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________________ कुटी १३४ कुटी स्त्री० झुपडी (२) लतागह कुतुप पुं०, कुतू स्त्री० चामडानी थेली कुटीर पुं०, न० झुपडी (तेल वगेरे भरवानी) कुटुंब पुं०, न० परिवार; वंश (२) कुतूहल वि० आश्चर्यकारक (२) श्रेष्ठ बैरी छोकरां वगेरे घरनां माणसोनो (३) वखणायेलु (४)न० उत्सुकता; समूह (३) घरसंसार; तेनी उपाधि इंतेजारी (५) आश्चर्यकारक वस्तु (६) कुटुंबिक, कुटुंबिन पुं०परणेलो-कुटुंब- आनंद; सुख वाळो माणस; जेना उपर घरनी जवाब- कुतोऽपि अ० क्यांयथी पण दारी होय ते मुख्य स्त्री; गहिणी कुत्र अ० क्या? (२)क्यांय (३)आ क्यां कुटुंबिनी स्त्री० कुटुंबवाळी - कुटुबनी ने ए क्या ? केटलुं जुएं -विरोधी ? कुट्ट १० उ० कापq (२) कूटवू; कुत्रचन अ० क्यांक खांडवु (३) गाळ भांडवी कुत्रचित् अ० कोईक ठेकाणे ; क्यांक कुट्टन न० कापवू ते (२) खांडवु ते (३) कुत्रत्य अ० क्या होनाएं? क्यां रहेनारुं? गाळ देवी ते कुत्रापि अ० कोई ठेकाणे ; क्यांक कुटनी स्त्री० कूटणी कुत्स् १० आ० निंदा करवी कुट्टाक बि. कापनाएं; छेदनाएं। कुत्सन न०, कुत्सा स्त्री० निंदा (२) कुट्टिम वि० फरसबंध; पथ्थर जडेलु तिरस्कार (३) गाळ ; अपशब्द कुठार पुं० कुहाडो कुत्सित वि० निद्य; तिरस्कार करवा कुठारिका स्त्री० नानी कुहाडी योग्य (२) नीच; क्षुद्र कुडप (-व) पुं० बार मूठी जेटलं अनाजनुं कुथ् ४ प० सडq; गंधावू एक माप (२) पुं० कळी कुथ पु०, न०, कुथा स्त्री० हाथी उपर कुडमल वि० खीलतुं; विकसतुं; ऊघडतुं नाखवानी झूल (२)पाथरणु; जाजम कुडमलित वि० कळीओ बेठी होय तेवू कुदृष्टि स्त्री० खोटो मत (२)खोटा के (२) अर्धं मींचायेलु (कळी जेम) खराब ख्यालथी जोवु ते कुडघ न० भींत कुदाल पु० कोदाळो कुणप पुं०,न० मडईं; शब (२)पं०भालो कुमल न० कळी कुतश्चन, कुतश्चिद् अ० क्यांयथी कुधी वि० मूर्ख (२) दुष्ट (अनिश्चितता बतावे) कुनदिका स्त्री० नानी नदी; वहेळो कुतस् अ० क्याथी? (२) क्या? (३) कुनीत पुं० खोटी दोरवणी के सलाह शा माटे ? (४) कया कारणथी? कई कुप ४ ५० क्रोध करवो ; गुस्से थर्बु (२) रीते? (५) कारण के (६) 'किम्'ना उश्केरावू; वकर पांचमी विभक्तिना 'कस्मात्' अर्थमां कुपथ पुं० कुमार्ग (२) वेदविरुद्ध मार्ग पण वपराय छे (उदा० 'कुतः कालात्') कुपथ्य वि० शरीरने हानिकारक एवं कुतस्त्य अ० 'क्यांथी आवेलं', 'केवी (२) न० पथ्य के चरी न पाळवा ते रीते बनेलं' -एवो अर्थ बतावे कुपरीक्षक वि० योग्य मूल्य न ठरावतुं कुतीर्थ पुं० खराब शिक्षक - न जाणतुं थियेलं; वकरेलु कुतुक न० उत्सुकता; इंतेजारी (२) कुपित ('कुप्' नुं भू० कृ.) वि० गुस्से होंस ; इच्छा कुप्य न० हलकी धातु (सोना-रूपा कुतुकित, कुतुकिन् वि० कौतुहलयुक्त सिवायनी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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