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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश का सिद्धांत, जैसे-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पत्सु-द्रव्यादिभेदासु दृढधर्मता कार्या। पूर्वस्य पश्चादनुपूर्वं तस्य भाव इति"तस्मादनुपूर्वभावः आनु (सम ३२.१.१ वृ प ५५) पूर्वी अनुक्रमोऽनुपरिपाटीति पर्यायाः, ज्यादिवस्तुसंहतिरिति आपन्नपरिहार भावः। (अनु १०० हावृ पृ ३०) वह मुनि, जिसे मासिक यावत् पाण्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त आनुपूर्वी अनशन हुआ हो। अनशन का एक प्रकार। साधना के क्रम में प्राप्त होने वाला आवण्णपरिहारो पुण जो मासियं वा जाव छम्मासियं वा अनशन-प्रव्रज्या, शिक्षापद यावत् गण-अव्यवच्छित्ति पर्यंत पायच्छित्तं...। (निभा ६२९५ चू) पदों का क्रमशः अनुशीलन करते हुए जीवन के अंतिम आपाकप्राप्त समय में अनशन करना। ईषत् परिपाक को प्राप्त कर्म-परमाणु। एक्केक्कं दुहा पडिवज्जइ-अहाणुपुवीए अणाणुपुव्वीए 'आपाकप्राप्तस्य' ईषत्पाकाभिमुखीभूतस्य"। य। पव्वज्जासिक्खापयादिकमेण मरणकालं पत्तस्स (प्रज्ञा २३.१३ वृ प ४५९) आणुपुव्वी, अत्थग्गहणाईए पदे अप्फासेत्ता अणाणुपुवी। (निचू ३ पृ २९३) आप्त वह व्यक्ति, जो अभिधेय वस्तु को यथार्थ रूप में जानता है आनुपूर्वीनाम और उसका यथार्थ रूप में प्रतिपादन करता है। नाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से अन्तराल गति में अभिधेयं वस्तु यथावस्थितं यो जानीते यथाज्ञानं चाभिधत्ते जीव की वक्रगति के मार्ग का नियमन होता है। स आप्तः । (प्रनत ४.४) कूर्परलाङ्गलगोमूत्रिकाकारेण यथात । द्वित्रिचतुःसमयप्रमाणेन विग्रहेण भवान्तरोत्पत्तिस्था . गच्छतो जीवस्यानु- आप्रच्छना सामाचारी श्रेणिनियता गमनपरिपाटी आनुपूर्वी, तद्विपाक वेद्यं अपने या दूसरे से संबंधित कार्य करने से पूर्व गुरु से अनुमति नामकर्मापि कारणे कार्योपचारात् आनुपूर्वी नाम। लेना। (प्रज्ञा २३.५४ वृप ४७३) आपुच्छणा सयंकरणे...॥ (उ २६.५) आन्तःपुरिकी विद्या उच्छ्वासनिःश्वासौ विहाय सर्वकार्येष्वपि स्वपरसंबन्धिषु वह विद्या, जिसमें चिकित्सक रोगी का नाम लेकर अपने गुरवः प्रष्टव्याः । (उशावृ प५३५) अंग का अपमार्जन करता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है। आभिग्रहिक मित्थात्व आन्तःपुरे आन्तःपुरिकी विद्या भवति यया आतुरस्य नाम मिथ्यात्व का एक प्रकार । वह दृष्टिकोण, जिसके द्वारा असत् गृहीत्वा आत्मनो अङ्गमपमार्जयति, आतुरश्च प्रगुणो जायते तत्त्व आग्रहपूर्वक स्वीकृत होता है। सा आन्तःपुरिकी। (व्यभा २४३९ वृप २६) आभिग्रहिकं पाखण्डिनां स्वस्वशास्त्रनियन्त्रितविवेकाआपत् प्रतिषेवणा लोकानां परपक्षप्रतिक्षेपदक्षाणां भवति। प्रतिषेवणा का एक प्रकार। आपदा प्राप्त होने पर किया जाने (योशा २.३ वृ पृ १६४) वाला प्राणातिपात आदि का आसेवन। आभिनिबोधिकज्ञान आपत्सु द्रव्यादिभेदेन चतुर्विधासु....."ततोऽपि प्रतिषेवा (नन्दी २) पृथिव्यादिसंघट्टादिरूपा भवति। (स्था १०.६९ वृ प ४६०) (द्र मतिज्ञान) आपढ्ढधर्मता आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय योगसंग्रह का एक प्रकार। कठिनाई के समय में धर्म में ज्ञानावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके द्वारा आभिनिदृढता। बोधिकज्ञान आवृत होता है। 'आवईसु दढधम्मय' त्ति प्रशस्तयोगसङ्ग्रहाय साधुनाऽऽJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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