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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ह्रस्वकालस्थितिक वह कर्मबंध, जिसकी कालावधि ह्रस्व होती है, शुभ अध्यवसाय के द्वारा जिसकी दीर्घकालिक स्थिति के कण्डकों का अपहार किया जाता है। दीर्घकालस्थितिका ह्रस्वकालस्थितिका: प्रकरोतीति, शुभाध्यवसायवशास्थितिखण्डकापहारेणेति भावः। (उ 29.23 शावृ प५८५) ह्रीमनःसत्त्व वह पुरुष, जो विकट वेला में भी मन से विचलित नहीं होता। ह्रीमनःसत्त्वः-विकटवेलायामपि न मनसा कायरतां व्रजति। (आभा 6.45) (द्र ह्रीसत्त्व) ह्रीमना संयमी, जिसका मन अनाचार का सेवन करते हुए गरुजनों तथा लोकव्यवहार से लज्जा का अनुभव करता है। ह्री-लज्जा संयमो“तत्र मनो यस्यासौ ह्रीमनाः यदि वा अनाचारं कुर्वन्नाचार्यादिभ्यो लज्जते सः / (सूत्र 1.13.6 वृ प 240) ह्रीसत्त्व वह पुरुष, जो विकट परिस्थिति में भी लज्जावश कायर नहीं होता। ह्रीसत्त्वः-विकटपरिस्थितावपि लज्जावशात् न कातरतां व्रजति। (आभा 6.45) / 000 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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