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________________ पाइअसहमण्णवो अग्गिअ-अग्घाइज्जमाण स्वामी का एक शिष्य (कप्प)। दाग पुं| अग्गिअj [दे] इन्द्रगोप, एक जातिका क्षुद्र गोत्र, जौ वत्स गोत्र की शाखा है (ठा ७)। [दान] सातवें वासुदेव के पिता का नाम कीट (दे १,५३) । २ वि. मन्द (दे १,५३)। ४ अग्नि-कोण, दक्षिण-पूर्व दिशा (भवि)। (पउम २०,१८२)। देव ["देव देव- अग्गिआय पुं[दे] इन्द्रगोप, क्षुद्र कीट-विशेष | अग्गोदय न [अग्रोदक समुद्रीय वेला की विशेष (दीव)। भूइ पुं[भूति] १ भग वृद्धि और हानि (सम ७६) । वान् महावीर का द्वितीय गणधर (कप्प) । २ अग्गिच्च वि [आग्नेय] १ अग्नि-सम्बन्धी। अग्घ अक [राज् ] विराजना, शोभना, चमभगवान महावीर का पूर्वीय अठारहवें ब्राह्मण- २ पुं. लोकान्तिक देवों की एक जाति (गाया | कना । अग्धइ (हे ४,१००)। जन्म का नाम (प्राचू)। माणव पुं[माणव] १,८)। ३ न. गोत्र-विशेष, जो गोतम गोत्र अग्घ सक [आ-घ्रा] सूंघना। संकृ. अग्धेअग्निकुमार देवों का उत्तर-दिशा का इन्द्र (ठा __ की. शाखा है (ठा ७)। ऊण ( सम्मत्त १४२)। २,३) । माली स्त्री [°माली] एक इन्द्राणी अग्गिचाभ न [आग्नेयाभ ] देव-विमान | अग्घ सक [अर्ह ] योग्य होना, लायक (दीव)। वेस पुं [°वेश] १ इस नाम का विशेष (सम १४)। होना; 'कलं ण अग्घई' (गया १,८)। एक प्रसिद्ध ऋषि (णंदि)। २ न. एक गोत्र अग्गिझ वि [अग्राह्य लेने के अयोग्य (पउम | अग्घ सक [अर्घ ] १ अच्छी कीमत से (कप्प)। वेस पुं[वेश्मन] १ चतुर्दशी ३१,५४)। बेचना । २ अादर करना, सम्मान करना तिथि (जं) । २ दिवस का बाइपव मुहूर्त (चंद 'पहिएण पुणो भरिणयं, नुब्भेहि सिट्ठि! अम्गिम वि[अग्रिम] १ प्रथम पहला (कप्पू)। १०)। वेसायग पुं [वैश्यायन] १ कम्मि नयरम्मि। २ श्रेष्ठ, प्रधान, मुख्य (सुपा १)। अग्निवेश ऋषि का पौत्र (मंदिः स २२५) । गंतव्वं सो साहइ, परिणयं अग्घिस्सए जत्थ' अग्गियय पुंआग्नेयक इस नाम का एक २ अग्निवेश-गोत्र में उत्पन्न (कप्प)। ३ गोशा (सुपा ५०१)। वकृ. अग्घायमाण (गाया राजपुत्र (उप ६३७)। लक का एक दिक्चर (भग १५)। ४ दिन १,१)। अग्गिल देखो अग्गिल्ल = अग्निल (सुज २०) का बाइसवाँ मुहूर्त (सम ५१)। सकार पुं अग्ध पूं [अर्घ] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र [संस्कार] विधि-पूर्वक जलाना, दाह देना अग्गिलिय देखो अग्गिम (पंचव २)। १:२) । २ पूजा (राय १००)। (आवम)। सप्पभा स्त्री [सप्रभा] भग- अग्गिल्ल पुं[अग्निल] एक महाग्रह (ठा २, | अग्घ [अर्घ] १ मछली की एक जाति (जीव वान् वासुपूज्य की दीक्षा समय की पालकी का ३)। ३)। २ पूजा सामग्री (णाया १, १६)। ३ नाम (सम)। °सम्म पुं[°शर्मन् ] एक अग्गिल्ल वि [अग्रिम] अग्रवर्ती (सिरि ४०६)। पूजा में जलादि देना (कुमा)। ४ मूल्य, मोल, प्रसिद्ध तपस्वी ब्राह्मण (प्राचा)। 