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________________ ६८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश हैं-व्यावहारिक और सूक्ष्म । एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे व्यावहारिक उद्धार पल्योपम एक पल्य (कोठा) है, जो एक नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ। से तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे। योजन लंबा, एक योजन चौड़ा और एक योजन ऊँचा है। (अनु ४२०, ४२२, ४२४) उसकी परिधि कुछ अधिक तिगुनी (तीन योजन से कुछ उद्धार सागरोपम अधिक) है। ऐसे पल्य को एक, दो, तीन दिन यावत् उद्धार सागरोपम के दो प्रकार हैं-व्यावहारिक और सूक्ष्म । उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए बालानों से लूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा जाता है। उस कोठे से प्रत्येक समय में दस कोटाकोटि व्यावहारिक उद्धार पल्योपम का एक व्यावएक-एक बालाग्र निकालने से जितने समय में वह कोठा हारिक उद्धार सागरोपम होता है। इसका कोई प्रयोजन नहीं खाली हो जाता है, उतने काल को व्यावहारिक उद्धार है, केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है। पल्योपम कहा जाता है। इसका कोई प्रयोजन नहीं है, केवल दस कोटाकोटि सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है। प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है। एएसिं पल्लाणं, सूक्ष्म उद्धार पल्योपम उन बालागों के असंख्य खण्ड कर कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। उस कोठे को ठसाठस भरा जाता है तथा प्रत्येक समय में तं वावहारियस्स उद्धारसागरोवमस्स एक-एक खण्ड को निकाला जाता है। जितने समय में वह एगस्स भवे परीमाणं॥ कोठा खाली हो जाता है, उतने काल को सूक्ष्म उद्धार एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं नस्थि पल्योपम कहा जाता है। किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवटुं पण्णविन्जति...... उद्धारपलिओवमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य वावहारिए एएसिं पल्लाणं, य। कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तत्थ णंजे से वावहारिए, से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं । तं सुहुमस्स उद्धारसागरोवमस्स आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड़े उच्चत्तेणं, तं तिगणं एगस्स भवे परीमाणं॥ (अनु ४२२-४२४) सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले-- गाहा उद्धृता एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय,उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं। पिण्डैषणा का एक प्रकार । थाली, बटलोई आदि से परोसने सम्मट्टे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं॥ के लिए निकालकर दूसरे बर्तन में डाला हुआ आहार लेना। ते णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, तओ णं नियजोएणं भोयणजायं उद्धरियमुद्धडा भिक्खा। समए-समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से (प्रसा ७४१) पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ। से तं वावहारिए उद्भिज्ज उद्धारपलिओवमे। "सुहमे उद्धारपलिओवमे-से जहानामए पल्ले सिया पृथ्वी को भेदकर उत्पन्न होने वाला जीव, जैसे- पतंग, जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उर्दु उच्चतेणं, तं तिगुणं खञ्जरीट आदि। सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले उब्भिता भूमिं भिंदिऊण निद्धावंति सलभादतो। गाहा (द ४ सू ९ अचू पृ ७७) एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय,उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं। उद्भिन्न सम्मटे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं॥ उद्गम दोष का एक प्रकार। हिंसा की संभावना की स्थिति तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाई कज्जइ। ते णं में शीशी आदि का मुंह खोलकर दिया जाने वाला आहार वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहमस्स आदि लेना। पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा।ते णं वालग्गे उद्भेदनं कुतुपादिमुखानां साधुदाननिमित्तमुद्भिन्नम्। नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा तओ णं समए-समए (पिनि ३४७ वृ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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