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________________ कोशक १४२ कोल्य शब्दकोश (९) बिडायेलु फूल (१०) लग्न पहेला हाथे दोरो बांधवानो विधि दडो; गोळो (६)आनंद; सुख कोशक पुं० ईंडु कौतुकक्रिया स्त्री० लग्नक्रिया कोशकार पुं० म्यान बनावनार (२) कौतूहल न० कुतूहल; इंतेजारी रेशमनो कीडो(३)शब्दकोश रचनार कौपीन न० गुह्यांग; उपस्थ (२)लंगोटी कोशकारक पुं० रेशमनो कीडो (३) फाटेल वस्त्र (४) कफनी (५) कोशकृत् पुं० शेलडी पाप; दुष्कर्म कोशगृह न० तिजोरी; संग्रहस्थान कौबेर वि० कुबेरनु; कुबेरने लगतुं कोशचंचु पुं० बगलो [खजानची कौबेरी स्त्री० उत्तर दिशा कोशनायक, कोशपालक पुं० कोशाध्यक्ष, कौमार वि० जुवान; कुंवारुं (२)नाजुक कोशलिक पुं० लांच (३)युद्धना देव - कार्तिकेयने लगतुं कोशवासिन् पुं० कोशमा रहेनार कीडो (४) न० बाळपण (५) कुंवारा रहेवू ते कोशवृद्धि स्त्री० संपत्तिनो वधारो (२) कौमारक न० वाळपण; नानपण अंडवृद्धि कौमारभृत्य न० नानां बाळकोने उछेकोशवेश्मन् न० भंडार;कोठार; तिजोरी रवाते; बाळकोनी संभाळ राखवी ते कोशशायिका स्त्री० तरवार (२)छरी कौमारराज्य न० युवराजनुं पद कोशशद्धि स्त्री० अग्निपरीक्षा जेवी कौमारव्रत न० कुंवारा - ब्रह्मचारी कसोटीथी शुद्ध ठरवू ते रहेवान व्रत कोशागार पुं०, न० धनभंडार; तिजोरी कौमुद पुं० कार्तिकमास (२)कोठार कौमवी स्त्री० ज्योत्स्ना; चांदनी (२) कोशाध्यक्ष पुं० खजानची (२) कुवेर तेना जेवी शीतळ मुखप्रद वस्तु (३) कोष पुं०, न० जुओ 'कोश' । कार्तिक पूर्णिमा (४) अश्विन-पूर्णिमा कोष्ठ पुं० पेटनो मध्यभाग; कोठो (२) (५) उत्सव (रोशनी करवानो) कोठार (३) घरनो मध्यभाग (४) कौमोदकी, कौमोदी स्त्री विष्णुनी गदा न० कोट ; भींत (५) कोटलुं कौरव वि० कुरुवंशोत्पन्न ; कुरुवंशन कोष्ठागार पुं० कोठार; भंडार कौरव्य पुं० कुरुनो वंशज (२) कुरुओनो कोष्ण वि० थोडुगरम; हशेकुं राजा कौक्षेय वि० कूखनु; पेटमांनुं (२) केडे। कौल वि० वंशपरंपरानु; कुळतुं () ऊंचा बांधेलु; म्यानमां रहेलं कुळy (३)पुं० वाममार्गी; शाक्त (४) कौक्षेयक पुं० तरवार न० वाममार्ग; शाक्त पंथ कौटिल्य पुं० चाणक्य (२) न० कुटिलता; कौलिक वि० वंशपरंपरागत (२)कुळनं; वक्रता (३) कपट कुटुंबन (३)पुं० शाक्त (४) वणकर कौटुंबिक वि० कुटुंबचें; कुटुंबने लगतुं कौलीन वि० कुलीन ; ऊंचा कुळy (२) (२) कुटुंबनो मुख्य माणस पुं० शाक्त (३)न० लोकापवाद ; आळ कोणय पुं० राक्षस (४)दुष्कर्म ; कुकर्म (५) कुलीनता कौतुक न इच्छा; आतुरता; अधीराई कौलीन्य न० कुलीनता; कुळवानपणुं (२)जिज्ञासा (३)कुतूहल जाग्रत करे कौल्य वि० कुलीन ; ऊंचा कुळमां जन्मेलु एवं कई पण (४) उत्सव ; क्रीडा (५) (२) न० कुलीनता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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