SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवेय ग्रहमामणी १६२ (६) उच्चार ते; लेवू ते (नाम)(७)नव प्रामिक वि० गामडानु; ग्राम्य ; असभ्य ग्रहोमांनो दरेक (८) राहु (९)अटकाव; (२)पुं० गामडियो(३)गामनो मुखी विघ्न (१०) मगर (११) भूत, पिशाच ग्रामीण वि० गामडियु; असभ्य (२) वगेरे (१२)इंद्रिय (१३) इंद्रियथीथतुं गामडानु (३)पुं० गामडानो माणस ज्ञान (१४) दया; कृपा (१५) उद्योग ग्रामेय वि० गामडा-; गामडियुं खंत (१६) धनुष्यनो मध्य भाग-पकड ग्राम्य वि० गामडान; गामडामा रहेतुं (१७)हेतु; उद्देश (१८)केद (२) पाळेलू (जानवर) (३) खेडेलं ग्रहग्रामणी पुं० सूर्य ('वन्य' थी ऊलटुं) (४) असभ्य; ग्रहण न० लेवु - पकडq ते (२) स्वी अश्लील (५) पुं० गामडियो (६) न० कार (३) उल्लेखq ते; उच्चारवं ते ग्राम्य भाषा (७) प्राकृत वगेरे भाषा . (४) (वस्त्र)पहेरवू ते (५)जाणवू - ('संस्कृत'थी जुदी) (८) कामभोग समजवू ते (६) शीखवू ते ; अभ्यास, प्रावन् पुं० पथ्थर; खडक (२)पर्वत ते (७) इंद्रिय (८) आकर्षण (९) पास पुं० कोळियो (२) अन्न ; खोराक लग्न (१०) केदी (११) पडघो (३)गळवू-गळी जq ते (४)ग्रहण ग्रहपीडन न० ग्रहण (सूर्य-चंद्रनुं) ग्रहानेसर पुं० चंद्र प्राह वि० पकडनाएं; ग्रहण करनालं; प्रहालुंचन न० शिकारने फाडी खावो ते लेनारुं (२) पुं० पकडवं ते (३)स्वीकार अहिल वि० लेवानी इच्छावाळू (२) (४) केदी (५) मगर (६)ज्ञान; समज(७) जक्की; हठीलु (३) भूतपिशाचना । दुराग्रह; हठ (८) निर्णय; निश्चय वळगाडवाळू दिवादार ग्राहक वि० लेनाएं; ग्रहण करनारं; ग्रहीत वि० लेनाएं(२)खरीदनाएं (३) पकडनारु (२) समजावनाएं (३) ग्रंथ् ९ प०, १० उ० गूंथq; परोवq खरीदनाएं (४) समावेश करतुं (२) गोठवq (३) रचवू. प्राहकत्व न० ग्रहणशक्ति; समजशक्ति ग्रंथ पं० बांधवू-ग्रंथवं ते (२)पुस्तक; प्राहम् अ० (समासने अंते) पकडीने साहित्यकृति (३) मिलकत ग्राहित वि० पकडवा के लेवा फरज पडी ग्रंथि स्त्री० गांठ (२)वस्त्र के दोरडानी होय ते, (२) शीखवाडायेखें गांठ (३) शरीरनो सांधो पाहिन् वि० पकडनारु; लेनाएं (२) ग्रंथिक पुं० ज्योतिषी; जोषी चूंटनाएं; वीणनाएं (३)समावतुं (४) ग्रंथिछेदक पुं० सीसाकातर आकर्षतुं (५) मेळवतुं (६)पसंद करतुं प्रथित वि० जुओ 'ग्रथित' (७)देखतुं; जाणतुं(८)खरीदतुं प्रथिन् पुं० पुस्तको वांचनार; पुस्तकियो ग्राह्य वि० लेवा-पकडवा योग्य (२) (२) विद्वान बांधेलं समजवा योग्य (३)स्वीकारवा योग्य ग्रंथिमत् वि० गांठोवाळू (२) गांठ वडे ग्रीवा स्त्री० डोक; गळं प्राम पुं० गामडं (२) समुदाय; समूह ग्रीष्म वि० उष्ण; गरम (२) पुं० (३) मूर्छनाना आश्रयरूप स्वरसमूह उनाळो (३) ताप; गरमी । ग्रामचैत्य पुं० गामनो पवित्र पीपळो । ग्रीष्मवन न० गरमीमां सेवाती कुंज प्रामणी वि० श्रेष्ठ; मुख्य (गाम के प्रैव, प्रैवेय वि० कंठy; गळा, (२) ज्ञातिमां) (२)पुं० गामनो मुखी (३) न० कंठभूषण; हार (३) हाथीना आगेवान; नेता गळानी सांकळ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy