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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश प्रचय। इसकी अवस्थिति तिर्यक्लोक और ऊर्ध्वलोक दोनों में है। (देखें चित्र पृ ३४४) तमस्कायस्य च स्तिबुकाकाराप्कायिकजीवात्मकत्वात् । (भग ६.७२ वृ प ५३९) तमुक्काए णं जीवपरिणामे वि पोग्गलपरिणामे वि । (भग ६.८७) तमस्तमा (द्र महातमः प्रभा ) तमा (स्था ७.२४) (स्था ७.२४) (द्र तमः प्रभा) तर्क अन्वय और व्यतिरेक का निर्णय, जैसे—धुएं के होने पर अग्नि का होना - अन्वय, अग्नि के न होने पर धुएं का न होना - व्यतिरेक । अन्वयव्यतिरेकनिर्णयस्तर्कः । ''अन्वयः यथा-यत्र धूमस्तत्राग्निः, अग्नावेव वा धूमः । ...व्यतिरेकः, यथा - अग्न्यभावे न धूमः । ( भिक्षु ३.७ वृ) तस्करप्रयोग स्थूल अदत्तादानविरमण व्रत का एक अतिचार । चोरी के लिए प्रेरणा देना और उसमें सहयोग करना । तस्करप्रयोगश्चौरव्यापारणम्, हरत यूयम् इत्येवमभ्यनुज्ञान(उपा १.३४ वृ पृ १२ ) मित्यर्थः । तापक्षेत्र १. वह आकाश खण्ड, जो सूर्य के आतप से व्याप्त होता है । जम्बूद्वीप में दो सूर्य होते हैं। प्रत्येक सूर्य १८ मुहूर्त के दिन के समय जम्बूद्वीप के ३ भाग को प्रकाशित करता है। जम्बूद्वीप की परिधि ३१६२२८ योजन की है। उसका 12/20 भाग ३१६२२८×५०=९४८६८,,योजन होता है । यह तापक्षेत्र 1 १० है। Jain Education International 'सूरिय' त्ति द्वौ सूर्यौ जम्बूद्वीपे । यदापि दक्षिणोत्तरयोः **** सर्वोत्कृष्टो दिवसो भवति, तदापि जम्बूद्वीपस्य दशभागत्रयप्रमाणमेव तापक्षेत्रं तयोः प्रत्येकं स्याद् उत्कृष्टदिनं चाष्टादशभिर्मुहूर्तैरुक्तम् । लवणसमुद्रं प्रति चतुर्नवतिर्योजनानां सहस्राणि अष्टौ शतान्यष्टषष्ट्यधिकानि चत्वारश्च दशभागा योजनस्येत्येतदुत्कृष्टदिने तापक्षेत्रप्रमाणं भवति जम्बूद्वीपपरिधेः किञ्चिन्यूनाष्टविंशत्युत्तरशतद्वयाधिकषोडशसहस्रोपेतयोजनलक्षत्रयमानस्य दशभिर्भागे हृते यल्लब्धं तस्य त्रिगुणत्वे एतस्य भावादिति । (भग ५.३-७ वृ) २. दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक का काल । क्षेत्रं - सूर्यसम्बन्धी तापक्षेत्रं दिनमित्यर्थः । (भग ७.२४ वृ) तापक्षेत्रदिशा वह क्षेत्र दिशा, जो सूर्य के ताप से पहचानी जाती है। तत्र तपतीति ताप इह सविता गृह्यते, तदुपलक्षिता क्षेत्रदिक् तापक्षेत्रदिक् । सा चानियतेत्याहजेसिं जत्तो सूरो उएइ तेसिं तई हवइ पुव्वा । तावक्खित्तदिसाओ पयाहिणं सेसियाओ सिं ॥ ( विभा २७०१ वृ पृ १४९ ) तायी (द्र त्रायी) तारा ज्योतिष्क देवनिकाय का एक प्रकार । १२९ ( उ ८.४ शावृ प २९१ ) तितिक्षा For Private & Personal Use Only ( उ ३६.२०८) (द्र ज्योतिष्क देव) तालवृन्तविद्या वह विद्या, जिसमें अभिमंत्रित तालवृन्त से रोगी का अपमार्जन किया जाता है और वह स्वस्थ हो जाता है । तालवृन्तविषया विद्या, यया तालवृन्तमभिमन्त्र्य तेनातुरोऽपमृज्यमानः स्वस्थो भवति सा तालवृन्तविद्या । (व्यभा २४३९ वृ) तालोद्घाटन विद्या वह विद्या, जिसके प्रयोग से ताले खुल जाते हैं । तालुग्घाडणीए विज्जाए तालगाणि विहाडेऊ । (निभा ३४७ चू) www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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