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________________ कोषअंगे केट लुक :-जैनागमोमां नियुक्तिकार म० नामना शब्दो टूटापाडीने व्याख्या करछे अने तेना पर्यायो आपे छे. (जेमके:-आवस्सयसुयकखंध) तेमां आवस्सय, सूय अने कखंध त्रण शब्दोनो अर्थ बतावी तेना पर्यायो आपवामां आवे छे. आनुयोग द्वारमा आरितेनी संपूर्ण विगत समजा वेली छे. गुजरातीना समर्थ लेखके पोताना सरस्वताचंद्र ग्रंथमाँ पण पर्यायोनो प्रयोग कर्यो छे. कोशनी विशेषता :-अमे एकज शब्दना जुदा जुदा स्थान पर कया कया पर्यायो अने अर्थ बताये छे तथा टीकाकारो तेना कया कया अर्थ करे छे ते आमां देखाडयं छे जेम 'से' अथ अर्थमां आवे ने "ते" ना अर्थमां पण आये; 'नो' सर्व निषेधमां आवे ते मज नो अल्पनिषेधमां पण होय. मतलेबके आवी हकीकत सूक्ष्मरीते विचारवामां अत्रे आवी छे. कोशनी वीजी विशेषता ए के जुदा जुदा टोकाकारे अमुक शब्द कया कया अर्थमां वापर्यो छे ते पण अत्रे छे. ( सिंधव नो अर्थ 'मोटु' तेमज 'घोडो' पण थाय. अटले संदर्भ देखीने अर्थनो आलेख करवामां आवे छे. ) आवो संदर्भ ध्यानमां न लेनार पटेल गोपालदास जेवी भूल करी बेसे छे. हरी आयो हरो उपन्यो, हरी पुंठे हरी धाय । हरी गयो हरी विशे, हरो बेठो वाखाय ।।१।। __ उपरना दुहामां 'हरी' शब्दना भिन्न भिन्न अर्थ ध्यानमां लेवा जोइए; हरि वरसाद; देडको; साप, पाणी, साप वगेरे... संस्था साथेनो संबंधः-श्री अमारा गुरुदेवनी निश्रामां आ शब्दकोशनी कोपी मूनि श्रीगुणसागरजी महाराज साहेबे शेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंडना संपादकीय विभागना संचालक झवेरी जीवणचंद साकरचंदने आपी हती. अने आ कोषनु संपादन कार्य गुरुदेवे अमने सोंप्यु हतुं. आ संपादन कार्यमां मने मुनिश्रीक्षेमंकरसागर महाराजनो लाभ मल्यो हतो. अटले श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष भाग पहेंलो संस्थाना ग्रंथांक १०१) तरीके चालु थयो, आ उपरांत संस्थाना ग्रंथांक १००, १०२, १०३ मां पण अमे उभयसंपादकोए काय कर्यु छे. श्रीक्षेमंकरसागर महाराजश्रीनो कालधर्म थवाथी ग्रंथांक १०५, ११२, ११५, ११६, १२५, १२६, आ दिनुं संपादन कार्य मारा माथे आव्युहतं. तेना प्रफ कार्यमां मुनिश्रीप्रमोद सागरजीनो सहकार मलयो हतो. मारी संपादनामां शुद्धिपत्रक पं० श्रीप्रबोधसागरजीए कर्यु हतुं. १२३ ग्रंथांकनु संपादन कार्य मुनिश्रीप्रमोदसागरजीए कर्यु हतु तेनीनोंध लइए छोए. आ संस्थाना संचालन विभाग कार्य वर्षो सुधी शेठ जीवणचंद साकरचंद झवेरीए कर्य हतं. तेमना स्वर्गवास बाद आकार्य श्रीबाबुभाई उर्फ केशरीचंद हीराचंद झवेरीए संभाल्यं हतुं. बाबुभाईने ने प्रकाशनमां ऊंडो रस हतो. पण बे वर्ष पहेलां आ भाई पण स्वर्गवासी थया छे. आथी हालमां संस्थाने संपादनकार्यमां खूब मुसीबत अनुभववी पडे छे. ऋण स्वीकार :-आ कोषनाकार्यमां अमने श्रीगुरुदेव उपरांत अनेक सज्जनोनो सहकार प्राप्त थयो छे. ते पैकी मुनिश्रीगुणसागरजी, जीवणभाई, केशरीचंदभाई, मोतिचंदभाई मुनिक्षेमकरसागरजी, मुनिश्री प्रमोदसागरजी, पन्यास श्रीप्रबोधसागरजी, वगेरे मुख्य छे. बालुभाई हंसराज लालने पहेलो भाग छापी आव्यो. बीजा चार भाग जैनेन्द्र प्रेस (ललितपुर) ना संचाले के छाप्या छे. आ सौना अमे ऋणी छीए. कोषछपाववामां प्रथम पैसा आपनारना पण रुणी छीए. ( १४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016078
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1979
Total Pages316
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size20 MB
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