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________________ संज्ञा संज्ञा ९ आ० [संजानीते] जाणवू; समजवू (२) ओळखवू (३) पहेरो भरवो; सावचेत रहेQ (४) याद करवू (५) संमत थर्बु -प्रेरक० वधेर; कापवू संज्ञा स्त्री० भान; चेतना (२) ज्ञान; समजण (३) बद्धि; मन (४)सूचना; निशानी (५) नाम (६)सूर्यनी पत्नी; यम- यमीनी माता संज्ञापन न० वध; नाश संज्ञाविपर्यय पुं० बेहोशी संज्ञित वि० नामनु-नामथी ओळखातुं संज्वर पुं० भारे ताव (२) गरमी (३) गुस्सो [करवू संतश् १ प० छोली नाखवू (२) घायल संतक्षण न० कटाक्षयुक्त कठोर वाणी संतत वि० विस्तृत; पथरायेलु (२) चालु; निरंतर; सतत (३) कायमनुं (४) घj; अनेक संततम् अ० हमेशां; निरंतर संतति स्त्री० फेलावो; विस्तार (२) चालु पंक्ति, क्रम के प्रवाह (३) कायम चालु रहेवू ते (४) वंश (५) संतान (६) ढगलो संतन ८ उ० ढांकी देवं; छाई देवं (२) साथे जोडवू (३) सिद्ध कर (४) देखाडवू; बतावq संतप् १ प० तपावq; गरम करवु (२) शोषी- सूकवी नाखवू (३)संतापवू; पीडवू करवो -कर्मणि० दुःखी थq (२)पस्तावो संतप्त वि० तपावेलं ; लालचोळ करेलु (२) पीडित; त्रास पमाडेलु (३) बाळेलु (४) सुकायेलं; करमायेलं (५) न० दुःख ; शोक संतप्तायस् न० लालचोळ तपावेलुं लोढं संतम् ४ प० [ संताम्यति ] थाकी जवू (२) झूरवं संदर्शन संतमस् (-स) न० सर्वव्यापी अंधकार; घोर अंधारुं (२) महामोह संतर्पण वि० ताजगी - स्फूर्ति आपनाएं (२) न० संतोष, तृप्ति के आनंद आपवो ते संतर्पयाण वि० तृप्ति आपनाएं संतान पुं०, न० विस्तार ; फेलावो (२) चालु प्रवाह के परंपरा (३) वंश (४) संतति (५) स्वर्गनां पांच वृक्षोमांनुं एक अथवा तेनुं फूल . संतानक पुं० स्वर्गनां पांच वृक्षोमांनु एक (२) एक लोक (गति) संतानसंधि पुं० (दीकरी परणावीने) सगपणथी संधि दृढ करवी ते संताप पुं० गरमी; दाह (२) दुःख; पीडा; परिताप (३) गुस्सो (४) पश्चात्ताप (५) तपस्या संतार पुं० ओळंगी जवू ते; पार करवू ते (२) ज्यांथी (नदी) पार करी शकाय ते स्थळ ; उतरण होडी संतारनौ स्त्री. (नदी) पार करवानी संतुष ४ प० राजी थवं; संतोष पामवो (२) -मां खूब रुचि होवी संतुष्ट वि० संतोष पामेलु;खुश थयेलं संत १ प० ओळंगवू (२) तर (३) पार पामर्रा (४) पहोंचq; पामवं (५)-मांथी बची जवं ; भागी छुटवं संतोष पुं० तृप्ति ; समाधान ; सुख (२) होय तेटलाथी राजी रहेवं ते । संत्यज १५० त्याग करवो (२) दूरथी तजq (३) बाकात राखq ___-प्रेरक० लूंटी लेवू ; पडावी लेवू संत्रस् १, ४ ५० बीवू; डर संत्रास पुं० भय; त्रास संदर्भ पुं० गूंथq ते; पहेरवं ते (२) एकीकरण; मिश्रण (३) सुसंगतता; पूर्वापर संबंध (४) ग्रंथ; साहित्यकृति संदर्शन न० जोवू-निहाळवं ते (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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