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________________ ( १८ ) समय ये समस्त भाषाएँ कथ्य रूप से व्यवहृत नहीं होतीं, इसी कारण ये मृत भाषा (dead languages) कहलाती हैं। उक्त वैदिक आदि सब भाषाएँ आर्य भाषा के अन्तर्गत हैं और इन्हीं प्राचीन आर्य भाषाओं में से कईएक क्रमशः रूपान्तरित होकर आधुनिक समस्त आर्य भाषाएँ उत्पन्न हुई हैं। ये प्राचीन आर्य भाषाएँ कौन युग में किस रूप में परिवर्तित होकर क्रमशः आधुनिक कथ्य भाषाओं में परिणत हुई, इसका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जाता है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषाओं का परिणति-क्रम सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपनी लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (Linguistic survey of India) नामक पुस्तक में भारतवर्षीय समस्त आर्य भाषाओं के परिणाम का जो क्रम दिखाया है उसके अनुसार वैदिक भाषा उक्त साहित्य-भाषाओं में सर्व-प्राचीन है। इसका समय अनेक विद्वानों के मत में खिस्ताब्द-वृर्व दो हजार वर्ष (2001 ) और प्रो. वेद-भाषा पोर लौकिक मक्समूलर के मत में ख्रिस्ताब मेक्समूलर के मत में ख्रिस्ताब्द-पूर्व बारह सौ वर्ष (1200 B. C.) है। यह वेद-भाषा क्रमशः - परिमार्जित होती हुई ब्राह्मण, उपनिषद् और यास्क के निरक्त की भाषा में और बाद में पाणिनि-प्रभृति संस्कृत के व्याकरण-द्वारा नियन्त्रित होकर लौकिक संस्कृत में परिणत हुई है। पाणिनि आदि के पद-प्रभृति के नियम-कप संस्कारों को प्राप्त करने के कारण यह संस्कृत कहलाई। मुख्य रूप से 'संस्कृत' शब्द का प्रयोग इसी भाषा के अर्थ में किया जाता है। यह संस्कृत भाषा वैदिक भाषा से उत्पन्न होने से उसके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखने से वेदभाषा के अर्थ में भी 'संस्कृत' शब्द बाद के समय से प्रयुक्त होने लग गया है। पाणिनि के बाद संस्कृत भाषा का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यह परिवर्तन होने में-वेद-भाषा को लौकिक संस्कृत के रूप में परिणत होने में-प्रायः डेढ़ हजार वर्ष लगे हैं। पाणिनि का समय गोल्डस्टुकर के मत में ख्रिस्ताब्द-पूर्व सप्तम शताब्दी और बोथलिंक के मत में ख्रिस्ताब्द-पूर्व चतुर्थ शताब्दी है। यहाँ पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि डॉ. हॉनलि और सर ग्रियर्सन के मन्तव्य के अनुसार आर्य लोगों के दो दल भिन्न-भिन्न समय में भारतवर्ष में आये थे। पहले आयों के एक दल ने यहाँ आकर मध्यदेश में अपने उपनिवेश की स्थापना की थी। इसके कई सौ वर्षों के बाद आयों के दूसरे दल ने भारत में प्रवेश कर प्रथम दल के वेद और वैदिक सभ्यता आया का मध्यदेश को चारा ओ - आयों को मध्यदेश की चारों ओर भगा कर उनके स्थान को अपने अधिकार में किया और मध्यदेश - को ही अपना वास स्थान कायम किया। उक्त विद्वानों को यह मन्तव्य इसलिए करना पड़ा है कि मध्यदेश के चारों पाश्वों में स्थित पंजाब, सिन्ध, गुजरात, राकपूताना, महाराष्ट्र, अयोध्या, बिहार, बंगाल और उड़ीसा प्रदेशों की आधुनिक आर्य कथ्य भाषाओं में परस्पर जो निकटता देखी जाती है तथा मध्यदेश की आधुनिक हिन्दी भाषा पाश्चात्य हिन्दी के साथ उन सब प्रान्तों की भाषाओं में जो भेद पाया जाता है, उस निकटता और भेद का अन्य कोई कारण दिखाना असम्भव है। मध्यदेशवासी इस दूसरे दल के आयों का उस समय का जो साहित्य और जो सभ्यता थी उन्हीं के क्रमशः नाम हैं वेद और वैदिक सभ्यता। १. आर्य लोगों के आदिम वास-स्थान के विषय में आधुनिक विद्वानों में गहरा मत-भेद है। कोई स्वान्डोनेविया को, कोई जर्मनी को, कोई पोलण्ड को कोई हंगरी को, कोई दक्षिण रशिया को, कोई मध्य एशिया को प्रार्यों की प्रादिम निवास-भूमि मानते हैं तो कोई-कोई पंजाब और काश्मीर को ही इनका प्रथम वसति-स्थान बतलाते हैं। किन्तु अधिकांश विद्वान् भाषा-तत्त्व के द्वारा इस सिद्धान्त पर उपनीत हुए हैं कि युरोपीय और पूर्वदेशीय प्रार्यों में प्रथम विच्छेद हुमा। पोछे पूर्वदेश के मार्य लोग मेसेपोटेमिया और ईरान में एक साथ रहे और एक ही देव-देवी की उपासना करते थे। उसके बाद वे भी विच्छिन्न होकर एक दल फारस में गया और अन्य दल ने अफगानिस्तान के बीच होकर भारतवर्ष में प्रवेश और निवास किया। परन्तु जैन और हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भारतवर्ष ही चिरकाल से प्रार्यों का आदिम निवास-स्थान है। कोई-कोई आधुनिक विद्वान ने पुरातत्त्व की नूतन खोज के आधार पर भारतवर्ष से ही कुछ आर्य लोगों का ईरान प्रादि देशों में गमन और विस्तार-लाभ सिद्ध किया है, जिससे उक्त शास्त्रीय प्राचीन मत का समर्थन होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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