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________________ ३७३ मंगलप्रतिसर मंगलप्रतिसर पुं० पति जीवे त्यां सुधी परणेली स्त्री वडे गळामां पहेराती सेर के दोरो मंगलमात्रभषण वि० मंगलसूत्र, केसर- तिलक वगेरे मांगलिक आभूषणोथी ज गणगारायेलं मंगलवादिन वि० अभिनंदन के आशी दिनां वचनो बोलनारुं मंगलवषभ पुं० शुभ चिह्नोवाळो बळद मंगलसमालंभन न० मांगलिक वस्तु ओनो लेप (शुभ प्रसंगे स्नान वखते लगाडाय छे) मंगलसूत्र न० जुओ 'मंगलप्रतिसर' मंगलाचरण न० कोई पण कार्य के ग्रंथरचनानी निर्विघ्न समाप्ति माटे शरूआतमां कराती प्रार्थना (२) आशीर्वाद उच्चारवो ते मंगलालंकृत वि० मांगलिक शणगारोथी विभूषित एवं मंगलालंभन न० शुभ पदार्थनो स्पर्श मंगलाष्टक न० लग्न प्रसंगे वर-वधूने आशीर्वाद माटे बोलातो श्लोक मंगल्य वि० शुभ कल्याणकर (२) सुंदर; मनोरम (३)पवित्र; पावन मंगुल न० पाप; अनिष्ट मंच पुं० पलंग (२) मांचडो; व्यास पीठ (३) खेतरमां बांधेलो माळो मंचक न० पलंग (२) मांचडो मंज १ उ० मांजवं; साफ करवू मंजरि स्त्री० कंपळ; फणगो (२) फूलनो गुच्छो (३) फूलनी दांडी (४) मोती (५) लता मंजरिचामर न० मंजरीरूपी चामर मंजरी स्त्री० जओ ‘मंजरि' मंजरीचामर न० जुओ ‘मंजरिचामर' मंजिष्ठ वि० खुलता लाल रंगनुं मंजिष्ठा स्त्री० मजीठ मंजीर पुं०, न० नूपुर मंडलवट मंजु वि० सुंदर; रम्य ; मधुर मंजुगिर वि० मधुर अवाजवाळू मंजुल वि० सुंदर; रम्य (२) मधुर; मीठे मंजुवाच, मंजुवादिन् वि० मीठं के मधुर बोलनारं मंजुषा, मंजुषिका स्त्री० पेटी; पटारो मंजुस्वन, मंजुस्वर वि० मीठा के मधुर अवाजवाळं मंजूषा, मंजूषिका स्त्री० जुओ 'मंजुषा' मंड १५०,१० उ० शणगारवू (२) १ आ० पहेरवं; धारण कर मंड पुं०, न० प्रवाही उपर जामती तर (२)भात, ओसामण (३)दूधनी मलाई (४) दारूनो मद्यार्कवाळो भाग __ मंडक पुं० एक जातनो पातळो पूडलो मंडन वि० शणगारतुं (२) घरेणांनुं शोखीन (३) न० घरेणां पहेरवां ते (४) घरेणुं; आभूषण मंडनप्रिय वि० घरेणांनुं शोखीन मंडप पुं० मांडवो (२) तंबू (३) देव माटे ऊभुं करेलु मकान मंडपिका स्त्री० नानो मांडवो मंडल वि० गोळाकार के वर्तुलाकार एवं (२) पुं० साप (३) कूतरो (४) न० कुंडाळु; वर्तुल; चक्र; कोई पण वर्तुलाकार वस्तु (५) जादुगरे दोरेलु जादुई कुंडाळं (६) बिंब (सूर्य-चंद्रन) (७) सूर्य के चंद्रनी आसपासनुं कुंडाळू (८) गृह-नक्षत्रनी कक्षा (९) टोळं; समुदाय (१०) जिल्लो; प्रांत (११) राज्यनी पासेना के दुरना पडोशीओथी बनतुं कुंडाळं (१२) ऋग्वेदना १० खंडमांनो दरेक (१३) कुंडाळं थाय तेवी गति के चाल (१४) जुगारलो पट मंडलनाभि पुं० वर्तुळजें केंद्र मंडलयति प० (गोळ फरवू; कुंडाळू बनाव) वड मंडलवट पुं० कुंडाळं बने ते रीते जामेलो THHUFTETTE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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