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________________ १५८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश निर्जरा करते हैं। १. विपाक में आये हुए कर्म-पुद्गलों तथा उदीरणा से मरणकाले शरीरिणः शरीरान्निर्गमस्तस्य मार्गो निर्याणमार्गः। विपाक में लाए गए पुद्गलों का आत्मा से पृथक् होना। (स्था ५.२१४ वृ प ३२८) विपक्वानां कर्मावयवानां परिशटनं हानिरित्यर्थः। तपसा २. जो निर्वाणप्राप्ति का मार्ग है। सेव्यमानेन कर्माण्यात्मप्रदेशेभ्यो विघटन्त इति। निर्याणमार्गः विशिष्टनिर्वाणप्राप्तिकारणमित्यर्थः । (तभा ९.३ वृ) (आव ४.९ हावृ पृ१८१) २. नौ तत्त्वों में एक तत्त्व। तप के द्वारा कर्ममल का विच्छेद। निर्यापक होने से जो आत्मा की निर्मलता, उज्ज्वलता होती है, उसे प्रातिचारक। वह मुनि, जो अपने अथवा दूसरों के संयमनिर्जरा कहते हैं। निर्वहन, विशेष रूप से अनशनकाल में शोधिकरण में ३. उपचार से तपस्या भी निर्जरा कहलाती है। कुशल होता है। तपसा कर्मविच्छेदादात्मनैर्मल्यं निर्जरा। पादोवगमे इंगिणि, दुविधा खलु होंति आयनिज्जवगा। उपचारात्तपोऽपि। (जैसिदी ५.१६, १७) (जासदा ५.१० निज्जवणा य परेण व, भत्तपरिणाय बोधव्वा॥ निर्जरा अनुप्रेक्षा (व्यभा ४२२१) नवम अनुप्रेक्षा–तपस्या और परीषहजय से होने वाली निर्जरा चारित्रस्य पर्यन्तसमये निर्यापका एव यथावस्थितशोधिके विषय में अनुचिन्तन करना। प्रदानत उत्तरोत्तरचारित्रनिर्वाहकाः। (व्यभा ४१६४ व) निर्जरा वेदना विपाक इत्यनर्थान्तरम्। स द्विविधोऽबुद्धिपूर्वः ।। नियुक्ति कुशलमूलश्च । "तं गुणतोऽनुचिन्तयेत् शुभानुबन्धो १. आगम का वह प्राचीनतम पद्यबद्ध व्याख्या ग्रन्थ, जिसके निरनुबन्धो वेति। एवमनुचिन्तयन्कर्मनिर्जरणायैव घटत इति द्वारा आगम के पदों का निर्वचन होता है। निर्जरानुप्रेक्षा। (तभा ९.७) निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निजत्ती। (द्र अबुद्धिपूर्वी निर्जरा, कुशलमूला निर्जरा) (आवनि ८८) निर्युक्तानां वा सूत्रेष्वेव परस्परसम्बद्धानामर्थानामाविर्भावनम्। निर्जरा पुद्गल (सूत्रनि १ वृ प २) निर्जराप्रधान पुद्गल, वे कर्मपुद्गल, जो जीव से पृथक् । २. सूत्र के प्रतिपाद्य को स्पष्ट करने वाला युक्ति ग्रन्थ, होकर अकर्मता को प्राप्त हो गए हैं। व्याख्या ग्रंथ। निर्जराप्रधानाः पुद्गला निर्जरापुद्गलाः, जीवेनाकर्मता- निर्युक्तयः निर्युक्तानां-सूत्रेऽभिधेयतया व्यवस्थामापादिता: कर्मप्रदेशा इत्यर्थः। (औपवृ पृ २०७) पितानामर्थानां युक्तिः। (समवृ प१०१) .."निज्जुत्ती वक्खाणं॥ (विभा ९६५) निर्माणनाम निर्लाञ्छतकर्म नाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से शरीर में अंग-प्रत्यंगों, लिंग और आकृति की व्यवस्था होती है। कर्मादान का एक प्रकार। बैल आदि को बधिया बनाना, नपुंसक करना तथा पशुओं के नाक को बींधना। जातिलिंगाकृतिव्यवस्थानियामक निर्माणनाम। नासावेधोऽङ्कनं मुष्कच्छेदनं पृष्ठगालनम्। (तभा ८.१२) कर्णकम्बलविच्छेदो, निर्लाञ्छनमुदीरितम्॥ यदुदयाज्जन्तुशरीरेष्वंगप्रत्यंगानां प्रतिनियतस्थानवर्त्तिता (प्रसा २६६ वृ प ६३) भवति तन्निर्माणनाम सूत्रधारकल्पम्। (कप्र पृ २०) निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया निर्याणमार्ग आधिकरणिकी क्रिया का एक प्रकार। नये सिरे से शस्त्रनिर्माण १. मृत्यु के समय जीव-प्रदेश जिस मार्ग से शरीर से निर्गमन करने की क्रिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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