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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश दुविहो य एगपक्खी, पव्वज्जसुते य होति नायव्वो। सुत्तम्मि एकवायण, पव्वज्जाए कुलिव्वादी॥ (व्यभा १२९९) एकभविक नोआगमत: ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यनिक्षेप का एक प्रकार । वह जीव, जिसके भावी जन्म में अमुक रूप में होने । का निर्धारण हो चुका हो किन्तु आयुष्य का बंधन न हुआ हो। वह वर्तमान भव में एकभविक (भावी भव वाला जीव) कहलाता है। यो जीवो मृत्वाऽनन्तरभवे शोषु उत्पस्यते स तेष्वबद्धायुष्कोऽपि जन्मदिनादारभ्य एकभविकः स शख उच्यते। (अनु ५६८ मवृ प २१३) प्रतिपादन करने वाला दृष्टिकोण। (सप्र १.१४) एकान्त परोक्ष वह ज्ञान, जिससे ज्ञेय वस्तु का आत्मा और इन्द्रिय से साक्षात्कार नहीं होता, जैसे-अनुमान ज्ञान। एकान्तेनाऽऽत्मन इन्द्रियमनसां चाऽसाक्षात्कारेणोपजायमानत्वादेकान्तपरोक्षम्। (विभा ९५ वृ) एकामर्शा प्रतिलेखना का एक दोष। वस्त्र को बीच में से पकड़कर, उसके दोनों पार्यों का एक बार में ही स्पर्श करना-एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देखना। एकामर्शनं एकामर्शा'"मध्ये गृहीत्वा ग्रहणदेशं यावदुभयतो वस्त्रस्य यदेककालं संघर्षणमाकर्षणम्। ___ (उ २६.२७ शावृ प५४१) एकार्थिकानुयोग द्रव्यानुयोग का एक प्रकार । एकार्थवाची या पर्यायवाची शब्दों के द्वारा द्रव्य की व्याख्या करना। एकश्चासावर्थश्च-अभिधेयो जीवादिः स येषामस्ति त एकार्थिकाः शब्दास्तैरनुयोगस्तत्कथनमित्यर्थः। (स्था १०.४६ वृप ४५६) एकविध अवग्रहमति व्यावहारिक अवग्रह का एक प्रकार। एक पर्याय का अवग्रहण करना, जैसे-किसी वाद्य के एक शब्द को ग्रहण करना। .""ततादिशब्दानामेकविधावग्रहणात् एकविधमवगृह्णाति। (तवा १.१६.१६) एकलविहारप्रतिमा प्रतिमा का एक प्रकार। पूर्णतः अकेले रहने का संकल्प करना। एकाकिनो विहारो-ग्रामादिचर्या स एव प्रतिमा-अभिग्रहः एकाकिविहारप्रतिमा। (स्था ८.१ वृ प ३९५) एकसिद्ध वह सिद्ध, जो एक समय में अकेला मुक्त होता है। एकम्मि समए एक्को चेव सिद्धो। (नन्दी ३१ चू ए २७) एकस्थान प्रत्याख्यान का एक प्रकार। दिन में एक समय, एक आसन में एक बार से अधिक भोजन नहीं करना। (आव ६.५) एकासन प्रत्याख्यान का एक प्रकार। दिन में एक स्थान पर बैठकर एक बार से अधिक भोजन नहीं करना। (आव ६.४) एगासणगं नाम पुता भूमीतो ण चालिज्जंति, सेसाणि हत्थे पायाणि चालेज्जावि। (आवचू २ पृ ३१६) एकेन्द्रिय १. केवल एक स्पर्शन इन्द्रियवाला प्राणी, जैसे-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक आदि। एकमिन्द्रियं-करणं स्पर्शनलक्षणमेकेन्द्रिय पृथिव्यादयः। (स्था ५.२०४ वृ प ३१९) २. एक समय में एक ही इन्द्रिय का उपयोग हो सकता है अतः पञ्चेन्द्रिय भी उपयोग की दृष्टि से एकेन्द्रिय है। एगेण चेव तम्हा उवओगेगिंदिओ सव्वो॥ (विभा २९९८) एकानुप्रेक्षा धर्म्यध्यान की अनप्रेक्षा का एक प्रकार। (द्र एकत्व अनुप्रेक्षा) (स्था ४.६८) एकान्तनय दुर्नय, एकांगी दृष्टिकोण। सामान्य और विशेष का निरपेक्ष एकेन्द्रिय रत्न चक्रवर्ती के वे सात रत्न, जो पृथ्वीकायिक होते हैं, जो की मार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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