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________________ ऐ-ओअव पाइअसहमहण्णवो १६५ ऐअ [अयि] इन अर्थों का सूचक अव्यय- १ संभावना । २ आमन्त्रण, संबोधन । ३ प्रश्न । ४ अनुराग, प्रीति । ५ अनुनयः 'ऐ बीहेमिः ऐ उम्मत्तिए' (हे १, १६६) ॥ इअ सिरिपाइअसद्दमहण्णवे ऐमाराइसद्द संकलणो अट्ठमो तरंगो समतो॥ ओ ओ] स्वर वर्ण-विशेष (हे १, १; ! ओअक्ख सक [दृश] देखना । प्रोअक्खइ ओअरण न [उपकरण] साधन, सामग्री (गा प्रामा) । (हे ४, १८१ षड् ) ६८१) ओ देखो अव = अप (हे १, १७२; प्राप्रः ओअग्ग सकवि +आप व्याप्त करना। ओअरण न [अवतरण] उतरना, नीचे आना कुमाः षड्) । प्रोगग्गइ (हे ४, १४१)। (गउड)। ओ देखो अव (हे १, १७२: प्रातः कुमाः ओअग्गिअ वि [व्याप्त] विस्तृत, फैला ! ओअरय पुं[अपवरक] कमरा, कोठरी (सुपा षड़)। ४१५) हुआ (कुमा)IV ओ देखो उव (हे १,१७२; कुमा) 14 ओअरिअ वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ (पान) ओअग्गिअ वि[दे] १ अभिभूत, परिभूत। ओ देखो उभ = उत (हे १,१७३; कुमा)। ओअरिअविऔदरिका पेट-भरा, पेट्र, उदर ओ अ [ओ] इन अर्थों का सूचक अव्यय। २ न. केश वगैरह को एकत्रित करना (दे १, । भरने मात्र की चिन्ता करनेवाला (प्रोध १७२) १ वितकं । २ प्रकोप, विस्मय (प्राकृ ७८)iv ओअग्घिअ) वि [दे] प्रात, सूघा हुमा ओअरिया स्त्री अपवरिका] कोठरी, छोटा ओप[ओ] इन अर्थों का सूचक अव्यय- ओअघिअ (दे१, १६२ षड्) । कमरा (सुपा ४१५)।" त्ताप, अनुतापः 'भो न मए छाया इत्तिमाए' । तरफ मुड़ा हुआ (से ११, ११८)। तरफ मडामा मेर ओअल्ल देखो ओवट्ट = अप + वृत् । प्रोप्रल्लइ (हे २, २०३; षड्; कुमाः प्राप्र)। ३ (प्राकृ ७०)। ओअत्त वि [अपवृत्त] पौधा किया हुआ, ओअल्ल मक [अव+चल] चलना । संबोधन, आमन्त्रण (नाट-चैत ३४) ।। । उलटा किया हुआ: प्रोग्रत्ते कुभमुहे जललव - प्रोग्रलंति (पि १६७४८८) । वकृ. ओअ४ पादपूर्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय करिणावि किं ठाइ ?' (गा ६५४)। लंत (पि १६७४८८) । (पंचा १; विसे २०२४) । ओअत्तअ बि [अपवर्तितव्य] १ अपवर्तन- ओअल्ल j[दे] १ अपचार, खराब आचरण, ओअ न [दे] वार्ता, कथा कहानी (दे १, योग्य । २ त्यागने योग्य, छोड़ने लायक १४६) अहित आचरण (षड् स ५२१)। २ कम्प, 'कुसुमम्मि व पव्वाअए भमरोअत्तम्मि' कांपना (षड्; दे १,१६५)। ३ गौनों का ओअअ वि [अपगत अपमृत; 'प्रोप्राभव-'। (से ३,४८)। बाड़ा । ४ वि. पर्यस्त, प्रक्षिप्त । ५ लम्बमान, (पि १६५)। ओअम्मअ वि [दे] अभिभूत, पराभूत लटकता हुआ (दे १, १६५)। ६ जिसको ओअंक दे] गजित, गर्जना (दे १, १५४) (षड) आँखें निमीलित होती हों वहः 'मुच्छिज्जतोओअंद सक [आ + छिद्] १ बलात्कार से ओअर सक [अव + त] १ जन्म-ग्रहण अल्ला अक्कंता णिप्रसमहिहरेहि पवंगा' (से छीन लेना । २ नाश करना । प्रोअंद३ (हे ४, करना। २ नीचे उतरना । प्रोयरइ (हे ४, १३, ४३)।V १२५; षड्) IV ८५) । वकृ. ओयरंत (ोघ १६१; सुर ओअल्लअ वि [दे] विप्रलब्ध, प्रतारित (षड् ) ओअंदणा स्त्री [आच्छेदना] १ नाश । २ १४, २१)। हेकृ. ओयरिउं (प्रारू)। कृ. ओअव सक [साधय् ] साधना, वश में जबरदस्ती छीनना (कुमा)। ओयरियव्व (सुर १०, १११)। करना, जीतनाः ‘गच्छाहि णं भो देवाणु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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