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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश २५९ वतिनां मरणं वलन्मरणं। (सम १७.९ वृ प ३२) २. क्षुधा-परीषह से होने वाला मरण। वलंता क्षुधापरीसहेहिं मरंति, ण तु उवसग्गमरणं ति तं वलायमरणं। (उचू पृ १२८) वशात मरण इन्द्रियों के वशीभूत होकर होने वाला मरण। वशेन-इन्द्रियवशेन ऋतस्य-पीडितस्य दीपकलिकारूपाक्षिप्तचक्षुषः शलभस्येव यन्मरणं तद्वशार्त्तमरणम्। (भग २.४९ वृ) वस्तिकर्म अनाचार का एक प्रकार। अपान मार्ग से तैल आदि चढाना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। वस्तिकर्म पुटकेनाधिष्ठाने स्नेहदानम्। (द ३.९ हावृप ११८) जैसे-ईंधन, जल आदि सामग्री लाने में प्रवृत्त व्यक्ति से पूछने पर वह कहता है-मैं चावल पकाता हूं। वर्तमाननैगमः-अपूर्णायामपि क्रियायां पूर्णतासंकल्पः, यथा-एधोदकाद्याहरणप्रवृत्त ओदनं पचामीति। (भिक्षु ५.५ वृ) वर्त्तना काल के आश्रय से होने वाली द्रव्य की वृत्ति । सर्वभावानां वर्तना कालाश्रया वृत्तिः। (तभा ५.२२) वर्द्धकिरन चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक रत्न, जो सैनिक शिविर तथा सेतु का निर्माण करने में कुशल होता है। वर्धकिः-गृहनिवेशादिसूत्रणाकारी। (प्रसावृ प ३५०) वर्धमान अवधिज्ञान अवधिज्ञान का एक प्रकार । उत्पन्न होकर सब ओर से बढ़ने वाला ज्ञान। बहुबहुतरेन्धनप्रक्षेपादिभिर्वर्द्धमानदहनज्वालाकलाप इव पूर्वावस्थातो यथायोगं प्रशस्तप्रशस्ततराध्यवसायभावतोऽभिवर्द्धमानमवधिज्ञानं वर्द्धमानकम्। (नन्दी ९ मवृ प ८२) वर्षधरपर्वत वे हिमवान्, महाहिमवान् आदि छः पर्वत, जो जम्बूद्वीप के भरत, हैमवत आदि सात क्षेत्रों का विभाग करते हैं। वर्षाणां विभक्तारः हिमवान् महाहिमवान् निषधो नीलो रुक्मी शिखरीत्येते षड् वर्षधराः पर्वताः। (तभा ३.११) वर्षारात्र वर्षावास का एक प्रकार। आश्विन और कार्तिक मास। (बृभा २७३४ चू) (द्र प्रावृट्काल) वर्षावास वर्षाकाल में एक स्थान पर चार मास तक रहना। वरिसासु चत्तारि मासा एगत्थ अच्छंतीति वासावासो। (दशा ४.१३ चू प ५२) वस्तु १. अध्ययन की भांति नियत अर्थ के अधिकार वाला ग्रन्थविशेष। वस्त नियतार्थाधिकारप्रतिबद्धो ग्रन्थविशेषोऽध्ययनवत। (समप्र १३.६ वृ प १२२) वस्तूनि-अध्ययनवविभागविशेषः। (सम १२.६ ७ प २५) २. अनेक प्राभृतों का समुदाय। (अनु ५७२ टि पृ ३२७) ३. प्रमाण का विषय, जो द्रव्यपर्यायात्मक होता है। प्रमाणस्य विषयो द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु। (प्रमी १.१.३०) ४. द्रव्य, जो अर्थक्रिया करने में सक्षम होता है। वस्तुनस्तावदर्थक्रियाकारित्वं लक्षणम्। (स्थावृ प २२) वस्तुत्व १. द्रव्य का वह सामान्य गुण, जिसके कारण द्रव्य में अर्थक्रिया होती है। अर्थक्रियाकारित्वं वस्तुत्वम्। (जैसिदी १.३८ वृ) २. द्रव्य का सामान्यविशेषात्मक स्वरूप। वस्तुत्वं च तथा जातिव्यक्तिरूपत्वमुच्यते॥ (द्रत ११.२) वलन्मरण १. संयमी जीवन से भ्रष्ट व्यक्ति का मरण। 'वलायमरणे'त्ति संयमयोगेभ्यो वलतां-भग्नव्रतपरिणतीनां वस्त्रपुण्य पुण्य का एक प्रकार। पात्र-सयंमी को वस्त्र देने से होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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