वि० थोड़ी किंमतनुं अल्पात् अ० जुओ 'अल्पेन' अल्पाल्प वि० बह थोडं अल्पित वि० ओर्छ करायेलु (२)हलकुं पाडेलु; अपमानित अल्पीभू १५० ओछु थq; नाना थवं अल्पेतर वि० मोटुं; वधारे अल्पेन अ० थोडा माटे ; अल्प कारणथी (२) बहु सहेलाईथी; मुश्केली वगर अल्ला स्त्री० मा; माता अव १५० रक्षण कर (२) प्रसन्न करवू; आनन्द आपवो (३) पसंद करइच्छ, अव अ० उपसर्ग तरीके - दूरता, ओछापणुं, नीचापणुं, एवा अर्थमां वपराय छे (२) क्रियापदना धातुनी पूर्वे-निश्चय, व्यापकता, लघुता, अवज्ञा, आश्रय-आधार, शुद्धि, पराभव, अभाव, आज्ञा, नीचापणुं, ज्ञान, एवा अर्थमां वपराय छे अबकर पुं० पूंजो; कचरो अवकर्ण १०प० सांभळवं अवकर्तन न० कापq ते ; फाडवं ते (२) रणभूमि [बेसतुं अवकल्पित वि० -ने मळतुं आवतुं ;बंध अवकाश पुं० प्रसंग ; तक; योग्य समय (२) स्थान; जगा (३) आकाश; खाली जगा (४) वच्चेनो समय ; वचगाळो (५) छिद्र ; बाकोरुं अवकीर्ण वि० वेरायेलं; छवायेलु (२) भांगलु-चो करेल (३)नाश करेल (४) व्रतभंग करेलं; व्रात्य बनेलं (५) वेरविखेर थतुं; भागी पडतुं अवकुंचन न० संकोचन (२) वांकू वळवं-वाळवं ते अवकुंठित वि. चारे तरफ घेरायेलं (२) खेंचायेलं; आकर्षायेलु अवकृत् ६५० कापी नाखवू; फाडी लेवू अवकृत वि० नीचं वळेलु अवकृष् १५० जोरथी खेंच, (२) खेंची काढवु (३) दूर करवू अवकृष्ट वि० खेंची काढेलु (२) दूर करायेलु (३) काढी मूकेलु (४) नीचुं; हलकुं; अधम अवक ६ प० [अवकिरति] वेरवू; विखेरवु; पाथरवू (२) छाई देवं ; भरी काढवू (३) बहार काढ, (४) खंखेरी काढ; तजवू (५) ६ आ० ( अवकिरते ] फेला (७) छुटुं पडवू; खरी पडवू (८) बेवफा नीवडवू अबक्लय् १ आ० -ना समान होवू ; योग्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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