SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ " एल } एलग | [दे] कुशल ना दे १, १४४) । [ एड, एल] १ मृगों की एक जाति (विपा १, ४) । २ मेष भेड़ (मूत्र २,२) । मूअ, मूग वि ["मूक ] १ मूक, भेड़ की तरह अव्यक्त बोलनेवाला; 'जलएलमुग्रमम्मरणमलियवयरणजंपणे दोसा' ( श्रा १२: दस ५ श्राव ४ निचु ११ ) | एलगच्छ न [एलकाक्ष ] स्वनाम-ख्यात नगरविशेष ( अ २११ टी ) 1 एवं अ [ एवम् ] इस तरह इस रीति से, इस प्रकार ( १ १ १ २१) भूज हे । पुं [ भूत] १ व्युत्पत्ति के अनुसार उस क्रिया से विशिष्ट अर्थ को ही शब्द का अभिधेय मानानेवाला पक्ष (ठा ७) । २ वि. इस तरह का, एवं प्रकार (उप ८७७) । 'विध, विह वि [विध ] इस प्रकार का ( हे ४, ३२३ काल) 1 एलाच वि [ऐलापत्य ] एलापत्थ- गोत्र का (गंदि ४९ ) । एवश्य एलावा स्त्री [एलापत्या ] पक्ष की तीसरी रात (चंद १०, १४) पाइसम [श्य एतावत्] [दतना (प एलय देखो एल ( उवा पि २४० ) । एलविल व [] १ धनाव्य, धनी । २ पुं. एवंहास पुं [ एवंहास] इतिहास ( गउड R) IV वृषभ, बैल ( दे १, १४८) पड् ) । एल स्त्री [एला ] १ इलायची का पेड़ (से ७, ६२) । २ इलायची-फल (सुर १३, ३३) । रस पुं [स] इलायची का रस (परा २,५ ) 1 एलिस वि[ई] [ऐसा (७, २२) एघि [एलिङ ] धान्य- विशेष (पराह १) एलिया स्त्री [एडिका, एलिका ] १ एक जात की मृगी । २ भेड़िया (हे ३, ३२) IV एलिस देखो एरिस (सूत्र १,६,१) एतु [एलु] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी) । एलुग (पुंन [एलुक ] देहली, द्वार के नीचे एतु ) की लकड़ी ( जीव ३ श्राचा २) | एवि [] निर्धन (दे १, १७४) IV एव [] इन अर्थों का सूचक अव्ययःअवधारण, निश्चय (ठा ३, ९ प्रासू १६) २ सादृश्य, तुल्यता । ३ चार- नियोग । ४ निग्रह | ५ परिभव । ६ श्रल्प, थोड़ा ( हे २, २१७ ) । एव देखो एवं (हे १, २६; पउम १५, २४) । वि । एव [इयत् एतावन्] इतना खुत्तो (कप्प । "तो [ कृत्वस् ] इतनी बार (भय) .१ " Jain Education International विसे ४४४) । Iv एवमाइ देखी एमाइ ( प १३) एवमेव } एमेव (हे देखो मे (१२०१) एलालु पुंन [एलालुक] भालू की एक एवामेव जाति, कन्द- विशेष (ऋतु ६ ) | एलाच्च न [ एलापत्य ] माण्डव्य गोत्र का एक शाखा गोत्र (ठा ७) । एयं देखो एवं (षड् ; अभि ७२ स्वप्न १० एव्व देखो एव = एव (अभि १३: स्वप्न ४० ) | एहि (प) अ [ इदानीम् ] इस समय अधुना (पड्) | २ एव्वारु पुं [इ] ककड़ी (कुमा) । एस सक [इ] १ इच्छा करना । खोजना ३ प्रकाशित करना एसह (पिंड ७५) एस [ आ + इ ] करना, 'तम्हा विरयमेसिज्जा' (उत्त १, ७ सुख १, ७) 1 एस सक [ आ + इ ] १ खोजना, शुद्ध भिक्षा की खोज करना। २ निर्दोष भिक्षा का ग्रहण करना। एसंति ( आाचा २, ६, २) । वकृ. एसमाण (ग्राचा २, ५, १ ) । संकृ. एसिता, एसिया (उत्तमाना हेह. । एसिए (याचा २२, १) १ एसबि [ए] भाषी पदार्थ होनेवाली वस्तु ( आव ५ ) । २ पुं. भविष्य काल ( दसनि १); 'कथंव संपइ गए कह कीरइ, किह व एसम्मि' (विसे ४२२ ) । 3 एवड (प) वि [ इयन् ] इतना ( हे ४, ४०८ कुमा; भवि ) । 'एस देखो देस भएको ए सस्वद्द जो परितो एसकालम् (गा ४०० ) IV || इस सिरियाई असदमा एमाल सत्तमो तरंगो समत्तो ॥ For Personal & Private Use Only एल -- एहिअ एसग वि [एक] अन्वेषक, गवेषक ( श्राचा) ।' एसज्जन [ ऐश्वर्य ] वैभव, प्रभुत्व, संपत्ति (ठा ७) । एस न [पण] १ अन्वेषण, खोज २ ग्रहण ( उत्त २ ) । एसणा को [एपणा] वेगवे १ अन्वेषण, खोज (प्राचा) । २ प्राप्ति, लाभः 'विसएस भियायंति' (सूत्र १,११) ३ प्रार्थना ( सू १, २) । ४ निर्दोष आहार की खोज करना (ठा ६) । ५ निर्दोष भिक्षा ( आचा २) । ६ इच्छा, अभिलाष (पिंड १) । ७ भिक्षा का ग्रहण (ठा ३,४) । समिइ स्त्री [° समिति ] निर्दोष भिक्षा का ग्रहण करना (ठा ५) । 'समिय व [समित ] निर्दोष भिक्षा को ग्रहण करनेवाला (उत्त ६ भग) Iv ग्रहण योग्य साया खोज करनेवाला एस व [एपणीय ] 8,4) 11 एसि[िए] (प्राचा) - एसिय वि [ एपिक] १ खोज करनेवाला, गवेषक । २ पुं. व्याध । ३ पाखण्डि - विशेष । (सूप १, २) ४ मनुष्यों की एक गोष जाति (श्राचा २, १, २) V एसिय[] धन्य भग ७, १) । २ निर्दोष भिक्षा (वव ४ ) | एसिय वि [ एपित] भिक्षा-चर्या की विधि से प्राप्त (सू २, १५६) । एस्सरिय देखो एसज्ज (उब ) । एह क [ ए ] बढ़ना, उन्नत होना। एहइ ( दीसतहमा ( दस 8 ) 1 एद (अप) वि[ईट ] ऐना, इसके जैसा (fr) " इत्तरि (अप) श्री [एकसप्तति ] संख्याविशेष ७१ (पिंग)। ] समय, इन्धन (उत्त १२, एहा श्री [ ए ४३; ४४)। एहि वि [ ऐहिक] इस जन्म-संबन्धी (मो ६२) । www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy