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________________ ( ३८ ) भरत-रचित कहे जाते नाट्य-शास्त्र में जिन सात भाषाओं का उल्लेख है उनमें एक अर्धमागधी भी है। इसी नाट्यशास्त्र में नाटकों के नौकर, राजपुत्र और श्रेष्टी इन पात्रों के लिए इस भाषा का प्रयोग निर्दिष्ट किया गया है इससे नाटकों में इन पात्रों की जो भाषा है वह अर्धमागधी कही जाती है। परन्तु नाटकों की अर्धमागधी और जैन सूत्रों की . अर्धमागधी में परस्पर समानता की अपेक्षा इतना अधिक भेद है कि यह एक दूसरे से अभिन्न कभी नाटकीय अर्धमागधी नहीं कही जा सकती। मार्कण्डेय ने अपने प्राकृत-व्याकरण में मागधी भाषा के लक्षण बताकर उसी जैन-सूत्रों की मधमागधी प्रकरण के शेप में अर्धमागधी भाषा का यह लक्षण कहा है-“शौरसेन्या प्रदूरत्वादियमेवार्धमागधी" से भिन्न है अर्थात शौरसेनी भाषा के निकट-वर्ती होने के कारण मागधी ही अर्धमागधी है । इस लक्षण के अनन्तर उन्होंने उक्त नाट्य-शास्त्र के उस वचन को उद्धृत किया है, जिसमें अर्धमागधी के प्रयोगाई पात्रों का निर्देश है और इसके बाद उदाहरण के तौर पर वेणीसंहार की राक्षसी की एक उक्ति का उल्लेख कर अर्धमागधी का प्रकरण खतम किया है। इससे यह स्पष्ट मालूम होता है कि भरत का अर्धमागधी-विषयक उक्त वचन और मार्कण्डेय का अर्धमागधी-विषयक उक्त लक्षण नाटीय अर्धमागधी के लिए ही रचित है; जैन सूत्रों की अर्धमागधी के साथ इसका कोई संबन्ध नहीं है। क्रमदीश्वर ने अपने प्राकृत-व्याकरण में अर्धमागधी का जो लक्षण किया है वह यह है-""महाराष्ट्रीमियाऽ धमागधी" अर्थात् महाराष्टी से मिथित मागधी भाषा ही अर्धमागधी है। जान पड़ता है, क्रमदीश्वर का यह लक्षण भी नाटकीय अर्धमागधी के लिए ही प्रयोज्य है, क्योंकि उक्त नाट्यशास्त्र में जिन पात्रों के लिए अर्धमागधी के प्रयोग का नियम बताया गया है, अनेक नाटकों में उन पात्रों की भाषा भिन्न-भिन्न है। संभवतः इसी भिन्नता के कारण ही क्रमदीश्वर ने और मार्कण्डेर ने अर्धमागधी के भिन्न-भिन्न लक्षण किए हैं। जैसे हम पहले कह चुके हैं, जैन सूत्रों की अर्धमागधी में इतर भाषाओं की अपेक्षा महाराष्टी के लक्षण अधिक देखने में आते हैं। किन्तु यह याद रखना चाहिए कि ये लक्षण साहित्यिक महाराष्ट्री से जैन अर्धमागधी में नहीं आये हैं। इसका कारण यह है कि जैन सूत्रों की अर्धमागधी भाषा साहित्यिक महाराष्ट्री भाषा से अधिक प्राचीन है और ___इससे यही (अर्धमागधी) महाराष्ट्री का मूल कही जा सकती है। डॉ. हॉर्नलि ने जैन अर्धमागधी महाराष्ट्री से अर्धमागधी को ही आर्ष प्राकृत कहकर इसीको परवर्ती काल में उत्पन्न नाटकीय अर्धमागधी, महाराष्ट्री और प्राचीन है शौरसेनी भाषाओं का मूल माना है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत-व्याकरण में महाराष्टी नाम न दे कर प्राकृत के सामान्य नाम से एक भाषा के लक्षण दिए हैं और उनके उदाहरण साधारण तौर से अर्वाचीन महाराष्ट्री-साहित्य से उद्धृत किये हैं। परन्तु जहाँ अर्धमागधी के प्राचीन जैन ग्रन्थों से उदाहरण लिए हैं वहाँ इसको आर्ष प्राकृत का विशेष नाम दिया है। इससे प्रतीत होता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने भी एक ही भाषा के प्राचीन रूप को आर्ष प्राकृत और अर्वाचीन रूप को महाराष्टी मानते हुए आर्ष प्राकृत को महाराष्ट्री का मूल स्वीकार किया है। नाटकीय अर्धमागधी में मागधी भाषा के लक्षण अधिकांश में पाये जाते हैं इससे 'मागधी से ही अर्धमागधी भाषा की उत्पत्ति हुई है और जैन सूत्रों की भाषा में मागधी के लक्षण अधिक न मिलने से वह अर्धमागधी कहलाने योग्य नहीं' यह जो भ्रान्त संस्कार कई लोगों के मन में जमा हुआ है, उसका मूल है अर्धमागधी शब्द को मागधी भाषा के अधोश. १. "मागध्यवन्तिजा प्राच्या सूरसेन्यर्धमागधी । वाह्रीका दाक्षिणात्या च सप्त भाषा: प्रकीर्तिताः' (१७, ४८) । २. "चेटानां राजपुत्रारणां श्रेष्ठिनां चार्धमागधी" (भरतीय नाट्यशास्त्र, निर्णयसागरीय संस्करण, १७, ५०)। मार्कण्डेय ने अपने व्याकरण में इस विषय में भरत का नाम देकर जो वचन उद्धृत किया है वह इस तरह है-"राक्षसी श्रेष्ठिचेटानुकादेरर्धमागधी' इति भरतः" यह पाठान्तर ज्ञात होता है। ३. प्राकृतसर्वस्व (पृष्ठ १०३)। ४. संक्षिप्तसार (पृष्ठ ३८)। ५. देखो, भास-रचित कह जाते 'चारुदत्त' और 'स्वप्नवास दत्त' में क्रमशः चेट तथा चेटी की भाषा और शुद्रक के 'मृच्छकटिक' में चेट और श्रेष्ठी चन्दनदास की भाषा। &. "It thus seems t me very clear, that the Prākrit of Charda is the ARSHA or ancient (Poran) orm of the Ardhamāgadhi, Mahāräshtri and Sauraseni." (Introduction to Präkritakshana of Chanda, Page XIX). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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