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________________ ( २३ ) "तत्' शब्द का सम्बन्ध संस्कृत से लगाकर इस मत का अनुसरण किया है। कतिपय प्राकृत-व्याकरणों में प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति इस तरह की गई है : 'प्रकृतिः संस्कृतं, तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम्' (हेमचन्द्र प्रा० व्या०)। 'प्रकृति: संस्कृतं तत्र भवं प्राकृतमुच्यते' (प्राकृतसर्वस्व)। 'प्रकृतिः संस्कृतं तत्र भवत्वात् प्राकृतं स्मृतम्' (प्राकृतचन्द्रिका)। 'प्रकृतेः संस्कृतायास्तु विकृतिः प्राकृतो मता' (षड्भाषाचन्द्रिका)। 'प्राकृतस्य तु सर्वमेव संस्कृत योनिः' (प्राकृतसंजीवनी)। इन व्युत्पत्तियों का तात्पर्य यह है कि प्राकृत शब्द 'प्रकृति' शब्द से बना है, 'प्रकृति' का अर्थ है संस्कृत भाषा, संस्कृत भाषा से जो उत्पन्न हुई है वह है प्राकृत भाषा । प्राकृत वैयाकरणों की प्राकृत शब्द की यह व्याख्या अप्रामाणिक और अव्यापक ही नहीं है, भाषा-तत्व से असंगत भी है। अप्रामाणिक इसलिए कही जा सकती है कि प्रकृति शब्द का मुख्य अर्थ संस्कृत भाषा कभी नहीं होता-संस्कृत के किसी कोष में प्राकृत शब्द का यह अर्थ उपलब्ध नहीं है और गौण या लाक्षणिक अर्थ तबतक नहीं लिया जाता जबतक मुख्य अर्थ में बाध न हो । यहाँ प्रकृति शब्द के मुख्य अर्थ स्वभाव अथवा 'जन-साधारण लेने में किसी तरह का बाध भी नहीं है। इससे उक्त व्युत्पत्ति के स्थान में 'प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्' अथवा 'प्रकृतीनां साधारणजनानामिदं प्राकृतम्' यही व्युत्पत्ति संगत और प्रामाणिक हो सकती है। अव्यापक कहने का कारण यह है कि प्राकृत के पूर्वोक्त तीन प्रकारों में तत्सम और तद्भव शब्दों की ही प्रकृति उन्होंने संस्कृत मानी है, तीसरे प्रकार के देश्य शब्दों की नहीं, अथच देश्य को भी प्राकृत कहा है। इससे देश्य प्राकृत में वह व्युत्पत्ति लागू नहीं होती। प्राकृत की संस्कृत से उत्पत्ति भाषा-तत्त्व के सिद्धान्त से भी संगति नहीं रखती, क्योंकि वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत ये दोनों ही साहित्य की मार्जित भाषाएँ हैं। इन दोनों भाषाओं का व्यवहार शिक्षा की अपेक्षा रखता है। अशिक्षित, अज्ञ और बालक लोग किसी काल में साहित्य की भाषा का न तो स्वयं व्यवहार कर सकते हैं और न समझ ही पाते हैं। इसलिए समस्त देशों में सर्वदा ही अशिक्षित लोगों के व्यवहार के लिए एक कथ्य भाषा चालू रहती है जो साहित्य की भाषा से स्वतन्त्र-अलग होती है। शिक्षित लोगों को भी अशिक्षित लोगों के साथ बातचीत के प्रसंग में इस कथ्य भाषा का ही व्यवहार करना पड़ता है। वैदिक समय में भी ऐसी कथ्य भाषा प्रचलित थी। और जिस समय लौकिक संस्कृत भाषा प्रचलित हुई उस समय भी साधारण लोगों की स्वतन्त्र कथ्य भाषा विद्यमान थी, यह नाटक आदि में संस्कृत भाषा के साथ प्राकृत-भाषी पात्रों के उल्लेख से प्रमाणित होता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा को जो लौकिक भाषा कही है और पतञ्जलि ने इसको जो शिष्ट-भाषा का नाम दिया है. उसका मतलब यह नहीं है कि उस समय प्राकृत भाषा थी ही नहीं, परन्तु उसका अथें यह है कि उस समय के शिक्षित लोगों के आपस के वार्तालाप में, वर्तमान काल के पण्डित लोगों में संस्कृत की तरह और भिन्नदेशीय लोगों के साथ के व्यवहार Lingun Prinon की माफिक संस्कृत भाषा व्यवहृत होती थी। किन्तु बालक, स्त्रियाँ और अशिक्षित लोग अपनी मात. भाषा में बातचीत करते थे जो संस्कृत-भिन्न साधारण कथ्य भाषा थी। साधारण कथ्य भाषा किसी देश में किसी काल में साहित्य की भाषा से गृहीत नहीं होती, बल्कि साहित्य-भाषा ही जन-साधारण की कथ्य भाषा से उत्पन्न होती है। इसलिए 'संस्कत से प्राकत भाषा की उत्पत्ति हुई है' इसकी अपेक्षा 'क्या तो वैदिक संस्कृत और क्या लौकिक संस्कृत दोनों ही उस समय की प्राकृत भाषाओं से उत्पन्न हुई है' यही सिद्धान्त विशेष युक्ति-संगत है। आजकल के भाषा तत्त्वज्ञों में इसी सिद्धान्त का अधिक आदर देखा जाता है। यह सिद्धान्त पाश्चात्य विद्वानों का कोई नूतन आविष्कार नहीं है, भारतवर्ष के प्रकते: संस्कृतादागतं प्राकृतम्' (वाग्भटालंकारटीका २, २); 'संस्कृतरूपाया: प्रकृतेरुत्पन्नत्वात् प्राकृतम्' (काव्यादर्श की प्रेमचन्द्र तर्कवागीश-कृत टीका १, ३३)। २ प्रतियोनिशिल्पिनोः । पौरामात्यादिलिगेषु गुणसाम्यस्वभावयोः । प्रत्यात् पूविकायां च' (अनेकार्थसंग्रह ८७६-७)। ३. 'स्वाम्यमात्यः सुहृत्कोशो राष्ट्रदुगंबलानि च । राज्याङ्गानि प्रकृतयः पौराणां श्रेणयोऽपि च ।। (प्रभिधानचिन्तामणि ३, ३७८)। 'यत् कात्यः-अमात्याद्याश्च पौराश्च सद्भिः प्रकृतयः स्मृताः' (म०चि० ३, ३७८ की टीका)। ४. कोई कोई प्राधुनिक विद्वान् प्राकृत भाषा की उत्पत्ति वैदिक संस्कृत से मानते हैं, देखो 'पाली-प्रकाश' का प्रवेशक पृष्ठ ३४-३६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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