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________________ त्रिदंड २०१ त्रिनोतस् त्रिदंड पुं० संन्यासी धारण करे छे ते त्रिमार्गा स्त्री० गंगानदी -त्रण दंडनो समुदाय (२) मन,वाणी त्रिमूर्ति पुं० ब्रह्मा, विष्णु, शंकर -ए अने कर्मनो निग्रह [संन्यासी त्रणेनुं भेगुं स्वरूप त्रिदंडिन् पुं० त्रिदंड धारण करनार- त्रियामा स्त्री० रात्री त्रिदिव न० स्वर्ग (२)अंतरीक्ष ; आकाश त्रिलिंग वि० नर-नारी-नान्यतर -ए त्रिदिवगत वि० स्वर्गवासी - मृत त्रण जातिवाळं (विशेषण) (व्या०) त्रिदिवालय पं० स्वर्ग त्रिलोक न० त्रण लोकनो समूह (स्वर्गत्रिदिवौकस् पुं० देव मृत्यु-पाताळ) त्रिदोष न० वात, पित्त तथा कफना बिलोकनाथ पुं० इंद्र (२) शिव प्रकोपथी थतो रोग - सनेपात त्रिलोकरक्षिन् वि० त्रणे लोकतुं रक्षण त्रिधा अ० त्रण प्रकारे; त्रण भागमां करनारं त्रिधामन् पुं० विष्णु (२) व्यास (३) त्रिलोकी स्त्री० जुओ 'त्रिलोक' शिव (४) अग्नि (५) मृत्यु (६) त्रिलोचन पुं० त्रिनेत्र - शिव न० स्वर्ग त्रिवर्ग पुं० धर्म, अर्थ अने काम -ए त्रण त्रिनयन, त्रिनेत्र पुं० शंकर पुरुषार्थनो समूह (२) सत्त्व, रजस् त्रिपथ न० स्वर्ग, मृत्यु, पाताळ -ए अने तमस् -ए त्रण गुणनो समूह त्रणनो समूह (२) त्रण रस्ता मळे त्रिवलि (-ली) स्त्री० पेट उपरना त्रण तेवू स्थान - त्रिभेटो वाटा (सुंदर स्त्री- लक्षण) त्रिपथगा, त्रिपथगामिनी स्त्री० गंगानदी त्रिवारम् अ० त्रण वार; त्रण वखत त्रिपदिका स्त्री० त्रण पायावाळी बेठक त्रिविक्रम पुं० विष्णु (वामनावतारमा) के घोडी (३) हाथीनो तंग त्रिविष्टप न० स्वर्ग [करीने करेलु त्रिपदी स्त्री० त्रिपाई (२)गायत्री छंद त्रिवत् वि० त्रण गणुं करेल; त्रण भेगां त्रिपाद् वि० त्रण पाद के चरणवाळू त्रिवृत्ति स्त्री० यज्ञ-अध्ययन-भिक्षा -ए (२) त्रण चतुर्थांश (३) पुं० विष्णु त्रण वडे प्राप्त कराती आजीविका (वामनावतारमा) त्रिवेणि (-णी) स्त्री० गंगा, यमुना त्रिपिटक न० सुत्त-विनय-अभिधम्म -ए __अने सरस्वतीनं संगमस्थान त्रण प्रकारना बौद्ध धर्मग्रंथोनो समूह त्रिवेणु पुं० संन्यासीनो त्रिदंड (२). त्रिपुर पुं० त्रिपुरासुर (२)न० तेनी त्रण रथनो धोरियो - ऊध नगरीओनो समूह [शंकर त्रिशंकु पुं० एक सूर्यवंशी राजा. त्रिपुरष्न, त्रिपुरवहन, त्रिपुरारि पुं० हरिश्चंद्रनो पिता त्रिपुंड, त्रिपुंडक पुं० त्रण लीटीनुं तिलक त्रिशिख न० त्रिशूळ त्रिफला स्त्री० हरडां, बहेडां अने त्रिशूल न० त्रण अणीओवाळु एक आ. आमळां -ए त्रणनो समुदाय त्रिस् अ० त्रण वार; त्रण वखत त्रिभंग न० त्रण ठेकाणेथी वळेलं होय त्रिसरक न० त्रण वार मद्य पी है। एवी शरीरनी मुद्रा त्रिस्थली स्त्री० काशी, प्रयाग अने वा त्रिभुज न० त्रिकोण - ए त्रण धाम [त्रणनो स) ५५ त्रिभुवन न० त्रण लोकनो समूह त्रिलोक त्रिस्थान न० माथु, गळं अने छार त्रिभुवनगुरु पुं० शिव त्रिस्रोतस् स्त्री० गंगानदी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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