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________________ २५८ .....गुणवओ य पडिवत्ती । ततिए चरणादिगुणसमूहवतो वंदणणमंसणादिएहिं पडिवत्ती कातव्वा । ( अनु ७४ चू पृ १८) वन्द्यते - स्तूयतेऽनेन प्रशस्तमनोवाक्कायव्यापारजालेनेति ( आवहावृ २ पृ १४ ) वह अध्ययन, जिसमें वन्दनम् । | ३. अंगबाह्यश्रुत का एक प्रकार । वन्दनीय - अवन्दनीय का निरूपण है वन्दनम् - प्रणामः, स कस्मै कार्यः कस्मै च नेति यत्र वर्ण्यते (तभा १.२० वृ) तत् वन्दनम् । वन्दना मुद्रा खड़े होकर दोनों कोहनियों को पेट पर रखकर दोनों हाथों को मुकुलित कमल के आकार में रखना । मुकुलीकृतमाधाय जठरोपरि कूर्परम् । स्थितस्य वन्दनामुद्रा करद्वन्द्वं निवेदिता ॥ (अमिश्रा ८.५४) वमन अनाचार का एक प्रकार । रोग की संभावना से बचने के लिए, रूप, बल आदि को बनाए रखने के लिए वमन करना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। वमणं छडणं विरेयणं कसायादीहिं एतानि आरोग्गपडिकम्माणि रूवबलत्थमणातिण्णं । (द ३.९ अचू पृ६२) वरुणोपपात कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें वरुण नामक देव की वक्तव्यता है तथा जिसका परावर्तन करने से वरुण नामक देव उपस्थित हो जाता है। 'वरुणोववाए' जाहे तं अज्झयणं उवउत्ते समाणे अणगारे परियट्टेइ, ताहे से समयनिबद्धत्तणओ वरेह वरं ति । (नन्दी ७८ चू पृ५९) (द्र अरुणोपपात) वर्गचूलिका श्रुत का एक प्रकार। अंतकृतदशा और अनुत्तरोपपातिकदशा के वर्गों की चूलिका । वो ति विवखावसातो अज्झयणादिसमूहो वग्गो, जहा अंतकडदसाणं अट्ठ वग्गा, अणुत्तरोववातियदसाणं तिण्णि वग्गा, तेसिं चूला वग्गचूला । (नन्दी ७८ चू पृ५९) Jain Education International जैन पारिभाषिक शब्दकोश वर्गणा सजातीय वस्तुओं का समूह । सजातीयवस्तुसमुदायो वर्गणा, समूहो, वर्ग:, राशि : इति पर्यायाः । (विभा ६३५ वृ) वर्गतप इत्वरिक अनशन का एक प्रकार। घनतप को घनतप से गुणा करने पर होने वाला तप । घन एव घनेन गुणितो वर्गो भवति एतदुपलक्षितं तपो वर्गतपः । ( उ ३०.१० शावृ प ६०१ ) वर्गवर्गतप इत्वरिक अनशन का एक प्रकार। वर्गतप को वर्गतप से गुणा करने पर होने वाला तप । वर्ग एव यदा वर्गेण गुण्यते तदा वर्गवर्गो भवति । ( उ ३०.११ शावृ प ६०१ ) वर्ण पुद्गल का एक लक्षण, जो चक्षुरिन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य है। ( उ २८.१२) (द्र गन्ध) वर्णनाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से शरीर के वर्ण की व्यवस्था होती है । वर्ण्यते - अलङ्क्रियते शरीरमनेनेति वर्णः, स च पञ्चप्रकारः श्वेतपीतरक्तनीलकृष्णभेदात्, तन्निबन्धनं नामापि पञ्चधा''यदुदयाज्जन्तुशरीरेषु श्वेतवर्णप्रादुर्भावो यथा बिशकण्ठिकानां तत् श्वेतवर्णनाम, एवं शेषवर्णनामान्यपि भावनीयानि । (प्रज्ञा २३.४७ वृ प ४७३) वर्णाक्षर अक्षर का एक प्रकार । वण्णक्खरं - वणिज्जति अणेणाभिहेतो अत्थो इति वण्णो, स चार्थस्य, कुड्ये चित्रवर्णकवत्, अहवा द्रव्ये गुणविशेषवर्णकवत् । वर्ण्यते-अभिलप्यतेऽनेनेति वर्णाक्षरम् । (नन्दीचू पृ ४४ ) (द्र संज्ञाक्षर ) वर्तमाननैगम नैगम नय का एक प्रकार। अपूर्ण क्रिया में पूर्णता का संकल्प, www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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