'सिह पुं अग्गीय देखो अगीय (उप ८४०)। कीमत (निचू २) वत्त न [पात्र] पूजा [शिख] १ सातवें वासुदेव का पिता (सम अग्गीवय न [दे] घर का एक भाग (पउम का पात्र (गाउड)। १५२)। २ अग्निकुमार देवों का दक्षिण अग्ध वि [अर्ध्य] १ पूजा में दिया जाता दिशा का इन्द्र (ठा २, ३)। सिह पुं अग्गुच्छ वि [दे] प्रमित, निश्चित (षड्)। जलादि द्रव्य (कप्पू)। २ कीमती, बहुमूल्य [सिंह] एक जैन मुनि (उप ४८६)। सिहा अग्गे अ[अग्रे आगे, पहले (पिंग)। 'यण | (प्राप)। चारण पुं[शिखाचारण] अग्नि-शिखा में वि [तन मागे का, पहले का (प्रावम)। अग्धव सक[पूर् ] पूर्ति करना, पूरा करना। निर्बाधतया गमन करने की शक्ति वाला साधु सर वि [°सर] अगुमा, मुखिया, नायक अग्धवइ (हे ४, ६६)। (पव ६८)। सीह पुं[सिंह] सातवें वासु(श्रा २८)। अग्घविय वि [पूर्ण] १ भरा हुअा, संपूर्ण। २ देव के पिता का नाम (ठा है)। °सेण पुं [षेण ऐवत क्षेत्र के तीसरे और बाईसवें, अग्गेई स्त्री [आग्नेयी] अग्निकोण, दक्षिण पूरा किया गया (सुपा १०६, कुमा)। अग्धविय वि [अर्पित] पूजित, सत्कृत, तीर्थकर (तित्थ, सम १५३ )। होत्त न पूर्व दिशा (धरण १८)। सम्मानित (से ११, १६; गउड)। [होत्र १ अग्न्याधान, होम (विसे १६४०)। अग्गेणिय न [अग्रायणीय दूसरा पूर्व, बार अग्घा सक [आ+घ्रा] सूंघना। वकृ. २ पुं. ब्राह्मण (पउम ३५,६)। "होत्तवाइ हवें जैनागम का दूसरा महान भाग (सम२६)। | अग्याअंत, अग्घायमाण (गा ५६५; गाया वि[होत्रवादिन् ] होम से हो स्वर्ग की - अग्गेणी देखो अग्गेई (प्रावम)। १,८)। कवकृ. अग्घाइजमाण (पएण २८)। प्राप्ति माननेवाला (सूअ १,७)। होत्तिय अग्गेणीय देखो अग्गेणिय (णंदि)। वि [होत्रिक] होम करनेवाला (सुपा ७०)। अग्घाइ वि [आघ्रायिन्] सूंघनेवाला, 'सभ मरपउमग्वाइणि ! वारियवामे ! सहसु इण्हि' अग्गिअ पुं[अग्निक] १ यमदग्नि नामक एक (अणु २१५)। (काप्र २६४)। तापस (प्राचू)। २ भस्मक रोग, जिससे जो अग्गेय वि [आग्नेय] १ अग्नि-सम्बन्धी, अग्धाइअ वि [आघ्रात] सूंघा हुआ (गा कुछ खाय वह तुरन्त ही हजम हो जाता है। अग्नि का (पउम १२,१२६; विसे १६६०)। ६७ (विपा १,१; विसे २०४८)। । २ न. शस्त्र-विशेष (सुर ८, ४१)। ३ एक अग्घाइजमाण देखो अग्घा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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