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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश २४१ तओ जामा पण्णत्ता, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे। (स्था ३.१६१) २. महाव्रत। (द्र चातुर्याम, पञ्चयाम) यावत्कथिक अनशन आजीवन किया जाने वाला अनशन। आवकहियं-जावज्जीविगं। (दअचू पृ१२) पूर्वगत श्रुत का एक विभाग, जिसमें आयुश्रेणि प्रतिपादित है। इसमें एकाग्र होकर पूर्वधर मुनि मनुष्य, देव आदि का आयुष्य जान लेते हैं। जविएहिं किर भणिया आऊसेढी, तत्थ उवउत्ता आयरिया जाव पेच्छंति आउं वरिससतमहियं दो तिन्नि वा""जाव दो सागरोवमाइं ठिती...। (आवहावृ१ पृ २०६) यशःकीर्तिनाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव को यश और कीर्ति प्राप्त होती है। सर्वजनोत्कीर्तनीयगुणता यशः एकदेशगामिनी पुण्यकृता वा कीर्त्तिः ते यदुदयवशाद्भवतस्तद्यशःकीर्त्तिनाम। (प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७५) याचना परीषह परीषह का एक प्रकार । धर्मयात्रा के निर्वाहार्थ याचना करने में अनुभव होने वाली दीनता, जो मुनि के द्वारा सहनीय है। दुक्करं खलु भो! निच्चं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, नस्थि किंचि अजाइयं॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, पाणी नो सुप्पसारए। सेओ अगारवासु त्ति, इइ भिक्खू न चिंतए॥ (उ २.२८,२९) याचनी असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार। याचना के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा, जैसे-मुझे वह वस्तु दो। याचनी कस्यापि वस्तुविशेषस्य देहीति मार्गणम्। (प्रज्ञा ११.३७ वृ प २५९) यात्रा तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि योगों में होने वाली प्रवृत्ति। जं मे तव-नियम-संजम-सज्झाय-झाणावस्सगमादीएसु जोगेसु जयणा, सेत्तं जत्ता। (भग १८.२०७) यावत्कथिक परिहारविशुद्धिक वह मुनि, जो परिहारविशुद्धि की साधना के अनन्तर जिनकल्प को स्वीकार करता है। ये पुनः कल्पसमाप्त्यनन्तरमव्यवधानेन जिनकल्पं प्रतिपत्स्यन्ते ते यावत्कथिकाः। (प्रज्ञावृ प ६८) यावत्कथिकसामायिकचारित्र यावज्जीवन की अवधि वाला सामायिक चारित्र। मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के समय में होने वाला चारित्र। 'आवकहिए य'त्ति यावत्कथिकस्य भाविव्यपदेशान्तरायभावात् यावज्जीविकस्य सामायिकस्यास्तित्वाद्यावत्कथिकः स च मध्यमजिनमहाविदेहजिनसंबंधी साधुः । (भग २५.४५४ वृ) यावन्तिका वह भोजन, जो किसी नाम-निर्देश के बिना सभी भिक्षाचरों के लिए बनाया जाता है। वह मुनि के लिए अग्राह्य है। यावन्तो भिक्षाचरा आगमिष्यन्ति तावतां दातव्यम् इत्यभिप्रायेण यस्यां दीयते, सा यावन्तिका। (बृभा ३१८४ वृ) युग १. क्षेत्र-मापन का एक प्रकार। छियानवे अंगुल का एक युग, दण्ड, धनुष, नालिका, अक्ष अथवा मुसल होता है। छन्नउई अंगुलाई से एगे दंडे इ वा धणू इ वा जुगे इ वा नालिया इ वा अक्खे इ वा मुसले इ वा॥ (अनु ४००) २. पांच वर्ष का कालमान। . पंचेहिं वच्छरेहिं जुगं॥ (त्रिप्र ४.२८९) युगदोष कायोत्सर्ग का एक दोष । जुए से पीडित बैल की भांति गर्दन याम १. अवस्था का सूचक पद, जैसे-प्रथम याम आठ से तीस वर्ष तक, मध्यम याम तीस से साठ वर्ष तक, पश्चिम याम साठ से अग्रिम वय। जामो त्ति वा वयो त्ति वा एगट्ठा। (आचू प २४४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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