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________________ सिन्न १५० खिन्न ('खिद्' नुं भू० कृ०) वि० खेद खेद पुं० थाक (२) हताशा; निराशा पामेल (२) थाकी गयेलु (३) दुःख ; पीडा (४) दिलगीरी खिल न पडतर जमीन; खेड्या खेदित वि० खेद पामेलं; त्रासेलु वगरनुं खेतर (२) खाली जगा (३) खेल १५० हालवू; कंपवू; झूलq (२) पूर्तिरूपे उमेरेलु (४) अवशेष रम, खिलीकृत वि० बरबाद करेलु ; उजाडेलु खेल वि० रमतियाळ (२)हालतुं; कंपतुं (२) अवरोधेलं; रुकावट करेलु खेलन न० हलाव ते (२) खेल; खिलीभूत वि० पसार न थई शकाय क्रीडा (३) नाटक; प्रयोग तेवू; रुकावटवाळू (२) अशक्य बनेलं; खेला स्त्री० क्रीडा; खेल; रमत बंध पडेलु खेलि स्त्री० रमत; क्रीडा खुर पुं० खरी खेसर पुं० खच्चर खुरक्षेप पुं० जुओ 'खुरापात' खोड १५० लंगडा खुरन्यास पुं० खरीनी छाप पडवी ते । खोड वि० लूलु; लंगडु; खोडु खुरली स्त्री० शस्त्रास्त्रनी कसरत के खोल न० माथान रक्षण करवा अभ्यास पिछडावी ते (२) लात पहेरातो टोप (सैनिकनो) खुराघात पुं० (चालवाथी) पगनी खरी ख्या २ प० कहेवू (२) वर्णवq खुल्ल वि० नानुं (२) नीच; क्षुद्र । __-प्रेरक० [ख्यापयति प्रसिद्ध करवू खेचर वि० आकाशमां गति करतुं (२) (२) वर्णवयु (३) प्रशंस, पुं० पक्षी (३) आकाशचारी विद्या- ख्यात (ख्या' नुं भू० कृ०) वि० घर के गांधर्व (४) ग्रह कहेवायेलु (२) प्रख्यात (३) वर्णवेलं खेचरी स्त्री० दुर्गा (२)विद्याधरी (३) (४) वगोवायेलं आकाशमां ऊडी काय तेवी सिद्धि ख्याति स्त्री० कीर्ति (२) प्रसिद्धि खेचरोत्तम पुं० सूर्य (३) प्रशंसा (४) नाम (५) वर्णन खेट पुं० गामडु (२) पुं०, न० ढाल (६) ज्ञान; समज (३) न० चामडु (४) (समासने छेडे) ख्यापन न० प्रसिद्ध करवू ते; जाहेर दुःखी, हलकुं, तुच्छ -एवो भाव बतावे करवू ते (२) कबूल करवु ते । (उदा० 'नागरखेट' = तुच्छ शहेर) ख्यापित वि० जाहेर थयेलं; वर्णवायेलं खेटक पुं० नानुं गामडं (२)पुं०, न० ढाल (२) वगोवायेलु ग वि० (मात्र समासने छेडे) जनाएं, जतुं, रहेतुं, समागम करतुं -ए अर्थमां गगन न० आकाश; आभ [वस्तु गगनकुसुम न० आकाशकुसुम असंभवित गगनगति पुं० देव (२) ग्रह गगनचर वि. आकाशमां जेनी गति छे एवं (२) पुं० पक्षी (३)ग्रह (४) देव गगनलिह, वि० गगनचुंबी; घj ऊंचु गगनविहारिन् वि० आकाशचारी गगनसद् वि० आकाशमां रहेनाएं (२) पुं० देव गगनसिंधु स्त्री० आकाशगंगा गगनांगना स्त्री० अप्सरा गगनेचर वि० जुओ 'गगनचर' गज पुं० हाथी (२) लंबाईनुं एक माप (सामान्य ३० आंगळ जेटलु) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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