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________________ २८४ पितामह पिड पितामह पुं० पितानो पिता (२) ब्रह्मा पिशाच पुं० भूत-प्रेत जेवी एक हीन योनि पितृ पुं० पिता पिशाचिका स्त्री० पिशाचणी पितकानन न० स्मशान [आदि क्रिया । पिशित न० मांस पितकृत्य न०,पितृक्रिया स्त्री० पिंडदान । पिशिताशन, पिशिताशिन् पुं० मांसभक्षी पितक्षय पुं० मृत्युतिथि (पितृनी) - राक्षस ; पिशाच (२) वरु पितृदेव वि०पिताने पूजनाएं। पिशुन वि० चाडियु; चुगलीखोर (२) पितदेवत्य न०पितओने निमित्त करातो चाडी खातुं; जणावतुं; याद करावतुं एक यज्ञ [पितानी मा-दादी (३) क्रूर ; घातकी (४) नीच;अधम पितृप्रसू स्त्री० सायंकाळ ; संध्या (२) । पिशुनयति प० ('दर्शावी दे छे') पितृवन न० स्मशान पिशुनित वि० कही दीधेलं; बतावी पितृव्य पुं० बापनो भाई - काको दीधेलु [करवो पितृसमन् न० स्मशान पिष् ७ प० पीस; दळg (२) नाश पितृस्वसृ स्त्री० फोई पिष्ट ('पिष्'- भू०कृ०) वि० दळेलु; पित्त न० शरीरनी त्रण धातुओमांनी । पीसेलु (२) दबावेलु; कचरेलु (३) एक (कफ-पित्त-वात) न० भूको चूरो;लोट व्यर्थ प्रवृत्ति पित्र्य वि. पिता संबंधी (२) पितृ- पिष्टपेषण न० (लोटने दळवा जेवी) संबंधी (३)पुं० मोटो भाई पिष्टसौरभ न० सुखड; चंदन । पिषा (अपि+धा) ३ उ० बंध करवू; पिष्टात पुं० अबील; सुगंधी चूर्ण ढांक; छुपावQ (२) रुकावट करवी पिष्टोदक न० लोटने पाणीमां ओगाळी पिषातव्य वि० बंध करवा योग्य; करेलं (दूध जेवं) प्रवाही ढांकवा योग्य पिस्पृक्षु वि० स्पर्श करवानी इच्छावाळं पिधान न० जुओ 'अपिधान' पिहित वि० जुओ 'अपिहित' पिनद्ध वि० जुओ 'अपिनद्ध' [ढांकQ पिंग वि० दीवानी ज्योत जेवा रातापिनह ४ उ० बांधवं (२) पहेरवं (३) पीळा रंगनुं पिनाके पुं०, न० शिवनुं धनुष्य पिंगल वि० पीळचटा-बदामी रंगनुं पिनाकधूक, पिनाकपाणि, पिनाकिन् पुं० (२)पुं० बदामी रंग (३)वांदरो(४) शिव ('पिनाक' धनुष्यवाळा) । एक ऋषि (छंदःशास्त्र रचनार) पिपासा स्त्री॰ तरस [तरस्यु पिंगलिमन् पुं० पीळचटो- बदामी रंग पिपासित, पिपासिन् , पिपासु वि० पिंगाक्ष वि. लालाश पडती आंखवाळं पिपील पुं० मकोडो (२)पुं० शिव(३)वानर [तेवो रंग पिपीलिक पुं० कीडी (२) न० एक पिंजर वि. लालाश पडतुं पीळं (२)पुं० जातनुं सोनू (कीडोओए भेगुं करेलु) पिंजरिक न० एक जातनुं वाद्य पिपीलिका स्त्री० कीडी (मादा) पिंजरित वि० पीळचटा- बदामी गर्नु पिप्पल पुं० पीपळो (२) न० तेनुं टेटुं। पिंड वि० धन; नक्कर (२) गोळो पिप्पलि (-ली) स्त्री० लांबी पीपर वाळेलं; पिंडो करेलु (३) पुं०, न० पिप्लु पुं० शरीर उपरनो तल गोळो (४) ढेडु (५) कोळियो (६) पिब वि० पीनारं; पीतुं श्राद्धमां पितओने अपातो भातनोगोळो पियाल पुं० एक झाड (७) अन्न; खोराक (८) आजीविका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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