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________________ अण्णी- अत्तकम्म अणी स्त्री [दे] १ देवर की स्त्री । २ पति की बहिन, ननद । ३ फूफा, पिता की बहिन (दे १,५१) अणुवि [अज्ञ] जान, निर्बोध, मूर्ख अण्णुअ ) ( षड् गा १८४ ) IV अणुण वि [ अन्योन्य ] परस्पर, आपस में (ड)। अण्णूण वि [ अन्यून ] परिपूर्ण ( उप पृ २२४ ) IV अण् सक [ अनु + इ ] अनुसरण करना (जिसे २५२२) (४६३)। अणिमाण (धीमान विद्या १, १) अण्णेस सक [ अनु + इप्] १ खोजना, ढूंढना, सहकीकात करना चाहना, वांछना । ३ प्रार्थना करना । प्रएसइ (पि १६३) । वकृ. अण्णेसंत, अण्णेसअंत, अण्णेसमाण (महा; काल) 1 अण्णेसण न [ अन्वेषण ] खोज, तलाश, तहकीकात (उप ६ टी) अण्णा स्त्री [अन्वेषणा ] १ खोज, तहकीकात (प्रा) । २ प्रार्थना ( श्राचा) । ३ गृहस्थ से दी जाती भिक्षा का ग्रहण (ा, ३, ४) । अण्सव [अन्बेषक] गवेषक (पत्र ७१) । [अस] [अन्वेषिन] खोज ( श्राचा) । V असिय वि [अन्वेषित ] जिसकी तहकी कात की गई हो वह, 'प्रोसिया सव्व तुनकहिच दिट्टा (महा) V अण्णो देखो अणुण्ण, 'अणोरणसमगुबद्ध रिपच्छयत्रो भरिणयविसयं तु' (पंचा ६; स्वप्न ५२ ) । अण्णोसरिज वि[दे] अतिकान् उषित (दे १, ३६ ) 1/ अ क [भुज् ] १ खाना, भोजन करना । २ पालन करना । ३ ग्रहण करना । अरहर for a [ अह ] दिवस, दिन 'पूव्वावरण्हकालसमसि' (उवा) V पाइअसद्दमणव अग ) [ आश्रव] कर्म-बन्ध के कारण अण्ड्य हिंसादि ( परह १, १, ५; औप ) IV 'अहा स्त्री [तृष्णा ] तृषा, प्यास (गा ε३) । अण्हेअअ वि [दे] भ्रान्त, भूला हुआ (दे १, RE) IN Jain Education International अतक्किय वि [अतर्कित ] १ श्रचिन्तित श्राकस्मिक; 'प्रतक्कियमेव एरिसं वसरणमहं पत्ता' (महा)। २ ठीक-ठीक नहीं देखा हुआ, अपरिलक्षित ( वव ८ ) । ३ क्रिवि. 'अतक्कियं बेव... विहरियो रायहत्थी' (महा) IV अपि [अ] छोटा किनारा, 'धत वातो सो व मग्गो' (बृह १ ) । अहाअ वि [ अतृष्णाक ] तृष्णा-रहित, निःस्पृह (प्रच्चु ४ ) अतत] [] [अतत्व] [साय भठ गैरव्याजी अतत्तन असत्य, झूठ, (उप ५०८) । अतत्थ वि [अत्रस्त ] नहीं डरा हुआ, निर्भीक (कुमा) 1 अतस्य [अवध्य] नाव भूठा (बाचा)। अतर देखो अयर (पव १ कम्म ५; भवि ) । अतव पुंन [ अतपस् ] १ तपश्चर्या का अभाव (२३) २ वि. तह (सह ४) अत [अस्तव] प्रशंसा, निन्दा (जुना) | अतसी देखो अयसी (परण १) । अतह वि [अवथ] सव्य, धन्यास्तविक, भूठा (सूत्र १,१, २: श्राचा) अवि [अतथा] उस माफिक नहीं, 'जाओ चिय कायव्वे उच्छाहेंति गरुयारण कित्ती । तातिर लति हिययाई' (गउड) अतार वि [अतार ] तरने को अशक्य ( पाया १, ६ १४) (हे ४, ११०; षड् ) । अहाइ (औप ) । अतिउट्ट सक [ अति + वृत् ] १ उल्लंघ धरोहर (कुमा)। करना । २ व्याप्त होना । तिउट्टइ (सूत्र १, १५, ६ टी) V अविट्ट र [अतिवृत] १२ अतारिम वि[अतारिम] ऊपर देखो (सूम १, ३, २) अतिउट्ट श्रक [ अति + त्रुट् ] १ खूब टूटना, टूट जाना । २ सब बन्धन से मुक्त होना । अतिउट्टइ (सूम १, १५, ५) For Personal & Private Use Only ४७ अनुगत, व्याप्तः 'जंसी गुहाए जलतिउट्टे विवादम्भ (१५ १,१२) अतित्थ न [ अतीर्थ] १ तीर्थं (चतुविध संघ) का अभाव, तीर्थं की अनुत्पत्ति । २ वह काल, जिसमें तीर्थं की प्रवृत्ति न हुई हो या उसका अभाव रहा हो ( पण १) । 'सिद्ध वि [सिद्ध] प्रतीर्थ काल में जो मुक्त हुया हो वह, 'प्रतित्थसिद्धाय मरुदेवी' (नव ५६) । अतिहि ली अहि अतीगाड़ [अगिाड] १ अति-निविड । २ क्रिवि. अत्यंत बहुत 'अतीगार्ड भीश्रो जक्खाहियो' (पउम ८, ११३) अतुल वि [ अतुल ] अनुपम, असाधारण ( परह १, १ ) 1 [अतुलित] मासाधारण, मद्रि अतुलिय तीय (भवि) अन्त देखो अष्प = ग्रात्मन् (सुर ३, १७४३ सम २७ दि लाभ [भ] स्वरूप की प्राप्ति, उत्पत्ति (कम्म २२५) अ] [आ] पति, दुःखित हैरान (गुर २ १४२ कुमा) . [आ] गृहीत लिया हुआ गाया १, १ ) । २ स्वीकृत, मंजूर किया हुआ (ठा २, ३) । ३ पुं. ज्ञानी मुनि (बृह १) | अत्तवि [आप्त ] १ ज्ञानादि-गुण-संपन्न, गुरणी । २ राग-द्वेष वर्जित, वीतराग ३ प्रायश्चित्तदाता गुरु, 'नारणमादी रिण प्रत्तारिए, जेरण प्रत्तो उ सो भवे । रागद्दोसपहीणो वा, जे व इट्ठा विसोहिए' (वच १०) ४ मोश, मुक्ति ( ११० ) । ५ एकान्त हितकर (भग १४, ६) । ६ प्राप्त, मिला हुआ (वय १०); 'तसे' (उत्त १२) । अत वि [आ] दुःख का नाश करनेवाला, सुख का उत्पादक (भग १४, ९) । अत [अ] यहां, इस स्थान में (नाट ) । "भव वि ["भवत्] पुज्य माननीय (अभि ६१;पि २३) । अत्तअ देखो अश्चय = प्रत्यय ( प्राकृ २१ ) 1 अतकम्मर [आत्मकर्मेन] १जिससे कर्म www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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