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________________ 332 जैन पारिभाषिक शब्दकोश हुण्डक संस्थान संस्थान का एक प्रकार / असंतुलित शरीर-रचना। यत्र पादाद्यवयवा यथोक्तप्रमाणविसंवादिनः प्रायस्तद्धण्डकसंस्थानम्। (तभा 8.12 वृ) हुण्डावसर्पिणी अवसर्पिणीकाल का वह सर्वाधिक दुःखबहुल कालखण्ड, जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल के व्यतीत होने पर आता है। अवसप्पिणिउस्सप्पिणिकालसलाया गदे यसंखाणिं। हुंडावसप्पिणी सा एक्का जाएदि // (त्रिप्र 4.1615) सव्वोसप्पिणीहितो अहमा हुंडोसप्पिणी। (धव पु 3 पृ९८) हताहतिका चोर द्वारा हरण की हुई वस्तु को ग्रहण करना। स्तेनानीतप्रतीच्छा हताहतिका भण्यते स्तेनैर्हतस्य स्तेनहरणं"। (व्यभा 3767 वृ) हेतु साधन का कथन, जिसकी अन्यथानुपपत्ति निश्चित हो, जैसेअग्नि का अभाव होने पर धूम का न होना। साधनवचनं हेतुः। (प्रमी 2.1.12) निश्चितान्यथानुपपत्त्येकलक्षणो हेतुः। (प्रनत 3.11) तत्थ उ अहेउवाओ भवियाऽभवियादओ भावा॥ भविओ सम्मइंसण-णाण-चरित्तपडिवत्तिसंपन्नो। णियमा दुक्खंतकडो त्ति लक्खणं हेउवायस्स। (सप्र 3.43,44) हेतुविपाक कर्मप्रकृति का एक प्रकार। वह कर्म-प्रकृति, जिसका विपाक द्रव्य, क्षेत्र आदि हेतुओं के आधार पर होता है। हेतमधिकृत्य विपाको निर्दिश्यमानो यासांता: हेतविपाकाः। (कप्र पृ 37) हेतूपदेश संज्ञिश्रुतज्ञान का एक प्रकार। पूर्वापर विमर्श कर प्रवृत्तिनिवृत्ति करने की शक्ति। हेऊवएसेणं-जस्स णं अस्थि अभिसंधारणपुब्विया करणसत्ती-से णं सण्णीति लब्भड़। (नंदी 63) हेतुगम्य वह पदार्थ, जो हेतु अथवा तर्क का विषय बनता है। (जैमी 1.6 पृ 140) हेतुदोष वाददोष का एक प्रकार। हेतु का दूषित होना, जैसे-असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक। हेतुदोषोऽसिद्धविरुद्धानैकान्तिकत्वलक्षणः / (स्था 10.94 वृ प 467) हेत्वाभास जो हेतु नहीं है, किन्तु हेतु के समान प्रतीत होता है। अहेतवो हेतुवदाभासमानाः हेत्वाभासाः। (प्रमी 2.16) (द्र हेतुदोष) हैमवत जम्बूद्वीप द्वीप का वह क्षेत्र, जो महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, क्षुद्रहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में तथा पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में और पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में अवस्थित है। महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरस्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चस्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते। (जं 4.55) हैरण्यवतवर्ष जम्बूद्वीप द्वीप का वह क्षेत्र, जो रुक्मी पर्वत के उत्तर में, शिखरी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवण समुद्र के पश्चिम में और पश्चिमी लवण समुद्र के पूर्व में स्थित है। रुप्पिस्स उत्तरेणं सिहरिस्स दक्खिणेणं पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पण्णत्ते। (जं 4.271) हेतुवाद प्ररूपणा का वह सिद्धांत, जहां दृष्टांत, हेतु अथवा तर्क का / प्रयोग किया जाता है। दुविहो धम्मावाओ अहेउवाओ य हेउवाओ य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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