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________________ ६२ पाइअसद्दमहण्णवो अभयंकर-अभिगम अभय (सुपा १८)। सेण [°सेन] एक | सामने, 'अभिगच्छरगया' (प्रौप)। २. चारों | अभिंगणार ग. देखो अब्भंगण (नाट; रंभा)। राजा का नाम (पिंड)। ओर, समन्तात; 'अभिदो' (स्वप्न ४२) । ३ | अभिजण अभयंकर वि [अभयंकर] अभय देनेवाला, बलात्कार, 'अभिप्रोग' (धर्म २)। ४ उल्लंघन, अभिकंख सक [अभि +काक्ष ] इच्छा अहिंसक (सूम १, ७, २८)। अतिक्रमण; 'अभिकंत' (आचा)। ६ अत्यन्त, __ करना, चाहना। अभिकखेजा (प्राचा) । वकृ. अभयकरा स्त्री [अभयकरा] भगवान् अभि- ज्यादाः 'अभिदुग्ग' (सूत्र १, ५, २)। ६ । अभिकखमाण (दस ६, ३)। नन्दन की दीक्षा-शिविका (विचार १२६)। लक्ष्य, 'अभिमुहै। ७ प्रतिकूल, 'अभिवाय' | अभिकंखा स्त्री [अभिकाङ्क्षा अभिलाषा, अभया स्त्री [अभया] १ हरीतकी, हरें, हरडई (आचा)। ८ विकल्प । ६ संभावना (निचू इच्छा (प्राचा)। (निचू १५)। २ राजा दधिवाहन की स्त्री का १)। १० निरर्थक भी इस अव्यय का प्रयोग अभिकखि । वि अभिकाडिक्षन] अभिनाम (ती ३५)। होता है, 'अभिमंतिय' (सुर १६, ६२)।। अभिकंखिरलाषी, इच्छुक (पि ४०५, सुपा अभयारिटू न [अभयारिष्ट] मद्य-विशेष १२६)। अभिअण पुं[अभिजन] १ कुल । २ जन्म- | (सूत्र १, ८)। अभिकंत वि [अभिक्रान्त] १ गत, अतिभूमि (नाट)। अभवसिद्धिय , पुं[अभवसिद्धिक अभव्य, क्रान्त; 'अभिकंतं च खलु वयं संपेहाए' अभिआवण्ण वि [अभ्यापन्न] संमुख-प्रागत अभवसिद्धीय । मुक्ति के लिये अयोग्य जीव (प्राचा)। २ संमुख गत । ३ आरब्ध । ४ (ठा २, २: एंदिः ठा १)। (सूत्र १, ४, २)। उल्लंधित (प्राचा सूत्र २, २)। अभविया वि[अभव्य] १ असुन्दर, अचारु अभिइ स्त्री [अभिजित् ] नक्षत्र-विशेष (ठा अमिक अनि जाना अभव्व (विसे)। २ . मुक्ति के लिये अयोग्य २, ३)। गुजरना। २ सामने जाना। ३ उल्लंघन जीव (विसे; कम्म ३,२३)। अभिइ सक (अभि + इ] सामने जाना, संमुख करना। ४ शुरू करना। वकृ. अभिक्कममाण अभाअ वि [अभाग] अस्थान, अयोग्य स्थान जाना । वकृ. अभिज्ञत (उप १४२ टी)। | (आचा) । संकृ. अभिक्काम (सूत्र १,१,२)। (से ८,४२)। अभिउंज देखो अभिमुंज। संकृ. अभि- अभिक्कम पुं [अभिक्रम] १ उल्लंघन । २ अभाइ वि [अभागिन्] अभागा, हत-भाग्य, उंजिय (ठा ३, ४; दस १०)। प्रारम्भ । ३ संमुख-गमन । ४ गमन, गति कमनसीब (चारु २६)। अभिओअ ) पुं [अभियोग] १ आज्ञा, . (प्राचा)। अभागधेज वि [अभागधेय] ऊपर देखो अभिओग हुकुम (प्रौपः ठा १०)। २ अभिक्ख प्र[अभीक्ष्ण] बारंबार (उप (पउम २८, ८६)। बलात्कार, 'अभियोगे अ निरोगे' (श्रा ५)। भिक्खण , १४७ टीठा २,४; वव ३)। अभाव पुं[अभाव] १ ध्वंस, नाश (बृह १)। ३ बलात्कार से कोई भी कार्य में लगाना अभिक्खा स्त्री [अभिख्या] नाम (विसे २ अविद्यमानता, असत्व (पंचा ३)। ३ (धर्म २)। ४ अभिभव, पराभव (प्राव ५)। १०४८)। असम्भव (दस १)। ४ अशुभ परिणाम ५ कार्मरण-प्रयोग, वशीकरण, वश करने का | अभिगच्छ सक [अभि + गम्] प्राप्त (उत्त १)। चूर्ण या मन्त्र-तन्त्रादि; करना। अभिगच्छइ (दस ४, २१, २२, ६, अभाविय वि [अभावित] अयोग्य, अनुचित 'दुविहो खलु अभिनोगो, दव्वे भावे य २.२)। (ठा १०; बृह ३)। होइ नायव्वो। अभिगच्छ सक [अभि + गम्] सामने दव्वम्मि होइ जोगो, विजा मंता य भावम्मि' अभावुग वि [अभावुक] जिसपर दूसरे के जाना । अभिगच्छंति (भग २, ५)। संग की असर न पड़ सके वह, “विसहरमरणी अभिगच्छणया स्त्री [अभिगमन] संमुखअभावुगदव्वं जीवो उ भावुगं तम्हा' (सुपा ६ गर्व, अभिभान (आव ५)। ७ प्राग्रह, हछ । गमन (प्रौप)। १७५ मोघ ७७३)। (नाट)। °पण्णत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति विद्या- | अभिगच्छणा देखो अभिगच्छणया (वव विशेष (रणाया १,१६)। देखो अहिओय। १)। अभासगावि [अभाषक] १ बोलने की | अभासय शक्ति जिसको उत्पन्न न हुई हो | अभिओग पुं [अभियोग] उद्यम, उद्योग अभिगज अक [ अभि + गर्ज ] गर्जना, वह। २ नहीं बोलनेवाला। ३ पुं. केवल त्वग्- | (सिरि ५८)। खूब जोर से आवाज करना। वकृ. अभिइन्द्रियवाला, एकेन्द्रिय जीव । ४ मुक्त प्रात्मा अभिओगी स्त्री [आभियोगी] भावना-विशेष, | गज्जत (गाया १, १८ सुर १३, १८२)। (ठा २, ४भगः अणु)। ध्यान-विशेष, जो अभियोगिक देव-गति (नौकर- अभिगम देखो अभिगच्छ। कृ. अभिगमअभासा स्त्री [अभाषा] १ असत्य वचन । स्थानीय देव-जाति) में उत्पन्न होने का हेतु णीय (व ६७६)। २ सत्य-मिश्रित प्रसत्य वचन (भग २५, ३)। है (बृह १)। अभिगम पुं[अभिगम] १ प्राप्ति, स्वीकार निअ [अभि] निम्नलिखित अर्थों में से अभिओयण न [अभियोजन देखो अभि- (पवित्र)। २ आदर, सत्कार (भग २, ५)। किसी एक को बतलानेवाला अव्यय-१ संमुख, ओग (आव) परण २०) । ३ (गुरु का) उपदेश, सौख (णाया १, १)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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