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________________ - - - अथर्वण अथर्वण पुं० शंकर भगवान(२)अथर्व वेद अथर्वन् पुं० एक ब्राह्मण (२) एक मुनि (३) अथर्व वेद (४)शंकर (५)वसिष्ठ अथवा अ० किंवा; के बितावे अथातः अ० 'मार्ट' 'हवे' - एवो अर्थ अयो अ० ('अथ' शब्दना जेवा घणाखरा अर्थमां) करवो अद् २ प० खावं; खाई जq (२) नाश अदक्षिण वि०डाबं(२)होशियार-चालाक नहि तेवू (३) दक्षिणा वगरनु (यज्ञ इ०) अदत्त वि० नहि अपायेलं (२) अयोग्य रीते अपायेलु (३) नहि परणावेलु अदत्ता स्त्री० नहि परणावेली कन्या अदत्तादायिन् वि० जे लेवानी अनुमति न होय ते लेनार (चोर) अदभ्र वि० पुष्कळ अदय वि० क्रूर; निर्दय अदयम् अ० खूब ज तीव्रताथी-जुस्साथी अदर्शन न० जोवु नहि ते (२) दर्शननो अभाव - लोप (३) गेरहाजरी अदस् वि० (स० ना०) पेलं अदायाद वि० वारस वगरनु (२) वारस थवानो जेने हक न होय तेवू अदिति स्त्री० कश्यप ऋषिनी पत्नी; -देवोनी माता (२) पृथ्वी(३) वाणी(४) गाय [(२) पैसादार अदीन वि० दीन नहि तेवू; जुस्सादार अवश्य वि० देखी न शकाय तेवू अदृष्ट वि० नहि जोयेलं (२) अणधायु (३) न० भाग्य; नसीब (४) नहि कल्पेली आफत अदृष्टि वि० आंधळू (२) स्त्री० क्रूर दृष्टि; वक्र दृष्टि (३) न देखावं ते अदेय वि० न आपवा के आपी देवा जेवू अदेश पुं० अयोग्य के अनुचित स्थान अद्धा अ० यथार्थ होय तेम (२) स्पष्ट होय तेम (३) नक्की होय तेम (४)आम; आ प्रमाणे अपरस्मात् अद्भुत वि० आश्चर्यकारक (२) अलौकिक (३)पुं० अद्भुत रस (४) न० आश्चर्य (५) आश्चर्यकारक बनाव अमर वि० अकरांतियुं खानाएं अध अ० आज; आजे अब वि० खावा लायक [आधुनिक अद्यतन वि० आजने लगतुं; आजY (२) अद्यपूर्वम् अ. आज पहेलां अद्यप्रभृति अ० आजथी मांडीने अद्यापि अ० हजु पण अद्यावधि अ० आजथी मांडीने अद्रव्य न० नकामी वस्तु अद्रि पुं० पर्वत (२)सूर्य(३)वृक्ष(४) इंद्रनुं वन (५) वादळ; वादळांनो समूह (६) एक जातनुं परिमाण-माप (७) सात' -नी संख्या अद्रिकन्या स्त्री० पार्वती अद्विपति पुं० हिमालय पर्वत अद्रिसार पुं० लोढुं अद्रिसुता स्त्री० पार्वती अद्रिहन पुं० इन्द्र अद्रोह पुं० द्रोहनो अभाव अद्वय वि० एक (२) अद्वितीय (३) न० ऐक्य; अद्वैत अद्वितीय वि० अजोड सर्वश्रेष्ठ(२)एकलं अद्वैत वि० द्वैतभाव-रहित (२) न० ऐक्य; अभेद अद्वतवादिन् पुं० वेदांती अवैध वि० जुदाईना भाव विनानुं अधम वि० नीच; हलकुं (२) दुष्ट अधमर्ण, अषणिक पुं० देवादार अघमांग न० पग अधर वि० नीचे- (२) हलकू; नीच (३) आगळD के पाछळy (४) पुं० नीचलो होठ अधरतः,अपरतात् अ० नीचे;तळेतळिये अधरपान न० होठ उपर चुम्बन अघरस्तात्, अधरस्मात् अ० नीचे तळे; तळिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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