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________________ ३४ जैन पारिभाषिक शब्दकोश अर्थ ज्ञानाचार का एक प्रकार। सम्यक् उपयोगपूर्वक आगम के । अर्थ का अध्ययन करना। अर्थः-अभिधेयं "सम्यगुपयोगेन च यतः सूत्रादि पठनीयम्। (प्रसावृ प ६४) अर्थकल्पिक वह मुनि, जो आवश्यक सूत्र से प्रारंभ कर यावत् सूत्रकृतांग तक के आगमों (आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग) के अर्थ का ज्ञाता है। सूत्रकृतांग के । पश्चात् भी छेदसूत्रों को छोड़कर, जिसने जितना श्रुत पढ़ा। है, वह उस समस्त श्रुत के अर्थ का कल्पिक होता है। (छेदसूत्र पढ़ लेने पर भी जब तक शिष्य अपरिणत होता है तब तक अर्थ नहीं दिया जाता। परिणत होने पर वह उनके अर्थ का कल्पिक होता है।) अत्थस्स कपिओ खलु, आवस्सगमादि जाव सूयगडं। मोत्तूण छेयसुयं, जं जेणऽहियं तदट्ठस्स। (बृभा ४०८) आवश्यकमादिं कृत्वा यावत् सूत्रकृतमङ्गं तावद् यद् येनाधीतं स तस्यार्थस्य कल्पिको भवति। सूत्रकृताङ्गस्योपर्यपि छेदश्रुतं मुक्त्वा यद् येनाधीत सूत्रं स तस्य सूत्रस्य समस्तस्याप्यर्थस्य कल्पिको भवति। छेदसूत्राणि पुनः पठितान्यपि। यावदपरिणतं तावन्न श्राव्यते, यदा तु परिणतं तदा कल्पिकः। (बृभा ४०८ वृ) (द्र सूत्रकल्पिक) अर्थक्रिया वस्तु की कार्य करने की शक्ति। अर्थक्रियासामर्थ्य-वस्तुतः कार्यकरणशक्तिः। (प्रनत ५.२ वृ) अर्थदण्ड (स्था २.७६) (द्र अर्थदण्ड क्रिया) अर्थदण्डप्रत्यय दण्डसमादान क्रियास्थान का पहला प्रकार । स्व तथा स्व से संबद्ध व्यक्ति और वस्तु के लिए की जाने वाली हिंसात्मक प्रवृत्ति। पढमे दंडसमादाणे अद्वादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ-से जहाणामए केइ पुरिसे आयहेउं वा णाइहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहेउं वा ॥ (सूत्र २. २. ३) अर्थधर वह मुनि, जो केवल अर्थागम का ज्ञाता है। अर्थेन केवलेन सम्यगधिगतेनार्थी भवति ज्ञातव्यः, अर्थधर इति। (बृभा ६९० वृ) अर्थनय वह नय, जिसमें अर्थ प्रधान और शब्द गौण होता है, जैसेनैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र नय। एतेषु चत्वारः प्रथमेऽर्थनिरूपणप्रवणत्वादर्थनयाः। (प्रनत ७.४४) अर्थपद अर्थ का बोध कराने वाले अक्षरों का समूह। जत्तिएहि अक्खरेहि अत्थोवलद्धी होदि तेसिमक्खराणं कलावो अस्थपदं णाम। (कप्रा पृ ९१) अर्थपदप्ररूपणा अनौपनिधिकी (द्रव्यानुपूर्वी) का एक प्रकार। संज्ञा और संज्ञी के संबंध की प्ररूपणा। संज्ञासंज्ञिसम्बन्धप्ररूपणेत्यर्थः। (अनु ४.११४ हावृ प ३१) अर्थपर्याय गुणपर्याय । पदार्थ की सूक्ष्म परिणति, जिसके बदल जाने पर भी द्रव्य का आकार नहीं बदलता, जिसकी कालावधि एक समय की है। सूक्ष्मो वर्तमानवर्ती अर्थपरिणामः अर्थपर्यायः। (जैसिदी १. ४३) (द्र व्यञ्जनपर्याय) अर्थमण्डली मण्डली का एक विभाग। श्रमणों के लिए एक साथ बैठकर अर्थ के चिन्तन, ग्रहण और धारण की व्यवस्था। इय सुद्ध सुत्तमंडलि, दाविज्जति अत्थमंडली चेव। (व्यभा १४२९) (द्र मण्डली, सूत्रमण्डली) अर्थागम तीर्थङ्कर के द्वारा की जाने वाली तत्त्व-निरूपणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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