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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश कुर्वतः। (स्था २.३४ वृ प ४०) . आत्मा १. जीव का पर्यायवाची नाम। वह द्रव्य, जो चैतन्यमय असंख्य प्रदेशों का अविभाज्य पिण्ड है। (स्था १.२) (द्र द्रव्य आत्मा) २. जीव का पर्यायवाची नाम। वह आत्मा, जो सतत संक्लिष्ट अथवा असंक्लिष्ट रूपों में परिणत होती है। 'आय'त्ति सततगामित्वात्। (भग २०.१७ वृ) अतति-सन्ततं गच्छति शुद्धिसंक्लेशात्मकपरिणामान्तराणीत्यात्मा। (उशावृ प५२) ३. जो आत्मा है, वह ज्ञाता है और जो ज्ञाता है, वह आत्मा है। जिस साधन से आत्मा जानती है, वह ज्ञान आत्मा है। जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया। जेण विजाणति से आया। (आ ५. १०४) आदर्शप्रश्न वह विद्या, जिसके द्वारा दर्पण पर देवता को अवतरित कर उत्तर प्राप्त किया जाता है। 'पसिणाई'ति प्रश्नविद्या: यकाभिः क्षौमकादिषु देवतावतार: क्रियत इति, तत्र क्षौमकं-वस्त्र, अद्दागो आदर्श:..। (स्था १०.११६ वृ प ४८५) आदर्श विद्या वह विद्या, जिसके प्रयोग से दर्पण में रोगी के प्रतिबिम्ब का अपमार्जन किया जाता है, रोगी स्वस्थ हो जाता है। अदाए त्ति या आदर्शविद्या तया आतुर आदर्श प्रतिबिम्बितोऽपमाMते आतुरः प्रगुणो जायते। (व्यभा २४३९ वृ) आदाननिक्षेपसमिति योग अहिंसा महाव्रत की एक भावना। संयम की पुष्टि तथा सर्दीगर्मी, मच्छर आदि से बचाव करने के लिए राग-द्वेष मुक्त भाव से वस्त्र, पात्र, पट्ट आदि का उपयोग करना। संजमस्स उवबूहणट्ठयाए वातातव-दंसमसग-सीयपरिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरितव्वं संजतेण" ‘एवं आयाणभंडनिक्खेवणासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा। (प्रश्न ६.२१) आत्मांगुल अंगुल का एक प्रकार। क्षेत्र माप की एक इकाई । जिस काल में पुरुष की अंगुली का जो प्रमाण होता है, वह आत्मांगुल होता है। इसका प्रमाण (माप) अनियत होता है। जे णं जता मणूसा तेसिं जं होइ माणरूवं ति। तं भणियमिहायंगुलमणियतमाणं पुण इमं तु॥ __ (विभाकोवृ पृ १०८) (द्र प्रमाणांगुल, उत्सेधांगुल) आदानभय भय का एक प्रकार। धन आदि पदार्थों का अपहरण करने वाले से होने वाला भय। धनं तदर्थं चौरादिभ्यो यद्भयं तदादानभयम्। (स्था ७.२७ वृ प ३६९) आत्मागम गुरु के उपदेश के बिना स्वत: प्राप्त होने वाला आगम, जैसेतीर्थंकर के अर्थागम और गणधर के सूत्रागम। तत्र गुरूपदेशमन्तरेणात्मन एव आगम आत्मागमः। (अनु ३९० मवृ प २०२) आदाननिक्षेपणा समिति धर्मोपकरण को देखकर, उसका प्रमार्जन कर लेना और रखना। रजोहरणपात्रचीवरादीनां पीठफलकादीनां चावश्यकार्थं निरीक्ष्य प्रमृज्य चादाननिक्षेपौ आदाननिक्षेपणासमितिः। (तभा ९.५) आत्यन्तिक मरण मरण का एक प्रकार। वह मरण, जिसमें जीव वर्तमान आयुष्यकर्म के पुद्गलों का अनुभव कर मरण को प्राप्त हो, फिर उस भव में उत्पन्न न हो। आत्यन्तिकमरणं यानि नारकाद्यायुष्कतया कर्मदलिकान्यनभूय म्रियते मृतश्च न पुनस्तान्यनुभूय मरिष्यति। (सम १७.९ व प ३२) आदेयनाम १. शुभ नाम कर्म की एक प्रकृति । जिसके उदय से जीव का वचन मान्य होता है और बोलने वाला जनता द्वारा सम्मान्य होता है। यदुदयवशात् यच्चेष्टते भाषते वा तत्सर्वं लोकः प्रमाणीकरोति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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