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________________ १६ जैन पारिभाषिक शब्दकोश स्वभावमजहती तिरोहितानेकपरिणतिप्रसवशक्तिगर्भा भवन- न आनुपूर्वी अनानुपूर्वी यथोक्तप्रकारद्वयातिरिक्तरूपा। मात्रकृतास्पदा प्रतीतैव। (तभा ५.४ वृ) (अनु १४७ हावृ प ४१) अनादि पारिणामिक (द्र पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी) वह पारिणामिक भाव, जिसकी आदि नहीं है, जैसे-धर्मा- अनानुपूर्वी अनशन स्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, अनशन का एक प्रकार। अर्थग्रहण आदि सब पदों का पुद्गलास्तिकाय, काल, लोक, अलोक, भव्यत्व, अभव्यत्व। अनुपालन किए बिना अनशन करना। अणाइपारिणामिए-धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगा. (द्र आनुपूर्वी अनशन) सत्थिकाए जीवस्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए लोए अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व अलोए भवसिद्धिया अभवसिद्धिया। (अनु २८८) मिथ्यात्व का एक प्रकार । वह दृष्टिकोण, जिसके द्वारा असत् अनादि विस्रसाबन्ध तत्त्व आग्रहपूर्वक स्वीकृत नहीं होता। (द्र विस्त्रसाबन्ध) अनाभिग्रहिकं तु प्राकृतलोकानां सर्वे देवा वन्दनीया न अनादि श्रुत निन्दनीयाः, एवं सर्वे गुरवः सर्वे धाः। (योशा २.३ वृ पृ१६५) श्रुतज्ञान का एक भेद। द्वादशाङ्ग श्रुत, जो अव्युच्छित्ति नय अनाभोग क्रिया की अपेक्षा अनादि है। अव्वुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं। (नन्दी ६८) अप्रतिलेखित और अप्रमार्जित भूमि पर बैठना, उपकरण रखना आदि। अनादेय नाम अप्रमृष्टादृष्टभूमौ कायादिनिक्षेपोऽनाभोगक्रिया। अशुभनाम कर्म की एक प्रकृति, (तवा ६.५.१५) १. जिसके उदय से जीव का वचन युक्तिसंगत होते हुए भी अनाभोगनिर्वर्तित क्रोध मान्य नहीं होता और उपकार करने पर भी वह जनता द्वारा । प्रकृति की विवशता से बिना प्रयोजन अथवा कषाय के सम्मान्य नहीं होता। विपाक के गुण-दोष की विचारणा किए बिना होने वाला २. जिसके उदय से शरीर निष्प्रभ होता है। आवेश। यदुदयवशादुपपन्नमपि ब्रुवाणो नोपादेयवचनो भवति यदा त्वेवमेव तथाविधमुहूर्त्तवशाद् गुणदोषविचारणाशून्यः नाप्युपक्रियमाणोऽपि जनस्तस्याभ्युत्थानादि समाचरति। परवशीभूय कोपं कुरुते तदा स कोपोऽनाभोगनिर्वर्तितः। (प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७५) (प्रज्ञा १४.९ वृ प २९१) निष्प्रभशरीरकरणमनादेयनाम। (तवा ८.११.३७) अनाभोग प्रतिषेवणा अनानुगामिक अवधिज्ञान प्रतिषेवणा का एक प्रकार। विस्मतिवश किया जाने वाला वह अवधिज्ञान, जो ज्ञानी का अनुगमन नहीं करता, किन्तु । प्राणातिपात आदि का आसेवन । क्षेत्र विशेष से प्रतिबद्ध होता है। प्रतिषेवणा-प्राणातिपाताद्यासेवनम्। न गच्छन्तमनुगच्छति तदवधिज्ञानमनानुगामिकम्। अनाभोगो-विस्मृतिः। (स्था १०.६९ ७ प ४५९,४६०) (नन्दी ९ मवृ प ८१) अनाभोगप्रत्यया क्रिया अनानुपूर्वी क्रिया का एक प्रकार। अज्ञानवश होने वाली प्रवृत्ति। औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का एक प्रकार । यत्रतत्रानुपूर्वी- अनाभोगः-अज्ञानं प्रत्ययो-निमित्तं यस्याः सा तथा। अनुलोम क्रम और प्रतिलोम क्रम को छोड़कर कहीं से भी (स्था २.३२ वृ प ४०) गणना प्रारम्भ करना। अनाभोगबकुश बकुश निर्ग्रन्थ का एक प्रकार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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