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________________ विवित्त-विसंथुलिय पाइअसहमहण्णवो ८०३ ४ न. एकान्त, विजन; "किंतु विवित्तमाइसउ विवोलिअ वि [दे] व्यतिक्रान्त, गुजरा हुआ; ८ काम, कन्दपं । ६ शुक्र-युक्त, वीर्य-युक्त । ताओं (स ७४३)। _ 'कहकहवि विवोलिया मे रयणी' (स ५०६) १० शृङ्गवाला कोई भी जानवर (सुपा विवित्त वि [विविक्त] १ विवेक-युक्त । २ विवोह देखो विबोह (भवि)। ५६७) संदिग्न, शत्र पीर (जन विमान निनिगि निशानाटा, टिषणविव्व सक [व + अय_j व्यय करना, विविदिअ वि [विविदित] विशेष रूप से खर्च करना चिंतामणिप्पभावा संपजइ युक्त (विसे २७६०)। ज्ञात (पराह २, १-पत्र ६६) तस्स दविणमइपउरं । तं विम्बइ जिरणभवणे' विसंक वि [विशङ्क] शंका-रहित, निःशंक विविदिसा देखो विविइसा (पंचा ३, २७)। (सुपा ३८२)। कृ. 'विवेयव्वो' (सुपा (उप १३६ टी)। विविद्धि पुं[विवृद्धि] उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र । ४२४, ५८६)। देखो विच्च - वि = अय् । विसंखल वि [विशृङ्खल] स्वच्छन्द, स्वैरो, का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३-पत्र ७७)। विव्याय विदे१अवलोकित। २ विधान्त निरंकुश, उद्धत (पान; स १८० से ५, विविह वि [विविध] अनेक प्रकार का, (दे ७, ८६)। बहुविध, भाँति भाँति का (प्राचाः राय, उव; विसंखल सक [विशृङ्खलय ] निरंकुश | विव्वोअ देखो बिब्बोअ (कुमा)। महा)। करना, अव्यवस्थित कर डालना। संकृ. विवुअवि [विवृत] १ विस्तृत । २ व्याख्यात विव्वोयण [दे] देखो बिब्बोयण (कप्प)। विसंखलेऊण (सुख २, १५)। (संक्षि ४) । विस सक [विश] प्रवेश करना। विसइ, विसंघट्रिय वि [विसंघट्टितवियुक्त, विघविवुज्झ अक [वि + बुध ] जागना।। विसति (वजा २६, सण; गउड)। वकृ. टित (कुप्र)। विवुज्झदि (शौ) (प्राप्र)। विसंत (गउड) । संकृ. विसिऊण (गउड)। विसंघड प्रक [विसं + घट् ] अलग होना, |विस सक [वि + श.] १ हिंसा करना । २ जुदा होना। वकृ. विसंघडंत (गा ११५) ।' स १३५)। नष्ट करना। कवकृ. विसिज्जमाण, विसीरंत | विसंघडिय वि विसंघटित] वियुक्त, जो विवुद देखो विवुअ (प्राकृ ८ १२)। (विसे ३४३७, प्रच्च ७४)। जुदा हुआ हो वह (गाया १, ८-१४१ विवुदि देखो विवदि (प्राकृ १२)। विस पुंन [विष] १ जहर, गरल, हलाहला | महा)। 'झत्ति नट्ठो दुहावि विमोहविसो' (सम्मत्त | विसंघाइय वि [विसंघातित] संहत किया विवुह देखो विबुह (सण)। २२६; उवा; गउड प्रासू १२०; कुमा)। हुआ (अणु १७६)। विवेअ देखो विवेग (कुमाः महा ५२ ७७)। २ पानी, जल (से ८, ६३) नंदि पुं विसंघाय सक [विसं + घातय ] संहत 'न्नु वि [ज्ञ] विवेक-ज्ञाता (पउम ५३, [ नन्दिन] प्रथम बलदेव का पूर्वभवीय नाम करना । कर्म, विसंघाइज्जइ (अणु १७६)। ३८)। (सम १५३) न [न] विष-मिश्रित विवेअ [विवेप विशेष कप (सुपा १४)। विसंजुत्त वि [विसंयुक्त वियुक्त, जो अलग अन्न (उप ६४८ टी)। मइअ, "मय वि हुमा हो (सम्म २२; सूपनि १२१ टी)।विवेइ वि [विवेकिन] विवेकवाला (सुपा ["मय] विष का बना हुआ (हे १,५० विसंजोअ पुं [विसं + योजय ] वियुक्त षड्) । व वि [वत् ] १ विषवाला, १४८ कुमा; सण)। करना, अलग करना । विसंजोएइ (भग)। विवेग [विवेक] १ परित्याग (सूत्र १, विष-युक्त। २ पृ. सर्प, साँप (से ७, ६७)। विसंजोअ) पुं [विसंयोग] वियोग, विघटन, हर पुं[धर] साँप, सर्प (से २, २५; सुर | २,१, ८; ठा २, ३; प्रौपः आचानि ३०३)। २ ठीक-ठीक वस्तु-स्वरूप का निर्णय, विनिश्चय १,२४६ महा)- हरवइधरपति विसंजोग, पृथगभाव, जुदाई (कम्म ५, ८२, (प्रौप कुमा)। ३ प्रायश्चित्त (आचा १, ५, शेष नाग (से ६, ७)। 'हरिंद [ धरेन्द्र पंच ३, ५४)।। ४, ४)। ४ पृथक्करण (औप)। शेष नाग (गउड)। हारिणी स्त्री ["हारिणी] विसंठुल वि [विसंस्थुल] १ विह्वल, व्याकुल विवेगि देखो विवेइ (सुपा ५४३; कुप्र ४७)। पनीहारी, पानी भरनेवाली स्त्री (हे ४, (पाप; से १४, ४१ हे २, ३२, ४, ४३६; विवेच सक [वि + वेचय ] विवेचन मोह २२, धम्मो ५)। २ अव्यवस्थित (गा करना, ठीक-ठीक निर्णय करना, विवेक | विस देखो बिस (गा ६५२ गउड)। १४६; कुप्र ४१७ दे १, ३४)।करना। कम. विवेचिजइ (धर्मसं १३१०)। विस [वृष १ बैल, साँड़, वृषभ (सुर १, विसंतव पुं[द्विषन्तप] शत्रु को तपानेवाला, हेकृ. विवेचितुं (धर्मसं १३११)। २४८; सुपा ३६३, ५९५; सुख ८, १३) । दुश्मन को हैरान करनेवाला (हे १, १७७)। विवेयण न [विवेचन] विवेक, निर्णय (विसे २ ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि (सुपा १०८; विसंथुल देखो विसंतुल (पउम ८, २००; १९४२) । विचार १०७)। ३ मूषक, चूहा (दे ७, ६१ स ५२१)। विवोल [दे] विशेष कोलाहल, कलकल षड्)। ४ धर्म । ५ बल-युक्त। ६ ऋषभ विसंथुलिय वि [विसंस्थुलित व्याकुल बना मावाज: 'विवोलेण सवरणसुहा' (स ५७१)। नामक औषध । ७ पुरुष-विशेष (सुपा ३६३)।। हुप्रा (सण)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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