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________________ (८) मागधी मागधी प्राकृत के सर्व-प्राचीन निदर्शन अशोक-साम्राज्य के उत्तर और पूर्व भागों के खालसी, मिरट, लौरिया ( Lauriya), सहसराम, बराबर ( Barabar ), रामगढ़, धौलि और जौगढ़ ( Jaugadha ) प्रभृति स्थानों के अशोकनिदर्शन शिलालेखों में पाये जाते हैं। इसके बाद नाटकीय प्राकृतों में मागधी भाषा के उदाहरण देखे जाते हैं। नाटकीय मागधी के सर्व-प्राचीन नमूने अश्वघोष के नाटकों के खण्डित अंशों में मिलते हैं। भास के नाटकों में, कालिदास के नाटकों में और मृच्छकटिक आदि नाटकों में मागधी भाषा के उदाहरण विद्यमान हैं। . वररुचि के प्राकृतप्रकाश, चण्ड के प्राकृतलक्षण, हेमचन्द्र के सिद्धहेमचन्द्र (अष्टम अध्याय), क्रमदीश्वर के संक्षिप्तसार, लक्ष्मीधर की षड्भाषाचन्द्रिका और माकेण्डेय के प्राकृतसर्वस्व आदि प्रायः समस्त प्राकृत-व्याकरणों में मागधी भाषा के लक्षण और उदाहरण दिए गए हैं। . भरत के नाट्यशास्त्र में मागधी भाषा का उल्लेख है और उन्होंने नाटक में राजा के अन्तःपुर में रहनेवाले, सुरंग खोदनेवाले, कलवार, अश्वपालक वगैरह पात्रों के लिए और विपत्ति में नायक के लिए भी इस भाषा का प्रयोग करने को कहा विनियोग है। परन्तु मार्कण्डेय द्वारा अपने प्राकृतसर्वस्व में उद्धृत किये हुए कोहल के “राक्षसभिक्षुक्षपणकचेटाद्या मागधीं प्राहुः" इस वचन से मालूम होता है कि भरत के कहे हुए उक्त पात्रों के अतिरिक्त भिक्षु, क्षपणक आदि अन्य लोग भी इस भाषा का व्यवहार करते थे। रुद्रट, वाग्भट, हेमचन्द्र आदि आलंकारिकों ने भी अपने-अपने अलंकार-ग्रन्थों में इस भाषा का उल्लेख किया है। ___ मगध देश ही मागधी भाषा का उत्पत्ति-स्थान है। मगध देश की सीमा के बाहर भी अशोक के शिलालेखों में जो इसके निदर्शन पाये जाते हैं उसका कारण यह है कि मागधी भाषा उस समय राजभाषा होने के कारण मगध के बाहर भी ना इसका प्रचार हुआ था। सम्भवतः राज-भाषा होने के कारण ही नाटकों में सर्वत्र ही राजा के ' अन्तःपुर के लोगों के लिए इस भाषा का व्यवहार करने का नियम हुआ था। प्राचीन भिक्षु और क्षपणक भी मगध के ही निवासी होने से, सम्भव है, नाटकों में इनकी भाषा भी मागधी ही निर्दिष्ट की गई है। वररुचि ने अपने प्राकृत व्याकरण में मागधी की प्रकृति-मूल होने का सम्मान सौरसेनी को दिया है। इसीका अनुसरण कर मार्कण्डेय ने भी सौरसेनी से ही मागधी की सिद्धि कही है। किन्तु मागधी और सौरसेनी आदि प्रादेशिक भाषाओं का भेद अशोक के शिलालेखों में भी देखा जाता है। इससे यह सिद्ध है कि ये सब प्रादेशिक भेद प्राचीन और समसामयिक हैं, एक प्रदेश की भाषा से दूसरे प्रदेश में उत्पन्न नहीं हुए हैं। जैसे सौरसेनी मध्यदेश में प्रचलित वैदिक युग की कथ्य भाषा से उत्पन्न हुई है वैसे मागधी ने भी उस कथ्य भाषा से जन्म-ग्रहण किया है जो वैदिककाल में मगध देश में प्रचलित थी। अशोक-शिलालेखों की और अश्वघोष के नाटकों की मागधी भाषा प्रथम युग की मागधी भाषा के निदर्शन हैं। भास के और परवर्ती काल के अन्य नाटकों की और प्राकृत-व्याकरणों की मागधी मध्य-युग की मागधी समय भाषा के उदाहरण हैं। __ शाकारी, चाण्डाली और शाबरी ये तीन भाषाएँ मागधी के ही प्रकार-भेद-रूपान्तर हैं। भरत ने शाकारी भाषा का व्यवहार शबर, शक आदि और उसी प्रकृति के अन्य लोगों के लिए कहा है, किन्तु मार्कण्डेय ने राजा के साले की भाषा शाकारी बतलाई है। भरत पुक्कस आदि जातियों की व्यवहार-भाषा को चाण्डाली और अंगारकार, व्याध, सर प्रदेश में उत्पन्न नहीं हुए काल में मगध देश में प्रकस्य भाषा से उत्पन्न हुई है १. "मागधी तु नरेन्द्राणामन्तःपुरनिवासिनाम्" (नाट्यशास्त्र १७, ५०)। ___“सुरङ्गाखनकादीनां शुण्डकाराश्वरक्षिणाम् । व्यसने नायकानां स्यादात्मरक्षासु मागधी ॥" (नाट्यशास्त्र १७,५६)। २. "प्रकृतिः सौरसेनो" (प्राकृतप्रकाश ११, २)। ३. "मागधी शौरसेनीतः" (प्राकृतसर्वस्व, पृष्ठ १०१)। ४. “शबराणां शकादीनां तत्स्वभावश्च यो गणः । शकारभाषा योक्तव्या" (नाट्यशास्त्र १७, ५३)। ५. "शकारस्येयं शाकारी, शकारश्च 'राज्ञोऽनूढाभ्राता श्यालस्वैश्वर्यसंपन्नः ।। मदमूर्खताभिमानी शकार इति दुष्कुलीनः स्यात्' इत्युक्तेः" (प्राकृतसर्वस्व, पृष्ठ १०५)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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