SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२४ समृष समुद्रकुक्षि समुद्रकुक्षि पुं० समुद्रनो किनारो समुद्रगा स्त्री० नदी [खेडनाएं समुद्रगामिन् वि० नौकाजीवी; वहाणवटुं समुद्रग्रह न० (ग्रीष्म ऋतु माटे) पाणी वच्चे बांधेलं घर. (२) स्नानागार समुद्रनेमि (-मी) स्त्री० पृथ्वी समतपत्नी स्त्री नदी समुद्रपर्यंत वि० दरियाथी वीटायेलं समुद्रफल न० एक औषधि समुद्रफेन पुं० समदर फीण; समुद्रफीण समुद्रमहिषी स्त्री० गंगानदी समुयायिन् वि० जुओ 'समुद्रगामिन्' समयोषित् स्त्री० नदी . समुद्ररसना स्त्री० पृथ्वी समुद्रलवण न० दरियाई मीठु समुद्रवेला स्त्री० समुद्रनी भरती (२) समुद्रनुं मोजु (३) समुद्र-किनारो समुद्रा स्त्री० खीजडो; शमी वृक्ष समुद्रांता स्त्री० पृथ्वी समुद्रह, १५० ऊंचु उपाडवू; वहन करवू (२) परणवू समुद्वाह पुं० ऊंचकवू ते (२) लग्न समुद्वाहित वि० ऊंचकतुं; वहन करतुं समुन्न वि० भींजायेलु; भी- (२) मलिन; मेल समुन्नत वि० ऊंचुं; उन्नत (२)मगरूर (३) प्रमाणिक; न्यायी। समुन्नति स्त्री० ऊंचकवू ते (२) ऊंचाई (३) महत्ता (४) ऊंचो होहो (५) समुपविश् ६५० बेसवु(२)उपर आडा पडद् (३) पडाव नाखवो समुपष्टंभ, समुपस्तंभ पुं० आधार; टेको समुपस्था १ उ० [समुपतिष्ठति-ते] पासे आवq (२) हमलो करवो (३) थएँ; बनवू (४)अति निकट ऊभुं रहे, (५) पामq; पहोंचवू [जगा समुपहर पुं० ढंकायेली के संतावानी समुपागत वि० पासे आवी पहोंचेलं समुपादाय अ० -ना उपायथी समुपे २५० मेळवq (२) भेगा थवू; मळवू (३) हुमलो करवो (४) पासे जवू; पहोंचवू (५) –ने भाग आवी पडवू (६) सहन करवू समुपोढ वि० ऊंचुं चडेलु; ऊगेलु (२) वधेलु (३) नजीक लावेलुं के आवेलं समुल्लस् १ प० चळकवं (२)नजरे पडवू ; देखावु (३) क्रीडा करवी समूढ वि० भेगुं करेलु; एकळु करेलु (२) परणेलु (३) संबंधमां आणेलु समूल वि० मूळ सहित समलम् अ० जडमूळथी समूह, १ उ० भेगुं करवू; एकळु कर समूह पुं० टोळं ; समुदाय समूहन न० भेगुं करवू ते (२) संचय समृ १ आ० [समृच्छते] मळवू; भेगा थर्बु (२) संघर्षमां आवq (३) भेगु करवं; रचवू -प्रेरक० [समर्पयति] आपी देवें; समर्पण कर (२) -उपर के-मां मूकवू (३)पार्छ वाळवं समृद्ध वि० समृद्धिवाळु; आबाद (२) सुखी; नसीबदार (३)पुष्कळ होय तेवू (४) सफळ (५) खूब विकसेलु (६) आखु; समग्र (७)वृद्धिंगत थयेलं समृद्धि स्त्री० आबादी ; ऐश्वर्य ; संपत्ति (२) अति वृद्धि; विपुलता समूष ४,५५० आबाद थq; समृद्ध थर्बु हाही (५) समृद्धि; चडती समुन्नद्ध वि० उंचुं; उन्नत (२) अत्यंत तीव्र (३) उद्धत (४) पोतानी जातने विद्वान माननाएं (५) सूजेलं; फूलेलं समुन्नम् १५० चडवू; ऊंचे जq समुन्नी १ उ० पूरेपूरुं ऊंचुं करवू (२) तारवq (३)चूकवी देवू (ऋण). समुन्नीत वि० ऊंचु करेलु; वधेलं समुपचित वि० भू० कृ०) वि० वृद्धिंगत; भेगुं थयेलं ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy