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________________ पूर्वबंधु २९२ पचासून पूर्वबंषु पुं० उत्तम के प्रथम मित्र पृ ९५० रक्ष पूर्वभव आगळनो जन्म पृ ६ आ० [प्रियते] काममां रोकावू पूर्वभाव पुं० पूर्वजन्म (मोटे भागे 'व्या' उपसर्ग साथे) पूर्वमीमांसा स्त्री० जैमिनि रचित कर्म- -प्रेरक० कामे लगाडवं; काम सोपवू कांड प्रधान दर्शन ('उत्तर मीमांसा' (२) मूक ; प्रेरवं; नाखवू अर्थात् वेदांतथी जुएं) पृ १० उ० पार लई जवु (२) सामे पूर्वरंग पुं० नाटकनो मंगलाचरणवाळो पार जq; पूरुं करवू (३) शक्तिमान " भाग [जन्मेलो प्रेम थर्बु (४) उद्धार करवो; बचावq पूर्वराग पुं० प्रत्यक्ष भेगा मळ्या पहेलां पृ ५ प० प्रसन्न करवू (२)खुश थवं पूर्वरात्र पुं० रात्रीनो प्रथम भाग पृक्त ('पृच्' न भू००)वि० मिश्रित; पूर्ववयम् वि० जुवान (२)न० जुवानी भळेलं (२) स्पर्शायेल; संबद्ध (३) पूर्ववतिन् वि० पहेलांनु भरेलं; पूर्ण पूर्ववत न० पहेलां बनेलो बनाव (२) पच १५०,१० उ० स्पर्श करवो; संबंधपहेलांचें चरित्र मां आवq (२) विरोध करवो; रुकापूर्व संचित वि० अगाउ एकळु करेल वट करवी (३)२ आ० संबंधमां आवq "(जेमके, आगळना जन्ममां) (४) ७ प० जोड ; संबंध करवो पूर्वसागर पुं० पूर्व समुद्र पच्छक वि० तपास करनारं; पूछनाएं पूर्वगम वि० आगळ - पहेलां जनाएं पृच्छा स्त्री० पूछपरछ (२) प्रश्न पूर्वा स्त्री० पूर्व दिशा (भविष्यने लगतो) पूर्वाचल, पूर्वाद्रि पुं० उदयाचल पर्वत पत् स्त्री० लश्कर; सेना (पहेली पांच पूर्वापर वि० पूर्व- अने पश्चिम- (२) विभक्तिनां रूपो नथी; अने पछी पहेलं अने छेल्लु (३) प्रारंभर्नु अने 'पतना' शब्दने बदले द्वितीया द्वि० पछीन (४) न० पहेलां जे होय ते अने व० पछी विकल्पे उमेराय छे) पछी जे होय ते पृतना स्त्री० सेना (२) युद्ध पूर्वार्ष पुं०, न० प्रथमनो अर्थो भाग (२) पृथक् अ० जुएं जुएं; छूटुं छूटुं (२) शरीरनो उपरनो भाग भिन्न होय तेम (३) एक बाजुए; पूर्वाल पुं० बपोरनी पहेलांनो भाग अलग (४) सिवाय ; विना पूविक वि० पहेलांन; अगाउनु पृथक्करण न०, पृथक्रिया स्त्री० घटक पूर्वेतर वि० पश्चिमन तत्त्वो जुदां पाडवां ते [भिन्न) पूर्वेस अ० आगले दिवसे; गई काले पृथगात्मन् पुं० जीवात्मा ('परमात्मा'थी (२)दिवसना प्रारंभमां; सवारे । पृथग्जन पुं० असंस्कारी माणस (२) पूर्वोक्त, पूर्वोदित वि० आगळ कहेलं मूर्ख ; अज्ञ (३) दुष्ट ; पापी पूष पुं० पोष महिनो पृथग्विध वि० विविध प्रकारन पूषन् पुं० सूर्य पृथवी स्त्री० पृथ्वी पूषात्मज पुं० इंद्र (२) मेघ (३) कर्णन पथा स्त्री० कुंती पूषानुज पुं० वरसाद पृथाज, पृथातनय, पृथासुत, पृथासूनु प३५० पूर्ण कर (२)-मांथी बहार पुं० कुंतीना (युधिष्ठिर, भीम अने काढ; बचाव; रक्षण करवू (३) अर्जुन ए) पुत्रोमांनो दरेक (मुख्यत्वे पाळg; वृद्धिंगत करवू अर्जुन माटे वपराय छे) [नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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