SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूच्छा ३८६ मूषिकोत्कर मूर्छा स्त्री० बेशुद्धि; बेभान दशा (२) (५) पायो; मूळ स्थान (६) कोई पण पारा वगेरेने मारवानी प्रक्रिया (३) वस्तुनुं तळियु के तळियानो भाग (७) मूर्च्छना (अर्थ २, ३) पूंजी; मुडी (८) राजानोपोतानो प्रदेश मूपिगम पुं० मूर्छा दूर थवी ते. (९) मूळ कारण (१०) वर्गमूळ मच्छित ('मर्छ'- भू० कृ.)वि० मूर्छा (गणित०) (११) मूळ ग्रंथ के वाक्य पामेलं; बेशुद्ध (२) मूर्ख;अज्ञ (३)वधी (जेना पर टीका के भाष्य लखाय) गयेलं (४) मूंझायेलं मूलक वि० -मांथी नीकळतं; -ने मूर्छ १ प० जुओ 'मूर्छ' आधारे रहेलु (समासने अंते) मर्त वि० बेभान (२) मुर्ख (३) मूर्ति- मूलकारण न० मुख्य के मूळ कारण मान ; शरीरधारी (४) भौतिक ; स्थूल मूलधातिन् वि० समूळ नाश करनारं मति स्त्री० आकृति ; देह (२)अवतार; मलच्छिन्न वि० मूळ के शरूआतमांथी मूर्तिमान स्वरूप (३) (देव-देवीनी) "ज कापी नाखेलं के कपाई गयेलं प्रतिमा (४) शरीरनो अवयव मूलज वि० वृक्षोनां मूळ आगळ थयेलं मूर्तिधर वि० मूर्तिमान; देहधारी (जेम के राफडो) (२) मूल नक्षत्रमा मतिमत् वि० भौतिक; स्थूल (२) जन्मेलं शरीरधारी; मूर्तिमंत मूलद्रव्य, मूलधन न० मुद्दल ; मूडी मूर्तिसंचर वि० जुओ 'मूर्तिधर' मूलपुरुष पुं० वंशनो मूळपुरुष मूर्धग वि० माथा उपर बेठेलु मूलप्रकृति स्त्री० प्रकृति; जगतनुं आदि मज पुं० माथाना वाळ; केश (२) कारण (सांख्य०) माथा उपरनो टोप मूलप्रतीकार पुं० मालमिलकत अने मूर्धन् पुं० माथु; मस्तकं (२) ऊंचामां स्त्रीनी रक्षा करवी ते; धनदाररक्षा ऊंचो के आगळ पडतो भाग; टोच (३) मूलबल न० मुख्य अथवा वंशपरंपरा आगेवान (४) मोखरानो भाग चालतुं आवेलं लश्कर मूर्धन्य वि० माथामा रहेलु के माथा मूलभृत्य पुं० जूनो के वंशपरंपराथी उपर- (२)मुख्य (३) मूर्धस्थान संबंधी चालतो आवेलो नोकर के त्यांथी उच्चारातुं (ऋ, ऋ,,, ड्, मूलसाधन न० मुख्य साधन ; मुख्य उपाय द, ण, र् अने ष् -ए वर्णोनो वर्ग) मूलहर वि० निर्मूळ करनाएं; समूळ मूर्धाभिषिक्त वि० राज्याभिषेक करेलु नाश करनालं (२) मुख्य के खास (उदाहरण) मूलाधार न० दूंटी(२)गुदा अने उपस्थनी (३) पुं० अभिषिक्त राजा वच्चे आवेलुं चक्र (योग०) मूर्षात पुं० माथानी टोच मूलायतन न० मूळ निवासस्थान मा, मविका, मूर्वी स्त्री० मोरवेल (जेना मूलोच्छेद पुं० समूळ नाश तंतुनी धनुष्यनी पणछ के क्षत्रियनी मूल्य न० किमत (२) वेतन; रोजी जनोई बनावाय छे) (३) मूळ मूडी मूल न० मूळियु; जड (२) कोई पण मूष पुं० उंदर (२) मूस वस्तुनो नीचेनो भाग (३) कोई पण मूषक, मूषिक पुं० उंदर (२) चोर वस्तुनो छेडो (ज्यांथी ते बीजी साथे मूषिकोत्कर पुं० (उंदर वगेरेए) दर जोडाती होय) (४) शरूआत; प्रारंभ खोदतां करेलो माटीनो टेकरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy