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________________ निष्पत्राक २५२ निस्तंति निष्पत्राकृ ८ उ० जोरथी बाण मारवू निष्फल वि० फळ विनान (२) व्यर्थ ; (जेयी बाण पीछां सुधी आरपार फोगट (३)निरर्थक; नका, (४)वेध्य नीकळी जाय) (२) खूब वेदना निष्यंद पुं० झर-टपकवू ते (२)स्राव; थाय तेम कर प्रवाह; टपकतो रस (३) परिणाम निष्पद् ४ आ० -मांथी नीकळवू (२) निस् अ० क्रियापद पूर्वे -थी दूर, –थी जन्मवं; उत्पन्न थर्बु बहार, खातरी, पूरेपूरु होवापणुं, निष्पन्न वि० उत्पन्न (२) सिद्ध ; समाप्त भोग, उल्लंघन वगेरे अर्थमां वपराय निष्परिकर वि० तैयारी वगरनुं छे (२) धातु-साधित नहि एवां निष्परिग्रह वि० परिग्रह के मालमत्ता नामो पहेला –थी बहार, -थी दूर, विनानुं (२) पुं० तपस्वी; त्यागी विनानु, रहित -एवा अर्थमां वपनिष्पर्याय वि० क्रम विनानुं राय छ (स्वरो अने घोष व्यंजनो पूर्वे निष्पंक चि० कादव विनानुं; स्वच्छ 'निस्' ना 'स्' नो 'र' थई जाय छे; निष्पंद वि० स्थिर; कंपरहित (२) ऊष्माक्षरो पहेलां तेनो विसर्ग थई पुं० स्नेहनी गांठ (३) समूह जाय छे; 'च', 'छ' पहेला 'श्' थाय छे निष्पाप वि० पापरहित ; निर्दोष अने 'क' तथा 'प्' पहेला 'ष' थाय छे) निष्पिष् ७ ५० भूको करवो; दळवू निसर्ग पुं० आपी देवू ते ; बक्षिस (२) (२) घसावं; छोला (३) हाथ मळत्याग करतो ते (३) तजी देवं ते चोळवा (४) दांत पोसवा। (४) सृष्टि (५)स्वभाव ; प्रकृति निष्पीडन न० दबावq ते ; निचोववं ते निसर्गज वि० कुदरती ; स्वभावसिद्ध निष्पीडित वि० दबावेलु; निचोवेल निसर्गनिपुण वि० कुदरती रीते ज कुशळ निष्पूर्त न० वाव-कूवा, धर्मशाळा वगेरे निसर्गभिन्न वि० कुदरती रीते ज जदं बंधाववां ते निसर्गसिद्ध वि० जुओ 'निसर्गज' निष्पेष पुं०, निष्पेषण न० खूब दबावर्चा निसूदन वि० नाश करतु (२) न० ते (२) कचरी नाखवु ते (३) दळी हिंसा ; वध [सोंप (३)आपी देव नाख ते (४) अफाळवू के पछाडवू ते निष्प्रतिकार, निष्प्रतिक्रिय वि० उपचार निसज ६५० छुटुं करवं; छोडवं (२) न थई शके तेQ (२) निर्विघ्न ; रुकावट निसृष्ट वि० आपेल (२) तजेल (३) विनानं परवानगी आपेल निष्प्रतिष वि० रुकावट विनानुं निसृष्टार्थ ३० एलची; दूत; वकील निष्प्रतिद्वंद्व वि० शत्रु के हरोक विनान निसष्टार्थदती स्त्री० नायक-नायिकाना निष्प्रतीकार वि० जुओ 'निष्प्रतिकार' मनोरथ जाणी से सफळ थाय तेवं कार्य निष्प्रत्याश वि० निराश; हताश पोतानो जाते ज करनारी निष्प्रत्यूह वि० विघ्न के रुकावट विनान निस्तमस्क वि० अंधारा विनानं ; निष्प्रभ वि० निस्तेज (२) कमजोर प्रकाशित (२)पापरहित निष्प्रयोजन वि० कारण वगरनु (२) निस्तल वि० तळिया विनान (२) प्रयोजन विनानु (३) निरुपयोगी वर्तुळाकार (३) चल ; हालतु निष्प्रवाण (-णि) न० नवं - कोरं वस्त्र निस्तंतु वि० संतान विनानु (२) ब्रह्मनिष्प्राण वि० मृत्यु पामेलु ; निर्जीव चारी चिपळ ; नोरोगी (२) नमाल; निर्बळ निस्तंद्र (-द्रि) वि० आळसु नहि तेवू (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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