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________________ पता निघण्टु ब्राह्मण पता ३॥ ४॥ दुर्याः गृह गृहा वै दुर्याः श० ११११२।२२॥ ११११॥ धिषणा वाक् वाग्वै धिषणा श०६५/४/५॥ १४१७॥ धेनुः वाक् वाग्वै धेनुः ता. १८१९/२१॥ २॥ ७॥ नमः अन्न अन्नं नमः श० ६।३।१।१७॥ २३|| नरः मनुष्य मनुष्या वें नरः श० ७/५/२/३९॥ १॥ १॥ नितिः पृथिवी इयं (पृथिवी ) वै निति : श० ५२३॥३॥ २॥१०॥ नृम्पम् धन नृम्णानि " धनानि श० १४/२॥२॥३०॥ १११२॥ पर्यः उदक आपो हि पयः कौ० ५/४॥ २॥ ७॥ पयः अन्न पय एवान्नम् श० २।५।१॥६॥ १११२॥ पवित्रम् उदक पवित्र वा ऽआपः श० १११११११॥ २॥ ७॥ पितुः अन्न अन्नं वै पितुः श० ११९/२/२०॥ ३॥ १॥ पुरु बहु पुरुदस्मः बहुदानः श० ४/५/२॥१२॥ १॥ १॥ पूषा पृथिवी इयं वै पृथिवी पूषा श० २।५।४|७|| २११७॥ पृतना संग्राम युधो वै पृतना श० ५/२४॥१६॥ १॥ ३॥ पृथिवी अन्तरिक्ष इयं (पृथिवी) अन्तरिक्षम ऐ० ३॥३१॥ २॥ २॥ प्रजा अपत्य प्रजा वै तोका श० ७/५/२॥३९॥ प्रजा वै सूनुः श० ७११११२७॥ ३२१७" प्रजापतिः यज्ञ । यज्ञः प्रजापत्तिः श० १११६।३।९॥ ३१२का प्रलम् पुराण प्रत्न सनातन श० ६४|४|१७॥ २॥२०॥ परतुः वज्र वज्रो वै परशुः श० ३।६।४।१०॥ ३११७|| मखः यज्ञ यज्ञो वै मखः तै० ३।२८॥३॥ ३. ६॥ मयः सुख यद्वै शिवं तन्मयः तै० २१२।५।५॥ १॥ ५॥ मरीचिपाः रश्मि ये रश्मयस्ते देवा मरोचिपाः श० ४।१।१।२५॥ । १॥ मही पृथिवी इयं (पृथिवी) एव मही जै० उ० ३/४/७॥ २। ७॥ रसा अब रसेनान्नेन श० ७२।२।१०॥ १।१२॥ रसः उदक रसो वाऽआपः स० ३।३।३११८॥ २॥१२॥ रेतः उदक आपो हि रेतः ता० ८७९॥ ३३०रोदसी चावापृथिवी यावापृथिवी वै रौदसा ऐ० २१४१॥ ॥ श्री वाजः अन अन्नं वै वाजः श. ५/१४/३|| . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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