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________________ विजल-विज्जोविय पाइअसद्दमण्णवो ७७६ विज्जल ( [विजल] १ नरकावास-विशेष, विजाडय देखो विज्झिडिय (राज) ३२६) । ७ न. एक विद्याधर-नगर (इक एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २८)। २ वि. जल-विज्जु [विद्यत्] १ विद्याधर-वंश का ___३२९) मई स्त्री [मती] एक स्त्री का रहित (निचू १) एक राजा (पउम ५, १८) । २ देवों की एक नाम (पएह १, ४-पत्र ८५) + मालि पुं विजल) नदे. विजल] कर्दम, पंक, जाति, भवनपति देवों का एक भेद (पएह [°मालिन् १ पंचशैल द्वीप का अधिपति विज्जुल कांदो, कादा (प्राचा २, १, ५, १, ४.-पत्र ६८)। ३ प्राभलकप्पा नगरी एक यक्ष (महा) । २ रावण का एक सुभट ३; २, १०, २) का निवासी एक गृहस्थ (णाया २-पत्र (से १३, ८४)। ३ ब्रह्मदेवलोक का इंद्र विजलिया स्त्री [विद्युत् ] बिजली (कुप्र २५१)। ४ एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)। (राज) "मुह पुं [°मुख] १ विद्याधर-वंश ५ स्त्री. ईशानेन्द्र के सोम आदि लोकपालों की का एक राजा (पउम ५, १८)। ३ एक विजा श्री [विद्या] १ शास्त्र ज्ञान, यथार्थ एक-एक अग्रमहिषी-पटरानी (ठा ४,१ अन्तर्वीप । ४ उसका निवासी मनुष्य (ठा ४, २–पत्र २२६; इक) मेह [ मेघ ज्ञान, सम्यग् ज्ञान (उत्त २३, २० एंदिः पत्र २०४)। ६ चमर नामक इन्द्र की एक १ विद्युत्प्रधान मेघ, जल-रहित मेघ । २ धर्मवि ३६ कुमाः प्रासू ४३) । २ मन्त्र, पटरानी (ठा ५, १-पत्र ३०२, रणाया बिजली गिरानेवाला मेघ (भग ७, ६--पत्र देवी-अधिष्ठित अक्षर-पद्धति । ३ साधनावाला २-पत्र २५१)। ७ पुंस्त्री. बिजली; विज्जुणा, मन्त्र (पिंड ४६४, प्रौपः ठा ३, ४ टी ३०५)यार पुं [कार] बिजली करना, विज्जूए' (हे १, ३३, कुमा; गा १३५)। पत्र १५६) अणुप्पवाय न [ अनुप्रवाद] विद्युद-रचना (भग २, ६) °लआ, ल्लया ८ सन्ध्या , शाम (हे १,३३) । वि. विशेष जैन भंग ग्रन्थांश विशेष, दसवाँ पूर्व (सम रूप से चमकनेवाला; 'विज्जुसोयामणिप्पभा' स्त्री [लता] विद्युत्, बिजली (नाट-वेणी २६), 'चारण ' ["चारण] शक्ति-विशेष- (उत्त २२, ७) कार देखो प्यार (जीव ६६, काल) हहाइदन [°लखायित] संपन्न मुनि (भग २०, ६-पत्र ७६३) बिजली की तरह आचरण (कप्पू), बिल३-पत्र ३४२) °कुमार पुं [कुमार] 'चारणलद्धि स्त्री [चारणलब्धि] शक्ति सिअ न ["विलसित] १ छन्द-विशेष (अजि एक देव-जाति (भगः इक), कुमारी स्त्री विशेष (भग २०, ६) गुप्पवाय देखो २१)। २ विजली का विलास (से ४, ४०)। ['कुमारी] विदिग्रुचक पर रहनेवाली "सिहा स्त्री ["शिखा] एक रानो का नाम अणुप्पवाय (राज) गुवाय न [°नुवाद] दिक्कुमारी देवी; 'चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तदसवाँ पूर्व (सिरि २०७) पिंड पुं (महा)। रियामो पराणत्तानो' (ठा ४, १-पत्र विजआ स्त्री विद्यत 1१ बिजली (नाट-- [पिण्ड] विद्या के बल से अजित भिक्षा १९८) जिज्झ (?), जिब्भ पुं (निचू १३)मंत वि [व] विद्या | वेणी ६६)। २ बलि नामक इन्द्र के सोम [जिहब ] अनुवेलंघर नागराज का एक संपन्न (उप ४२५) लय पुंन [°लय] आदि चारों लोकपालों की एक-एक पटरानी आवास-पर्वत ( इक; राज )। तेअ पुं पाठशाला (प्रामा) - सिद्ध वि [सिद्ध] 'मित्तगा सुभद्दा विज्जुत्ता (? या) प्रसरणी' [तेजस् ] विद्याधरवंश का एक राजा(पउम १ सर्व विद्याओं का अधिपति, सभी विद्याओं (ठा ४, १-पत्र २०४ इक)। ३ धरणेन्द्र ५, १८) दंत पुं [ दन्त] १ एक अन्तसे संपन्न । २ जिसको कम से कम एक । की एक अग्न-महिषी (णाया २--पत्र २५१ द्वीप । २ उसमें रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा इक)। महाविद्या सिद्ध हो चुकी हो वह; 'विज्जाण ४, २-पत्र २२६) दत्त पुं [ दत्त] विजआइत्त वि [विद्युत्कर्तृ] बिजली करनेचकवट्टी विज्जासिद्धो स, जस्स वेगावि विद्याधरवंश का एक राजा (पउम ५, १८) वाला (ठा ४, ४--पत्र २६६)। सिज्झज्ज महाविज्जा' (प्रावम) हर पुं दाढ [ दंष्ट] विद्याधर-वंश में उत्पन्न एक विज्जला । देखो विज्जु = विद्युत् (हे २ [धर] १ क्षत्रियों का एक वंश (पउम ५, राजा का नाम (पउम ५, १८) पह, विजुलिआ १७३; षड् १६१, कुमाः प्राकृ २)। २ पुंस्त्री. उस वंश में उत्पन्न (महा)। प्पभ, पह [प्रभ] १ एक वक्षस्कार विजली । ३६ प्रातः पि २४४)। स्त्री.री (महा: उब)। ३ वि. विद्या-धारी, पर्वत का नाग (सम १०२ टी ठा २, ३- | विजू देखो विज । माला स्त्री [°माला] शक्ति विशेष-सम्पन्न (ौपः रायः ज ४) पत्र ६६ ५, २-पत्र ३२६, जं ४ सम । छन्द-विशेष (पिंग हरगोवाल पुं[धरगोपाल] एक प्राचीन १०२; इक)। २ कूट-विशेष, विद्युत्प्रभ विजे प्र[दे] १ मार्ग से, रास्ता से। २ जैन मुनि, जो सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध प्राचार्य वक्षस्कार का एक शिखर (जं ४ इक) । ३ लिए (भवि)। के शिष्य थे (कप्प)। हरी स्त्री ['धरी] देव-विशेष, विद्यत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत विज्जोअ पूं [विद्योत ] उद्योत, प्रकाशा एक जैन मुनि-शाखा (कप्प) + हार (अप) का अधिष्ठाता देव (जं ४)। ४ अनुबेलधर 'जोव्वणं जीविग्नं रूवं विजुविज्जोप्रचंचलं' न [°धर] छन्द-विशेष (पिंग) । नागराज का एक प्रावास-पवंत (ठा ४, २- (हित )iv विजावञ्च (अप) देखो वेयावञ्च (भवि) ।। पत्र २२६, इक)। ५ उस पर्वत का निवासी विजोडय । वि [विद्योतित] प्रकाशितः विजाहर वि [वैद्याधर] विद्याधर-संबन्धी; देव (ठा ४, २-पत्र २२६)। ६ देवकुरु विज्जोविय चमका हुआ (उप पू ३३; स स्त्री. 'एसा विज्जाहरी माया' (महा)। वर्ष में स्थित एक महाद्रह (ठा ५, २-पत्र । ५७६) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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