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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश पानी, औषध आदि लाकर देता है, दिलाता है, उनकी सेवा करता है और उनसे सेवा करवाता है, जो इन सब उपग्रहों को जानता है। बाला सहु वुडेसुं संत तवकिलंतवेयणातंके। सेज्ज-निसेज्जोवधि-पाणमसण-भेसज्जुवग्गहिते॥ दाण-दवावण-कारावणेसु, करणे य कतमणुण्णाए। उवहितमणुवहितविधी, जाणाहि उवग्गहं एयं। (व्यभा १५१५, १५१६) वाली रुचि। २. उपदेशरुचि सम्पन्न व्यक्ति। एए चेव उ भावे, उवइटे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ त्ति नायव्वो॥ (उ २८.१९) उपधान ज्ञानाचार का एक प्रकार । श्रुतवाचन के समय किया जाने वाला तप। उप-समीपे धीयते-क्रियते सूत्रादिकं येन तपसा तदुपधानं-तपोविशेषः। (प्रसा २६७) (द्र उपधानवान् ) उपघातनाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव अपने ही अवयवों की अव्यवस्था के कारण उपहत होता है अथवा आत्महत्या का प्रयास करता है। यददयात् स्वशरीरावयवैरेव शरीरान्त:परिवर्द्धमानैः प्रतिजिह्वागलवृन्दलम्बक-चोरदन्तादिभिः उपहन्यते यद्वा स्वयंकृतोद्बन्धनभैरवप्रपातादिभिस्तदुपघातनाम । (प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७३) उपधान प्रतिमा प्रतिमा का एक प्रकार। विशिष्ट प्रकार की सघन तपस्या, जैसे भिक्षु की बारह और श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं। उपधानं-तपस्तत्प्रतिमोपधानप्रतिमा द्वादश भिक्षुप्रतिमा एकादशोपासकप्रतिमाः। (स्था २.२४३ वृ प ६१) उपचरित सद्भूत व्यवहार उपनय का एक प्रकार। स्व से भिन्न व्यक्ति और वस्तु में उपचार से ममकार करना, जैसे---मेरा पुत्र, मेरा घर। स्वजात्युपचरितासद्भूतव्यवहारो, यथा-पुत्रदारादि मम। (आप २१८ वृ) उपधानवान् श्रुत अध्ययन के लिए तप (उपधान) करने वाला। उपधानम्--अङ्गानाध्ययनादौ यथायोगमाचाम्लादितपोविशेषस्तद्वान्। (उ ११.१४ शावृ प ३४७) उपचित उपधारण वह कर्म, जिसका समानजातीय दूसरी प्रकृति के कर्मदलिकों अवग्रह की दूसरी अवस्था, जिसमें दूसरे समय से लेकर के संक्रमण द्वारा उपचय हो चुका है। व्यञ्जनावग्रह तक, असंख्यात समय तक अर्थ का प्रस्फुटित 'उपचितस्य' समानजातीयप्रकृत्यन्तरदलिकसंक्रमेणोपचयं रूप बनता है। नीतस्य। (प्रज्ञा २३.१३ वृप ४५९) बितियादिसमयादिसु जाव वंजणोग्गहो ताव उवधारणता भण्णति। (नन्दी ४३ चू पृ ३५) उपदेश आहिण्डक वह मुनि, जो भावी आचार्य है, सूत्र और अर्थ का अध्ययन उपधिसंभोज कर गुरु के निर्देशानुसार नाना देशों के आचार, भाषा आदि। सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार। के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए देशाटन करता है। वस्त्र, पात्र आदि उपधि का लेन-देन। ये सूत्राऽर्थी गृहीत्वा भविष्यदाचार्या गुरूणामुपदेशेन विषया- उपधिर्वस्त्रपात्रादिस्तं सम्भोगिकः सम्भोगिकेन सार्द्धमुद्ऽऽचारभाषोपलम्भनिमित्तमाहिण्डन्ते ते उपदेशाहिण्डकाः। गमोत्पादनैषणादोषैर्विशुद्धं गृह्णन् शुद्धः"। (बृभा ५८२५ वृ) (सम १२.२ ७ प २१) उपदेशरुचि उपनय १. रुचि का एक प्रकार, जीव आदि तत्त्वों पर उपदेश से होने १. धर्मी में साधन का उपसंहार करना, जैसे-यह धूमवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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