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________________ २४८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश दसविधे सरागसम्मइंसणे पण्णत्ते, तं जहा-""धम्मरुई॥ (स्था १०.१०४) लेकर किया जाने वाला ध्यान। सर्वमलापगतज्योतिर्मयात्मालम्बि रूपातीतम्। (मनो ४.२४) रूक्ष १. स्पर्श का एक रूक्षतात्मक गुण। २. परमाणु की ऋणात्मक ऊर्जा । स्निग्धत्वं चिक्कणत्वलक्षण: पर्यायः, तद्विपरीतः परिणामो रूक्षत्वम्। (तवा ५.३३.२) ३. संयम। रूक्षम्-संयमः। (आभा ६.११०) (द्र स्निग्ध) रूक्षवृत्ति १. वह मुनि, जो संयम के अनुकूल प्रवृत्ति करता है। २. वह मुनि, जो रूक्ष भोजन की एषणा करता है। लूह-संजमो, तस्स अणुवरोहेण वित्ती जस्स सो लूहवित्ती।। (द ८.२५ अचू पृ १९१) रूपपरिचारक ब्रह्मलोक और लान्तक कल्पवासी देव, जिनकी कामेच्छा देवी के दर्शन मात्र से शांत हो जाती है। दोसुकप्पेसुदेवा रूवपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-बंभलोगे चेव, लंतगे चेव। (स्था २.४५८) रूपानुपात देशावकाशिक व्रत का एक अतिचार। संकल्पित देश के बाहर स्थित व्यक्ति को व्यापार आदि के लिए हाथ आदि से संकेत करना। अभिगृहीतदेशाद्वहिः प्रयोजनभावे शब्दमनुच्चारयत एव परेषां स्वसमीपानयनार्थं स्वशरीररूपदर्शनं रूपानुपातः। __ (उपा १.४१ वृ पृ १९) मम रूपं निरीक्ष्य व्यापार-मचिरान्निष्पादयन्ति इति स्वविग्रहप्ररूपणं रूपानुपात इति निर्णीयते। (तवा ७.३१.४) रूपी मूर्त पदार्थ, जिसमें वर्ण, गंध, रस, स्पर्श हो। रूपं-मूर्त्तता तदस्ति येषां ते रूपिणः। (भग ७.१२७ वृ) (द्र मूर्त) रोग परीषह परीषह का एक प्रकार । रोग से उत्पन्न वेदना, जो मुनि के द्वारा समभावपूर्वक सहनीय है। नच्चा उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्टिए। अदीणो थावए पण्णं, पुट्ठो तत्थहियासए॥ तेगिच्छं नाभिनंदेज्जा, संचिक्खत्तगवेसए। एवं खु तस्स सामण्णं, जं न कुज्जा न कारवे॥ (उ २.३२,३३) रूप सत्य सत्य का एक प्रकार। किसी वेश विशेष के आधार पर किसी व्यक्ति को इस रूप में सम्बोधित करना, जैसे साधु का वेश देखकर किसी व्यक्ति को साधु कहना। 'रूवे त्ति' रूपापेक्षया सत्यं रूपसत्यं, यथा प्रपञ्चयति प्रवजितरूपं धारयन् प्रव्रजित उच्यते न चासत्यताऽस्य। (स्था १०.८९ वृ प ४६५) रोचक सम्यक्त्व वह सम्यक्त्व, जिसके होने पर व्यक्ति सद्-अनुष्ठान में श्रद्धा करता है, उसका आचरण नहीं करता। यत्तु सदनुष्ठानं रोचयत्येव केवलम्, न पुनः कारयति तद् रोचकम्। (विभा २६७५ वृ) रूपस्थ ध्यान संस्थान (आकृतिविशेष) का आलम्बन लेकर किया जाने वाला ध्यान। संस्थानालम्बि रूपस्थम्। (मनो ४.२३) रूपातीत ध्यान सर्वमलातीत, विशुद्ध आत्मा के अमूर्त स्वरूप का आलम्बन रोमाहार रोमकूपों के द्वारा लिया जाने वाला आहार। "तयाय फासेण लोमआहारो। (सूत्रनि १७२) रौद्र परमाधार्मिक देवों का एक प्रकार। रौद्रकर्मकारी नरकपाल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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