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________________ ८ १०. चाहमानवंशकी नामावलि प्रबन्धकोशकी कितनीएक प्रतियों में, ग्रन्थान्तमें, सपादलक्ष देश - ( सवालख, राजपूतानेके जयपुर राज्यका कुछ भाग ) जिसका प्रसिद्ध नाम शाकम्भरी ( सांभर ) प्रदेश भी है - पर राज्य करनेवाले पराक्रमी और रणवीर चाहमान वंशके राजाओंकी नामावलि लिखी हुई मिलती है। इस नामावलिका प्रबन्धकोशके साथ कोई सम्बन्ध न होने पर भी, यह इसकी प्रतियों में क्यों लिखी मिलती है इसका कुछ कारण ज्ञात नहीं होता । हमने उपर्युल्लिखित जितनी प्रतियां, प्रस्तुत सम्पादनके काममें लीं उनमें से B, D और E नामकी प्रतियों में यह वंशावलि लिखी मिली है । इसको हमने पुस्तकान्तमें, द्वितीय परिशिष्टके रूपमें दे दिया है । प्रबन्धकोश ११. सुभाषितवचनावल इस प्रन्थका पठन करते समय इसमें हमें कुछ ऐसे भी वाक्य, पद्यांश या पंक्त्यंश मालूम दिये जो सुभाषितके ढंगके हो कर विद्वानोंको वाग्व्यवहारमें लानेके कामके हो सकते हैं । उन सबका, पृथक् तारण कर, तीसरे परिशिष्टके रूपमें, पृष्ठ १३५-३६ पर, उन्हें मुद्रित कर दिया है । १२. द्वितीय भाग - हिन्दी भाषान्तर प्रास्तावित प्रन्थका संपूर्ण हिन्दी भाषान्तर, द्वितीय भागके रूपमें प्रकट होगा । ग्रन्थगत ऐतिहासिक बातोंका विस्तृत विवेचन और प्रन्थकर्ताका विशेष परिचय आदि अन्य ज्ञातव्य बातें, उसीमें विस्तारके साथ लिखी जायंगीं। इस लिये उस विषय में यहां और कुछ कहना अप्रासङ्गिक होगा । ९१३. प्रतियोंके पत्र - पृष्ठोंकी कुछ प्रतिकृतियां सम्पादनकार्यमें प्रयुक्त, उपर्युक्त जिन प्रतियोंका हमने वर्णन दिया है उनमें से, A प्रतिके १, ९१ और १०५ वें पत्रके एक एक पृष्ठका B, E, और D प्रतियोंके अन्तिम पृष्ठोंका, और V प्रतिके आद्यन्त दोनों पृष्ठोंका हाफ्टोन ब्लॉक बनवा कर उनके चित्र भी इसके साथ दे दिये जिससे जिज्ञासु पाठकों को उनकी लिपि आदिका प्रत्यक्ष दर्शन हो सकेगा । अन्तमें, पाटण और अहमदाबादके उक्त भण्डारोंमें से, जो ये प्रतियां हमको प्राप्त हुई, उसके लिये, हम उन भण्डार - रक्षकोंके और प्रतियां प्राप्त करा देनेवाले सज्जनोंके पूर्णतया कृतज्ञ हैं । किं बहुना ? 1 पोष शुक्ल १, संवत् १९९१ अनेकान्त विहार भारती निवास; अहमदाबाद. Jain Education International जिन विजय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016085
Book TitlePrabandh kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharsuri, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Gyanpith
Publication Year1935
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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