________________
[ ४९ ]
शब्द परथी ज अपभ्रंशमां मळतो 'आमलीय' शब्द आवी शके.
आमोडउ प्राचीसं. अंबोडो (सं. आम्रमुकुट) [दे. आमोडो]
मूळ ग्रंथमां व्युत्पत्ति आपी छे ते बराबर छे, पण साथे 'आमोडो' शब्द देश्य शब्द तरीके पण नोंधायेलो मळे छे ए संपादकना उमेरणनुं तात्पर्य छे.
अजमाण नरका. अजमो [हिं. अजवाइन ]
अहीं संपादके हिंदी शब्दनी समान्तरता दर्शावी छे एम समजवानुं छे एटलेके 'सरखावो हिं. अजवाइन' ए तात्पर्य छे.
अडसीला "नेमिछं [हठीला] [रा.अडसाला ]
अहीं राजस्थानीमां 'अडसाला' शब्द आ अर्थमां प्राप्त थाय छे एटलुं ज तात्पर्य छे. अडसीलामां पाउदोष जोई शकाय एवं नथी तेथी बन्ने शब्दो एम ज राख्या छे. कण आरारा. कन्या, पुत्री (रा. ; सं. कनी )
अहीं एम दर्शाववामां आव्युं छे के कणिनुं मूळ सं. 'कनी' मां छे, पण राजस्थानीमां पण कणि शब्द नोंधायेलो छे.
आ साथै ज ए स्पष्टता करवी जोईए के ज्यां शब्दने राजस्थानी, हिंदी वगेरे कह्यो छे त्यां ए केवळ राजस्थानी के हिंदी छे एम हंमेशां तात्पर्य नथी, भगवद्गोमंडल जेवो कोश पण घणी वार ए शब्द आपतो होय छे अने घणी गुजराती कृतिओमां ए प्राप्त थतो होय छे, परंतु राजस्थानी के हिंदी कोशमांथी ए शब्दने समर्थन मळे छे ए ताववानुं तात्पर्य होय छे.
आराडि षडाबा. आक्रंद, चीस, बराडा (सं.आरटते)
अहीं, जोई शकाय छे के, संज्ञारूपना मूळ तरीके क्रियापदरूप अपायेलुं छे. संस्कृतमां संज्ञारूप मळतुं न होवाथी क्रियापदरूप परथी ए सधायुं होवानी धारणा एनी पाछळ छे.
अकयत्थ आरारा. एके; ऐतिका. अकृतार्थ, [जेनुं जीवन सार्थक नथी एवो ] अहीं अकयत्थनुं मूळ सं. 'अकृतार्थ' छे, जे शब्दार्थ तरीके ज आवेल छे तेथी व्युत्पत्ति-विभागमां एने दर्शावेल नथी.
अणगाल * अभिऊ. [ अकाल, खराब समय ] [प्रा. ]
अणगाल सं. 'अकाल' मांथी आवेल छे, जे शब्दार्थमां आवी गयेल छे. पण प्राकृतमां 'अणगाल' मळे छे ते अहीं दर्शाववामां आव्युं छे.
अशाबो नरप असबाब, सरसामान, अलंकार
अहीं अशाबोनुं मूळ अरबी / फारसी 'असबाब ' शब्दार्थमां आवी गयेल छे. तेथी अलग दर्शावेल नथी.
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org