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________________ प्रथम संस्करण का उपोद्घात जो भाषा अतिप्राचीन काल में इस देश के श्रार्य लोगों की कथ्य भाषा - बोलचाल की भाषा थी, जिस भाषा में भगवान् महावीर और बुद्धदेव ने अपने पवित्र सिद्धान्तों का उपदेश दिया था, जिस भाषा को जैन और बौद्ध विद्वानों विविध विषयक विपुल साहित्य की रचना कर अपनाई है, जिस भाषा में श्रेष्ठ काव्य निर्माण द्वारा प्रवरसेन, हाल आदि प्राकृत किसे कहते हैं ? महाकवियों ने अपनी अनुपम प्रतिभा का परिचय दिया है, जिस भाषा के मौलिक साहित्य के आधार पर संस्कृत के अनेक उत्तम ग्रन्थों की रचना हुई है, संस्कृत के नाटक-ग्रन्थों में संस्कृत-भिन्न जिस भाषा का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है, जिस भाषा से भारतवर्ष की वर्तमान समस्त आर्य भाषाओं की उत्पत्ति हुई है और जो भाषाएँ भारत के अनेक प्रदेशों में आजकल भी बोली जाती हैं, इन सब भाषाओं का साधारण नाम है प्राकृत, क्योंकि ये सब भाषाएँ एकमात्र प्राकृत के ही बिभिन्न रूपान्तर हैं जो समय और स्थान की भिन्नता के कारण उत्पन्न हैं। इसीसे इन भाषाओं के व्यक्ति वाचक नामों के आगे 'प्राकृत' शब्द का प्रयोग आजतक किया जाता है, जैसे प्राथमिक प्राकृत, या अर्धमागधी प्राकृत, पाली प्राकृत, पैशाची प्राकृत, शौरसेनी प्राकृत, महाराष्ट्री प्राकृत, अपभ्रंश प्राकृत, हिन्दी प्राकृत, बंगला प्राकृत आदि । भारतवर्ष की अर्वाचीन और प्राचीन भाषाएँ और उनका परस्पर सम्बन्ध भाषातत्व के अनुसार भारतवर्ष की आधुनिक कथ्य भाषाएँ इन पाँच भागों में विभक्त की जा सकती है : - ( १ ) आर्य (Aryan), (२) द्राविड़ (Dravidian), (३) मुण्डा ( Munda ), (४) मन् ख्मेर ( Mon-khiner) और (५) तिब्बतar (Tibeto-Chinese). भारत की वर्तमान भाषाओं में मराठी, बँगला, ओड़िया, बिहारी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी और काश्मीरी भाषा आर्य भाषा से उत्पन्न हुई हैं। पारसी तथा अंग्रेजी, जर्मनी आदि अनेक आधुनिक युरोपीय भाषाओं की उत्पत्ति भी इसी आर्य भाषा से है । भाषा गत सादृश्य को देखकर भाषा तन्त्र- ज्ञाताओं का यह अनुमान है कि इस समय विच्छिन्न और बहु-दूरवर्ती भारतीय आर्य भाषा-भाषी समस्त जातियाँ और उक्त युरोपीय भाषा-भाषी सकल जातियाँ एक ही आर्य वंश से उत्पन्न हुई हैं । तेलगु, तामिल और मलयालम प्रभृति भाषाएँ दाविड़ भाषा के अन्तर्गत हैं; कोल तथा साँथाली भाषा मुण्डा भाषा के अन्तर्भूत हैं; खासी भाषा मन्ख्मेर भाषा का और भोटानी तथा नागा भाषा तिब्बत चीना भाषा का निदर्शन है । इन समस्त भाषाओं की उत्पत्ति किसी आर्य भाषा से सम्बन्ध नहीं रखती, अतएव ये सभी अनार्य भाषाएँ हैं । यद्यपि ये अनार्य भाषाएँ भारत के ही दक्षिण, उत्तर और पूर्व भाग में बोली जाती हैं तथापि अंग्रेजी आदि सुदूरवर्ती भाषाओं के साथ हिन्दी आदि आर्य भाषाओं का जो वंश-गत ऐक्य उपलब्ध होता है, इन अनार्य भाषाओं के साथ वह सम्बन्ध नहीं देखा जाता है । ये सब कथ्य भाषाएँ आजकल जिस रूप में प्रचलित हैं, पूर्वकाल में उसी रूप में न थीं, क्योंकि कोई भी कथ्य भाषा कभी एक रूप में नहीं रहती । अन्य वस्तुओं की तरह इसका रूप भी सर्वदा बदलता ही रहता है- देश, काल और व्यक्तिगत उच्चारण के भेद से भाषा का परिवर्तन अनिवार्य होता है । यद्यपि यह परिवर्तन जो लोग भाषा का व्यवहार करते हैं उनके द्वारा ही होता है तथापि उस समय वह लक्ष्य में नहीं आता । पूर्वकाल की भाषा के संरक्षित आदर्श के साथ तुलना करने पर बाद में ही वह जाना जाता है। प्राचीन काल की जिन भारतीय भाषाओं के आदर्श संरक्षित हैंजिन भाषाओं ने साहित्य में स्थान पाया है, उनके नाम ये हैं- वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पाली, अशोक लिपि तथा उसके बाद की लिपि की भाषा और प्राकृत भाषा समूह न थीं, केवल लेख्य - साहित्यिक भाषा - ही थीं। इनमें प्रथम की दो भाषाएँ कभी जन साधारण की कथ्य भाषा अवशिष्ट भाषाएँ कथ्य और लेख्य उभय रूप में प्रचलित थीं । इस । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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