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________________ संस्कृत श ( वश ष (मेष) स (सारस ) उत्पन्न हुई थी । विनियोग पालि न ( वचन ) ट्ट (पट्ट) र्थ ( प्र ) स्' (वृक्षः ) त्थ (अत्थ) ओ (रुक्खो) पालि भाषा की उत्पत्ति का समय ख्रिस्त के उत्पत्ति समय (स) स (मेस ) स (सारस) न ( वचन ) ट्ट ( पट्ट ) Jain Education International. ( २६ ) पैशाची (स) स (मेस) स (सारस) न (वचन) ट्ट ( पट्ट) त्थ (प्रत्थ) ओ (रुक्खो) शौरसेनी स ( स ) स (मेस ) स (सारस) ण (वरण) ट्ट ( पट्ट ) त्थ (प्रत्थ ) ओ (रुक्खो) इस पालि भाषा से आधुनिक सिंहली भाषा की उत्पत्ति हुई है। प्राकृत शब्द से साधारणतः पालि-भिन्न अन्य भाषाएँ ही समझो जाती हैं। इससे, और पालि भाषा के अनेक स्वतन्त्र कोष होने से, प्रस्तुत कोष में पालि भाषा के शब्दों को स्थान नहीं दिया गया है। इसलिए पालि भाषा की विशेष आलोचना करने की यहाँ आवश्यकता नहीं है । पूर्व षष्ठ शताब्दी कहा जाता है, किन्तु वह काल बुद्धदेव की समसामयिक कथ्य मागधी भाषा का हो सकता है। पालि कथ्य भाषा नहीं, परन्तु बोद्ध धर्म - साहित्य भाषा है। संभवतः यह भाषा ख्रिस्त के पूर्व चतुर्थ या पञ्चम शताब्दी में पश्चिम भारत में ( २ ) पैशाची गुणाढ्य ने 'बृहत्कथा पैशाची भाषा में लिखी थी, जो लुप्त हो गई है। इस समय पैशाची भाषा के उदाहरण निदर्शन प्राकृतप्रकाश, आचार्य हेमचन्द्र का प्राकृतव्याकरण, षड्भाषाचन्द्रिका, प्राकृत- सर्वस्व और संक्षिप्त सार आदि प्राकृत व्याकरणों में आचार्य हेमचन्द्र के कुमारपाल चरित तथा काव्यानुशासन में, मोहराज - `पराजय नामक नाटक में और दो-एक षड्भाषास्तोत्रों में मिलते हैं । भरत के नाट्यशास्त्र में पैशाची नाम का उल्लेख देखने में मिश्र आदि संस्कृत के आलंकारिकों ने इसका उल्लेख किया है । अभिहित की है । मागधी श ( वश ) श ( मेश) श (शालश) or (वरण) स्ट (पस्ट ) स्त (मस्त) ए ( लुक्खे) ४ "केशवनहीं आता है, परन्तु इसके परवर्ती रुद्रट, वाग्भट ने इस भाषा को "भूतभाषित' के नाम से ४. काव्यालंकार २, १२ । ५. 'संस्कृतं प्राकृतं चैव पैशाची मागधी तथा' (श्रलङ्कार शेखर, पृष्ठ ५)। ६. 'संस्कृतं प्राकृतं तस्यापभ्रंशो भूतभाषितम् (वाग्भटालङ्कार २, १) । ७. यद् भूतैरुच्यते किञ्चित् तद्भौतिकमिति स्मृतम्' (वाग्भटालङ्कार २, ३ ) । भट तथा "केशव मिश्र ने क्रम से भूत और पिशाच-प्रभृति पात्रों के लिए और बहुभाषा चन्द्रिका कार ने राक्षस, पिशाच और नीच पात्रों के लिए इसका विनियोग बतलाया है । १. पुंलिंग में प्रथमा के एक वचन का प्रत्यय । की २. प्राचार्यं उद्योतन की कुवलयमाला में, दण्डी के काव्यादर्श में, बारण के हर्षचरित में, धनञ्जय के दशरूपक में, सुबन्धु वासवदत्ता में और प्रन्यान्य प्राकृत संस्कृत ग्रंथों में इसका उल्लेख पाया जाता है। क्षेमेन्द्रकृत बृहत्कथामञ्जरी और सोमदेव भट्टप्रणीत कथासरित्सागर इसी बृहत्कथा का संस्कृत अनुवाद है। इस बृहत्कथा के ही भिन्न-भिन्न अंशों के आधार पर बाण, श्रीहर्षं, भवभूति आदि संस्कृत के महाकवियों की कादम्बरी, रत्नावली, मालतीमाधव प्रभृति अनेक संस्कृत ग्रंथों की रचना की गई है। ३. पृष्ठ २२६६ २३३ । ८. 'पैशाची तु पिशाचाद्या: प्राहु:' ( श्रलङ्कारशेखर, पृष्ठ ५ ) । ९. रक्षः पिशाचनीचेषु पैशाचीद्वितयं भवेत् ||३५|| ( षड्भाषा चन्द्रिका, पृष्ठ ३) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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