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________________ अभिगमण-अभिणिव्वागड पाइअसद्दमहण्णवो माह का वीगिन्हित ४ ज्ञान, निश्चय (पव १४६)। ५ सम्य- दोक्षा ली थी (अंत ३)। २ इस नाम का अभिदइ (स १६३)। वकृ. अभिणंदंत क्त्व का एक भेद (ठा २, १)। ६ प्रवेश एक कुलकर पुरुष (पउम ३, ६५)। ३ (प्रौपः रणाया १, १; पउम ५, १३०)। (से ८, ३३)। मुहूर्त-विशेष । (सम ५१)। कवकृ. अभिणंदिजमाण (ठा ; णाया अभिगमण न [अभिगमन] ऊपर देखो अभिजण देखो अभिअण (स्वप्न २६)। (स्वप्न १६ गाया १,१२)। अभिजस न [अभियशस् ] इस नाम का अभिणंदिय वि [अभिनन्दित] जिसका अभिगमि वि [अभिगमिन् ] १ आदर | एक जैन साधुओं का कुल (एक प्राचार्य की अभिनन्दन किया गया हो वह (सुपा ३१०)। करने वाला। २ उपदेशक । ३ निश्चय-कारक। संतति) (कप्प)। अभिणंदण न [अभिनन्दन] १ अभिनन्दन । ४ प्रवेश करने वाला ५ स्वीकार करने अभिजाइ स्त्री [अभिजाति] कुलीनता, २ पुं. वर्तमान अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ बाला, प्राप्त करने वाला (परण ३४)। खानदानी (उत्त ११)। जिनदेव (सम ४३)। ३ लोकोत्तर श्रावणमास। अभिगय वि [अभिगत] १ प्राप्त । २ अभिजाण सक [अभि +ज्ञा] जानना । (सुज १०)। सत्कृत । ३ उपदिष्ट । ४ प्रविष्ट (बृह १)। वकृ. अभिजाणमाग (आचा)। अभिणय पुं[अभिनय] शारीरिक चेष्टा के ५ ज्ञात, निश्चित (गाया १, १)। द्वारा हृदय का भाव प्रकाशित करना, नास्थअभिजात पु[अभिजात] पक्ष का ग्यारहवाँ क्रिया (ठा ४, ४)। अभिगहिय न [अभिग्रहिक] मिथ्यात्वदिन (सुज १०,१४)। अभिणव वि [अभिनव नूतन, नया (जीव विशेष (कम्म ४, ५१)। अभिजाय वि [अभिजात] १ उत्पन्न, 'अभिअभिगिज्म अक [अभि + गृधु] अति जायसहो' (उत्त १४) । २ कुलीन (राज)। अभिणिक्खंत वि अभिनिष्क्रान्त लोभ करना, प्रासक्त होना । वकृ. अभि अभिजंज सक [ अभि+ युज १ मन्त्र- दीक्षित, प्रवजित (स २७८) । गिभंति (सूत्र २, २)। तन्त्रादि से वश करना। २ कोई कार्य में अभिणिगिण्ह सक [अभिनि + ग्रह ] अभिगिण्ह । सक [अभि + ग्रह ] ग्रहण लगाना। ३ प्रालिंगन करना। ४ स्मरण रोकना, अटकाना। संकृ. अभिणिगिक अभिगिन्ह ) करना, स्वीकारना । अभि कराना, याद दिलाना। संह. अभिजुंजिय, (पि ३३१, ५६१)। गिएहइ (कप्प)। संकृ. अभिगिन्हित्ता, अभिजुंजियाणं, अभिजुंजित्ता (भग २, अभिणिचारिया स्त्री [अभिनिचारिका] अभिगिज्झ (पि ५८२ ठा २, १)। ५; सूअ १, ५, २, प्राचाभग ३, ५)। भिक्षा के लिए गति-विशेष (वव ४)। अभिग्गह [अभिग्रह] १ प्रतिज्ञा, नियम। अभिजुत्त वि अभियुक्त] १ व्रत-नियम में अभिणिपया स्त्री [अभिनिप्रजा] अलग(प्रोघ ३)। २ जैन साधुओं का प्राचार जिसने दूषण न लगाया हो वह (गाया १, अलग रही हुई प्रजा (वव )। विशेष (बृह १)। ३ प्रत्याख्यान, (नियम १४)। २ जानकार, पण्डित (णंदि)। अभिणिबुज्झ सक [अभिनि + बुध] विशेष) का एक भेद (प्राव ६)। ४ कदा ३ दुश्मन से घिरा हुमा (वेणी १२०)। जानना, इन्द्रिय आदि द्वारा निश्चित रूप से ग्रह, हठ (ठा २,१)। ५ एक प्रकार का | अभिभावी अभिध्याालोभ. लोलपता. | ज्ञान करना। अभिारणबुज्झए (विस ८१)। शारीरिक विनय (वव १)। आसक्ति (सम ७१; पण्ह १, ५)। अभिणिबोह [अभिनिबोध ज्ञान-विशेष, अभिग्गही स्त्री [अभिग्रहणी] भाषा का अभिझिय वि [अभिध्यित] अभिलषित, | मटणी भाषा का |.. भिजत | मति-ज्ञान (सम्म ८६)। एक भेद, असत्य-मृषा वचन (संबोध २१)। वांछित (पएरण २८)। अभिणियट्टण न [अभिनिवर्त्तन] पीछे अभिग्गहिय वि [अभिग्रहिक] अभिग्रह अभिट्रिअ वि[अभीष्ट] अभिलषित (वजा लौटना, वापस जाना (आचा)। वाला (ठा २,१ पव ६)। *१६४)। अभिणिविद् वि [अभिनिविष्ट] १ तीन अभिग्गहिय वि [अभिगृहीत] १ जिसके अभिठुय वि [अभिष्टुत] वणित, श्ला रूप से निविष्ट । २ प्राग्रही (उत १४)। विषय में अभिग्रह किया गया हो वह घित, प्रशंसित (प्राव २)। अभिणिवेस पुं[अभिनिवेश] आग्रह, हठ (कप्प; पव ६)। २ न. अवधारण, निश्चय अभिड्डुय देखो अभिदुय (सूत्र १, २, (गाया १, १२)। (परण ११)। अभिणिवेसि विअभिनिवेशिन् ] कदाअभिघट्ट सक [अभि + घट्ट] वेग से । अभिणअंत मी ग्रही (अज्झ १५७)। जाना। कवकृ. अभिघट्टिजमाण (राय)।। अभिणइज्जत । अभिणिवेह अभिनिवेध उलटा मापना अभिघाय पुं [अभिघात] प्रहार, मार-पीट, अभिणंद सक [अधि+नन्द्] १ प्रशंसा | (प्रावम)। हिंसा (पएह १, १; बृह ४)। करना, स्तुति करना। २ आशीर्वाद देना। अभिणिव्यागड वि [दे. अभिनिाकृत] अभिचंद पुं [अभिचन्द्र] १ यदुवंश के ३ प्रीति करना। ४ खुशी मनाना। ५ चाहना, भिन्न परिधि वाला, पृथग्भूत (घर वगैरह) राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जिसने जैन , इच्छा करना। ६ बहुमान करना, पादर करना। (वव १, ६)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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