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________________ समुत्क्षेप ५२३ समुहकांची समुत्क्षेप पुं० उमेरवु-उल्लेखq ते(शब्द) समुदित वि० ऊंचे गयेलु; ऊगेलु (२) समुत्य वि० ऊभुंथतुं; ऊठतुं (२) -मांथी उन्नत; समृद्ध (३)बनेलं; थयेलु (४) उत्पन्न थतुं के थयेलं एकळु थयेलु (५)युक्त; सहित समुत्था १५० [समुत्तिष्ठति] ऊभा थर्बु । समुदीर्-प्रेरक० उच्चार; कहेवू (२) ऊठवू (२) फरीथी सजीवन थर्बु के उश्केर; प्रेर भानमां आवQ समुदीर्ण वि० खूब उश्केरायेलु (२) समुत्थान न० ऊठवू-ऊभा थq ते (२) उज्ज्वल; प्रकाशित (३) वृद्धिंगत फरीथी सजीवन थवं ते (३) पूरेपूरा समुद्ग पुं० ढांकणवाळी पेटी साजा थवं ते (४) धंधो; व्यवसाय समुद्गक पुं० ढांकणवाळी पेटी (२)एक (५) ऊंचे चडावq ते (ध्वज) प्रकारनी कृत्रिम काव्यरचना-जेनां बे समुत्पट् १० उ० पूरेपूरुं उपाडी नाखवू; अडधियां उच्चारणमां समान होय पण जडमूळथी उखेडी नाखवू (२) जुएं अर्थमां जुदां होय [(३)बोलेलं पाडवू (३) हांकी काढवू समुद्गीर्ण वि० ओकेलं (२) ऊंचकेलं समुत्पत् १५० कूद; ऊछळवू; ऊंचे समुदंड वि० उगामेलुं (२) भयंकर चड, (२) उद्भववं, पेदा थर्बु (३) समद्देश पुं० सविस्तर वर्णन (२) पूर्ण वहार धसी आवq (४) हुमलो करवो सूचन (३) गणतरी (४) सिद्धांत (५) लुप्त थq; विदाय थq समुद्धत वि० ऊंचु करेलुं; उगामेलुं (२) समुत्पत्ति स्त्री० जन्म; उत्पत्ति; मूळ उद्धत; गर्विष्ठ; असभ्य (३) तीव्र (२) बनवू-थर्बु ते समुद्धरण न० ऊंचकवू ते (२) उद्धार समुत्पद् ४ आ० थq; बनवू (२) उत्पन्न (३)बहार काढq ते (४) मुक्ति; मोक्ष; थर्बु ; नीकळवू (३) हाजर थq। छुटकारो (५) निर्मूळ कर, ते (६) समुत्पिज, समुत्पिजलक पुं० भारे अव्य- ओकी काढेलो खोराक (७) -मांथी वस्थामां पडेलु सैन्य(२)भारे अव्यवस्था काढी लेवं ते (हिस्सो) । समुत्सारण न०, समुत्सारणा स्त्री० समुद्धर्तृ पुं० उद्धारक; मुक्तिदाता खसेडी मूकवू ते; हांकी काढq ते समुढ १ उ० ऊंचकवू; ऊंचुं करवू (२) समुत्सुक वि० -ने माटे अधीर के आतुर उद्धार; बचावq (३)जडमूळथी नाश बनेलं (२) दिलगीर; खिन्न । करवो(४)-मांथी उपाडी लेवू (हिस्सो) समुत्सेध पुं० ऊंचाई (२)जाडाई समुद्भव पुं० उत्पत्ति समुदय पुं० उदय ; ऊगवू ते (२) चडती; समुदभेद पु० देखाव (२) विकास उत्कर्ष (३) समूह; ढगलो (४) आखं समुद्यत वि० ऊंचकेलं; ऊंचु करेलु (२) -समग्र एवं ते (५) महेसूल (६) उद्यम रजू करेलु; अलु (३)सज्ज; तत्पर; (७) युद्ध (८)हिसाबकिताब ; नाणां- तैयार (४)सिद्ध थयेलं; पूरुं थयेलं तंत्र (९) उत्पत्ति कारण समुद्यम पुं० ऊंचकवू ते (२) महा प्रयत्न समुदाचार पुं० शिष्टाचार (२)संबो- समुद्योग पुं० उद्यम; प्रयत्न (२) उप धननी योग्य रीत (३) हेतु; प्रयोजन योगमा लेवं ते समुदानय पुं० भेगुं करवू ते समुद्र वि० छापवाळू; महोरवाळू (२) समुदाय पुं० समूह; टोळं पुं० दरियो; सागर(३)एक खूब मोटी समुदि २५० ऊंचे जवू; ऊगq (२) युद्ध । __संख्या (एक लाख खर्व)... माटे तैयारी करवी (३)एकठा थq। समुद्रकांची स्त्री० पृथ्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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